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Wednesday, January 5, 2011

जी हाँ -मैं आग बेचता हूँ

जी हाँ -मैं आग बेचता हूँ -
एक चिंगारी नहीं -
सम्पूर्ण दावानल .
एक रात की दुल्हन नहीं -
सम्पूर्ण सुहाग बेचता हूँ
जी हाँ मैं आग बेचता हूँ !!

खरीदोगे -ले जाओ
इससे घर के चूल्ले जलाओ
कुंद पड़ती तलवार की धार के लिए ,
अपने लिए ,देश-दुनिया
पूरे संसार के लिए - नफरत के लिए
प्यार के लिए .

जी हाँ इसे जैसे चाहो जला लो
अपने दिल में -विचार की तरह
दुसरे के दिल में प्यार की तरह
प्यार -मनुहार की तरह ,
जंग और रार की तरह .

आग का तो धरम ही है जलाना
मुर्दा शरीरों को जला दो
या सर्द जिस्मों मे जीवन भर दो
ये तुम परे निर्भर है -
तुम जो चाहे करदो .

ज्यादा नहीं -तो बस एक
चिंगारी ही ले लो -पर ध्यान रखना
दूसरे को जलाने से पहले -
स्वयं को जलाना होगा -
चिराग बाँटने से पहले खुद को
रौशनी में आना होगा .

2 comments:

  1. wah.....aag se bhari kavita....ojpurna

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  2. अग्नि से ज़ादा शुद्ध और पवित्र शायद ही कुछ हो....जिसके जलने मात्र से अंधकार की समाप्ति हो जाती है उस पर लिखी यह् कविता साधूवाद की पात्र है.....

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