Popular Posts

Monday, March 28, 2011

सिरकटी लाशों पे माना सर नहीं हैं

सिरकटी लाशों पे माना सर नहीं हैं ,
आज तेरी बात के उत्तर नहीं हैं .

खींच कर लायी क़ज़ा हमको यहाँ पर
जिन्दगी अब मौत से बेहतर नहीं हैं .

जमा खातिर रख -मैं लौटूंगा यक़ीनन ,
हार भी फिर जीत से कमतर नहीं है .

भृकुटियाँ टेढ़ी अभी की ही कहाँ हैं -
साथ में तेरा कोई रहबर नहीं है .

गीत गाने का असर होता नहीं है
गालियाँ देने का ये अवसर नहीं है .






कभी - कभी मन की बात

कभी - कभी
मन की बात -
दिल के हालात ,
कहना कठिन हो जाता है .

सपने बुनना -आसान है
उनमे रंग भरना -कठिन .
इन्हें रंगीन करते करते -
कभी कभी स्वयं इंसान ,
कितना रंगहीन रह जाता है .

उम्र के ढलान पर -चेहरे
के रंग -रूप को खा जाती हैं-
नक़्शे सी बनी गहरी रेखाएं .

आँखों में इंतज़ार-
बाकी रह जाती है -मौत
की आहटें जाने कान में
क्या कह जाती हैं .

Sunday, March 27, 2011

पंछी ऐसे आते हैं.

पंछी ऐसे आते हैं-
दूर देश जीवित रहने के 
साधन -जब थोड़े रह जाते हैं .
मौसम जब ज्यादा -
उत्पात मचाते हैं .
तब दूर के मुसाफिर-
परदेश की शाखों  को -
अपना बसेरा बनाते हैं .

पंछी ऐसे आते हैं -
जब वे जलावतन हो जाते है.
प्रचंड आंधियों में -
कानन के चीड जब आपस में
रगड़ खाते हैं .
और दावानल -बडवानल की
प्रचंड अग्नि के शिखर -उनके
घोंसलों तक जला जाते हैं .

पंछी ऐसे जाते हैं -
जब आंगन के दरखत -
बेवजह काट दिए जाते हैं .
खेत खलिहानों में- लोग जब
उन्हें जबरन उड़ाते हैं .
जीने के जब अधिकार सारे -
ख़तम हो जाते हैं -तब
पंछी -अपना घर छोड़ कर-
जलावतन हो जाते हैं -और
परदेश को अपना वतन बनाते हैं .


Saturday, March 26, 2011

ऊँचाईयां नापनी हैं

ऊँचाईयां नापनी हैं  -
तो ये आकाश कुछ भी नहीं .
इससे भी बुलंद
कई  आसमां हैं .
उठा के रख
फलक से भी ऊपर -
अपने इरादे
की सितारों से ,
आगे एक और भी जहाँ हैं .



Friday, March 25, 2011

उस दुबले पतले -बूढ़े

उस दुबले पतले -बूढ़े
इंसान से ना सही प्यार -पर
अब कैसी रार -वो अब नहीं है .
छोडो भी यार .

इतिहास पर आसान है -
आंसू बहाना -नुक्स निकलना ,
पर बहूत मुश्किल है -यार
खुद इतिहास लिखना -
इतिहास बनाना -और
इतिहास हो जाना .

उस जालिम -आदमखोर
साहूकार से -कठिन होता है
अपना रेहन रखे घर को छुड़ाना .
जब्बर किरायेदारों-को निकलना
नव निर्माण करना - एक घर नहीं
पूरा देश बनाना -बहूत मुश्किल है.

बहूत आसान होता है -
टेढ़ी बनी दीवार पर खासे-
नुक्स निकलना -और बने
नक़्शे को सिरे से नकारना.

जरा घर बना के तो देखता -उन
आँधियों के दौर में -कितनी बार
छप्पर उड़ता -कितनी बार
दीवारें गिराई-उठाई जाती .

घर बनाना -कठिन होता है-
बिना नक़्शे के- धन और
मेहनत की दरकार -
कितनी होती है यार.

कमेटी का डर-तोड़ ना जाए ,
कोई कमीना उसमे सेंघ ना लगाये ,
बन भी जाए तो कोई इस पर-
जबरन अपना हक ना जताए .

हमसे घर नहीं बनते -
उसने तो देश बनाया था.
खंडहरों को ध्वंस्त कर- इतने
कार सेवक ना जाने कैसे-
कहाँ से लाया था.

बड़ी मुश्किल से -गृह प्रवेश का
महूर्त -विदेशी पंडितों से -
निकलवाया था.
वो तो था ठेकेदार, मजदूर-
चला गया था बहूत दूर -छोड़ गया था
तुम सब के लिए -वो खुद तो-
इसमें रहने नहीं आया था .

Thursday, March 24, 2011

क्यों बेकार की बहस में पड़ा है ,

क्यों बेकार की बहस में पड़ा है ,
किसी एक दल का नाम ले -
जो बिना बैसाखी, इंटों  के ,
सहारे- अपने पैरों पर खड़ा है .

आधे शतक तक -जम के लुटा
उन गाँधी के चेलों ने -याद कर
कितना खून चून्सा था इन देसी
फिरंगी -लुटेरों ने .
आज भी तम्बू लगाये -ब्लड बैंक
के नुमायेंदे बने खड़े हैं -आम इंसान
का बचा कुचा खून -डोनेशन में
लेने को अड़े हैं .

हिन्दुओं की इस पार्टी ने
कौनसी दौलत के थाल तुझे बांटे थे .
कांग्रेस के छोड़े   -
झूठे  दुने पत्तल ही चाटे थे .
अपना  सुखा पेट ही भरा था
आम आदमी को क्या निहाल करा था.

कहाँ गए थे इस पार्टी के वादे
संविधान -पाँच साल में क्या पाया था
आपने श्रीमान -एक आध तो काम
कर जाते -पूरा कार्यकाल गुजर
दिया इंटों पर खड़ी -अपाहिज
सरकार को बार बार मरने से  बचाते  .

कौन सा मंदिर बनाया  -या कश्मीर
में गवाया हुआ कौन सा हक तुने पाया.
हाँ पर्चे छपवा कर -
आमंत्रण देकर मुशरफ को बुलवाया .
और लगे हाथ खुद भी -अमन के
कबूतर पाकिस्तान तक उड़ा आया .

पर बदले में एक और कारगिल
का युद्ध हुआ -भूल  गया क्या ?
जिसमे हमने कितना-
खोया क्या क्या गवाया .

अब सोच ये क्या देंगे -इस देश के
भूखे नंगे अवाम को -
साल में एक बार नहीं हर रोज-
एक नया बजट लाये जाते है  -
तेरी जिन्दगी  कैसे -
और ज्यादा मुश्किल हो -
ऐसे प्रस्ताव  रोज संसद में -
पास करवाए जाते है   


जो रुक नहीं रहे तो उन्हें बह जाने दे

जो रुक नहीं रहे तो उन्हें बह जाने दे -
आँखों में खारे नहीं -खून के आंसू आने दे .

जलजलों से डरना -स्वभाव नहीं सागर का ,
तट की ओर से कुछ  तेज हवा आने दे .

छुप गए हैं -उन्हें ढून्ढ मत ,यूँ ही छुप जाने दे ,
वो नया है तो क्या -अंदर तशरीफ़ तो लाने दे .

किनारे पे मछलीयाँ - नहीं मिलती अब तो ,
मांझी से कहो - नाव इन्हें दूर तक घुमाने दे .

ये तेरे पास भी नहीं  - और मैं भी ख़ाली हूँ ,
लाल रंग है- तू मैं ना सही किसी पर भी लगाने दे .

ये खंडहर पहले ही बूढ़ा था -और जर्जर हो चला  ,
एक लात और- मेरी तरफ से भी तो लगाने दे .
 
ठंडी हवाओं के दौर बीते  - जमाना हो चला   ,
ऐ .सी कूलर ना सही ,पंखा तो अब चलाने दे .

सभी की सुन चूका तू -बात है ये ठीक तो लेकिन ,
ये आज की लिखी कविता मुझे भी तो सुनाने दे . 

Wednesday, March 23, 2011

राज चले जाते हैं , ताज चले जाते हैं,

राज चले जाते हैं , ताज चले जाते  हैं,
सारे हमराज चले जाते हैं .
'स्व राज 'की चिंता कर -प्यारे ,
तू तो अभी (बूढ़ा) बच्चा है
वर्ना यहाँ बड़े बड़े उस्ताद चले जाते हैं .

किसी ने सोचा किसी ने माना -और
कहीं कोई कर गुजरा  दीवाना -तो
पंडाल ख़ाली हो जाएगा -वोटो और नोटों
का साम्राज्य जाली  हो जाएगा .

अभी जो तेरी 'मय' -
सर चढ़ कर -संसद में बोलती है
हर उड़ते  परिंदे के पर तोलती है .
पर ये भीड़ है -इसका तुझे अंदाज़ नहीं ,
तू तो बुझता चिराग है -यार ,
ये तो उगते सूरज की जय बोलती है .

इतिहास लिखने की- जिद छोड़,
इसमें अपनी जगह ढून्ढ - क्या पता
किसी हाशिये पर भी बाकी ना बचे .
कटोरा लेकर और कहाँ जाएगा -गर 
कहीं अमरीका ने भी घास ना डाली ,
फिर कौन मिटाएगा ये तेरी तंग हाली .

तेरी रौशनी की तलाश -
जुगनुओं तक ही आखिर क्यों जाती है,
सूरज से रुबरु आँख -
मिलाने में क्या -शर्म आती है  


 

तुझे मेरे कल कि कसम

तुझे मेरे कल कि कसम -ए मेरे हमवतन ,
जो बीता दिए हमने -अंधेरों में रौशनी के लिए.
गला दिये मोम से जिस्म -शिकवा ना शिकायत की ,
जला दिए सब अपने वजूद -देश कि ख़ुशी के लिए .

जमाना कहता रहा - ना रोये अपनी बेबसी पर ,
हँसे ने खुल के अपनी जीत -उनकी शिकस्त पर .
तुम्हे फूलों कि चाह में -बिस्तर किये खुद खारों के
चमन को सीचना चाहा था - झोकों से बहारों के .

आज भी चाह नहीं पूजो -कि आरती उतारो तुम
इन्हें आबाद रखना - जो हम नहीं रहे तो क्या ,
चमन आबाद रहना चाहिए -चाहे कई माली नहीं रहे .
गुलिस्ता अपने फूलों से कभी खाली नहीं रहे .

(मेरे उन हँसते ,मुस्कुराते , कहकहे लगाते
फांसी के फंदे को चुमते दुल्हन बताते
क्रांतिकारी वीरों को अश्रुपूरित श्रधांजलि )

Tuesday, March 22, 2011

उन्हें अपना खोया -वर्चस्य मिला

वे  योद्धा थे -वीर साहसी .
अपनी आनबान-शान,
या अपने घर मकान से ,
मार -मार कर ,
वैरियों को भगाया .

उन्हें अपना खोया -वर्चस्य मिला
आम आदमी तो यूँही -बेवजह
युद्ध भूमि में काम आया .
उसने क्या खो दिया था- जो पाया
इस विधि क्रांति का संधान -
हमे समझ में नहीं आया .

जिन्दगी खेल नहीं

जिन्दगी खेल नहीं - कि फ़ुटबाल
कि मानिंद -ठोकरें लगाओ
और गोल करो.

ये तो पहले से ही -एकदम
गोल है - जमीन कि तरह
और कितनी गोल करोगे .
और इसे कितना रोल करोगे .

इससे लिपटोगे तो खुद भी
लिपट जाओगे -बलखाती बेल
से इससे चिपट जाओगे .

फिर तुम जिन्दगी को -
पकडे रखना -या छोड़ना
अपने से दूर करना - या
अपनी तरफ मोड़ना .

निर्द्वंद ,निशंक -तुम इसे
चलने दो -इससे पहले कि
ये तुम्हे छोड़ जाए -तुम्हारे
भाग्य कि लकीरों की तरह ,
रूठ जाए -रमते फकीरों की तरह .

Sunday, March 20, 2011

कैसे मनाऊ -ये होली का त्यौहार .

जब सपने भी -
ब्लेक एंड वाईट हों .
जिन्दगी की रफ़्तार ही-
जब ओवर टाईट हो -
हर किसी से -
तकरार और फाईट हो .

जिन्दगी बदरंग हो चली -
कैसे रंगीन करूँ - किस से
रंग चुराऊ -कैसे इसमें भरूँ.
नहीं है कोई आस विश्वास -
कोई रंग नहीं है मेरे पास .

कोई है जिसके रुखसार पर -
मर मिटूँ उसके प्यार पर .
आँखें तरसती रहती हैं -सदा
किसी दोस्त के दीदार पर .

ना कहीं प्यार , ना मनुहार ,
किसी से प्यार के चर्चे -तक
नहीं हैं मेरे यार . अब तू बता
कैसे मनाऊ -ये होली का त्यौहार .

जो प्रतिमा बन चुकी

जो प्रतिमा बन चुकी -
भगवान की या शैतान की.
बदली नहीं जा सकती-चाहे
शक्ति मिल जाएँ - सारी
दुनिया -जहान की .

जो बनानी है - वो बस
एक कल्पना मात्र है -कैसी होगी
पता नहीं .

ये अनगढ़ पत्थर का टुकड़ा
मेरा वर्तमान है -
इसे जो चाहे -जैसा चाहे बना दूं .
मेरे हाथ में इसकी पूरी कमान है .

जिन्दगी दो ही तरह से चलती है

जिन्दगी दो ही तरह से चलती है -
चाबुक से हांकिये- या बैल की तरह
खींचिए -बढ़ानी आगे ही पड़ेगी -
ये जिन्दगी की गाडी -

क्योंकि प्यादों को पीछे हटने की -
शतरंज में कतई मनाई है .
हाँ राजा वजीर की और बात है -
पर पैदल की भला क्या बिसात है -

ये अक्सर आगे बढ़ता है -
और मारा जाता है - हर बार .
हाँ कभी कभी- गद्दी भी पा लेता है ,
'बहादुर' से लाल बहादुर बन जाता है
पर हर बार ऐसा नहीं होता -
हर आदमी 'बहादुर' तो होता है पर
लाल बहादुर नहीं होता "

Friday, March 18, 2011

सड़क पे धक्के खाता ,

सड़क पे धक्के खाता ,
उठता -गिरता लडखडाता
आम आदमी -लम्बी लाइन तोडके ,
उम्र से पहले ही -स्वर्ग जाता आदमी .

इस देश में - धडल्ले से
बिकते हैं -बड़े सपने -पर
आधी उम्र बीत जाती है -
उन्हें  देखने-समझने और खोने में  .
पूरी जिन्दगी निकल जाती है,
आम आदमी से  ख़ास होने में  .






हे पथिक तुम कौन हो -

हे पथिक तुम कौन हो -
किस लिए इतने मौन हो .
दुनियां- सारा जहाँ .
स्नेह के आवलंबन छोड़ -
क्यों चले आये यहाँ ?

मेरे पास कुछ भी तो नहीं उपहार -
तुम्हारी प्रतिबधता के उत्तर में.
दे सकता हूँ केवल निर्मल प्यार .
यहाँ -बस यही उपजता है  .
जो मैं किसी को दे सकता हूँ.

मैं देव नहीं हूँ - फिर भी
उनके सानिग्ध्य में  रहता हूँ.
अपने अंतर्मन की व्यथा -समभाव
से सहता हूँ -किसी से नहीं कहता हूँ .

अभी तो महंदी हाथों से  छूटी नहीं -
आशा की डोर पतंग सी उड़ रही है -
कटी नहीं टूटी नहीं -
फिर क्यों आ गए इस कानन में -
कुछ  तो बताओ क्या है -तेरे मन में .

ये एकतरफा रास्ता आगे नहीं जाता-
जाने वाला वापिस लौट कभी नहीं आता .
आगे क्षितिज की कल्पित सीमा रेखा -
धरती आकाश को जोड़ देती है  -
पर एक अनंत -सफ़र के लिए .-
अपने सारे बंधन खोल देती है -







Thursday, March 17, 2011

दरख़्त की शिराओं से


दरख़्त की शिराओं से -
पूछो कैसे बीती जिन्दगी,
चिलचिलाती धुप -
पुरवैया हवाओं से- पूछो
कंपकंपाती तीखी सर्द फिजाओं से -
कि कैसे जिस्म हो जाता है -कंगाल 
रूह कैसे हो जाती है फ़ना -
मौसम से नहीं - मेरी
मरती -चटखती हुई शिराओं से -
पूछो कैसे बीती जिन्दगी .

Wednesday, March 16, 2011

जो मेरे हो तो मेरे हो जाओ तो सही .

कभी खुद को अलग अपने
साए से - करके दिखाओ तो सही .

आँखों में इंतज़ार लिए बैठा हूँ -
कभी चुपके से - चले आओ तो सही .

जख्म गहरे तो नहीं लगतें है -
पट्टियाँ खोल के दिखलाओ तो सही .

मेहरबां दिखने  से कुछ नहीं होता -
जो मेरे हो तो मेरे हो जाओ तो सही .



होली है ! होली है !

बहूत देर सोये अब  - चलो जागो ,
होली का हुडदंग हैं - अरे बचो भागो .
कौन कहता है - दिल उनका तंग है ,
देखो तो सही - उनके हाथ में भी रंग है .

जाने किसका किसके साथ संग है ,
इतना बड़ा महुल्ला - भी लगता तंग है .
हर शख्स की अपनी ही तरंग है -
कोई सुरा में धूत,किसी के हाथ में भंग है.

बचके चलना -मुश्किल ,हर तरफ रंग है
रंग पूछ कर डालना -किसी पर यारो .
जिनका कद तो बड़ा-पर दिल जरा तंग है .
कोई कहीं कर ना दे तुम्हारे रंग में भंग है .

रंग सतरंगी -बिखरे हों मेरे सपनो से,
ना कोई गैर - लगने लगे सारे अपनों से.
घर आँगन पूरो , जब हाथों में रंगोली है
कोई चुपके से कहे कान में - होली है ! होली है !!!! .


 







दोष कुम्हार का नहीं -

दोष कुम्हार का नहीं -
चाक का भी नहीं ,
कोई बर्तन फिर
सीधा क्यों नहीं बनता.
ये मिटटी ही ख़राब है यार.

भुरभुरी -मिटटी को
और गूँथ अभी -चिकनी बना
पैरो के अभी और थोड़े लोच लगा .
ये हाथों में तभी मान पाएगी -
जब पैरों से अच्छी तरह गूंथी जायेगी .

तभी बनेगी -कोई मूरत
जब धूप में सूखेगी- आवे में आंच खाएगी
तभी तो भाव जागेगें और -लोग द्वारा
भगवान की तरह पूजी जाएगी .

Saturday, March 12, 2011

मत ढून्ढ भविष्य के- शिलालेखों पे अपनी जीत के निशान

मत ढून्ढ भविष्य के-
शिलालेखों पे अपनी जीत के  निशान ,
जिन्दगी कोई खेल नहीं है श्रीमान .

तेरे बाप दादा ने -मुर्गे बटेर लड़ाए थे -
वे चर्चे -सोच के तो देख  -
कितने दिन तेरे काम आये थे .

तेंदुलकर ने मैच में -
कितने शतक  बनाये थे,
तुझे क्या मिला -
वो तेरे और देश से ज्यादा तो -
उसके घर परिवार के काम आए थे .
  
वो दिन गए जब खेल खेल में -
पांडवों को श्रीकृष्ण ने महाभारत
के युद्ध जिताया था .
चीन से हुई जंग में -
तुझे बचाने आखिर कौन आया था .
 
जमाना बदल गया -बदल गए
सुर-ताल -तेरे नेताओं का 
हो चूका है बुरा हाल .
ये त्रेता नहीं कलयुग है -मेरे लाल .

संभल जा अब भी -
आज  तेरा हर पग -
हर क्षेत्र में पगा होना चाहिए. 
कोई गैर ना रहे -तू सबका सगा होना चाहिए  .

भविष्य के शिलालेखों में तू ही तू हो -
बस स्वर्णाक्षरो में हर जगह -
तेरा ही नाम लिखा होना चाहिए .

 


तू मेरा सफ़र भी है

तू  मेरा  सफ़र  भी  है  मंजिल  भी  -
क्या फर्क है  -वो हो सुबह शाम या रात
मुझे बता सो सही -घर से कब निकलना है .
अकेले साए का भी चलने में क्या चलना है .


जिन्दगी बस गीत है क्या

जिन्दगी बस गीत है क्या -
ये मधुर संगीत है क्या .
जाम हाथो में सजा कर -
विरह मन की यूँ बढ़ा कर.
जिन्दगी कटती नहीं -
यूँ गीत गाकर गुनगुना कर .

क्या मिलेगा रास्ता -तुमको अकेले ,
जिन्दगी चौरास्ता पे आ खड़ी है-
चाहतो की गिर रही -रिमझिम झड़ी है .

जिस तरह चाहे सजा लो -इन सुरों को
ये कोई हमदम या -मन का मीत है क्या ?
अकेलापन साज है- या नया फिर गीत है क्या ?

खो ना जाओ -रास्तों में जिन्दगी के
चल सके जो साथ कोई - साथ ले ले ,
चाहतें अंगड़ाइया लेने लगी अब -
सोच लो हो तुम अकेले -हम अकेले.

Thursday, March 10, 2011

एक युद्ध आज भी कहीं ना कही जारी है -


मेरे हृदय की असीम गहराइयों में
एक युद्ध आज भी कहीं ना कही जारी है -
तुम नहीं जानते - ये  महाभारत
की  खेली जानी वाली दूसरी पारी है .
सभी पात्र मौजूद हैं -
बस कृष्ण की इंतजारी है.

उस छलिया का क्या पता -
अब कौन मुझे बतलायेगा . 
ना जाने कौन से रास्ते - डगर,
से कब और कैसे वो आएगा  .

कलयुग का प्रथम चरण है -क्या 
कोई तरकीब नहीं उसे जल्दी-
से बुलाने की , कोई आशा नहीं
अब उसके तुरत चले आने की.

क्या होगा इस महाभारत का
अंजाम -कौन बचेगा बाकी -और
कौन आएगा काम ,अभी से क्या
लगायें अनुमान .

लड़ने के ढंग तरीके -बदल गए
युद्ध तीर तलवारों से नहीं -अब
बदलते विचारों से लड़ा जाएगा.
रक्तहीन, निशस्त्र होगा -बस
हथियार होंगे केवल शब्द .
 
कलयुग में कौरव -
गिनती में-बहूत कम हैं -
आज यहाँ हर व्यक्ति
पांडव और कृष्ण हैं .







कौन हूँ मैं.

मैं वही हूँ - खोज लाया था ,
बिना पतवार के -आयाम सारे
मध्य लहरों में भरे तूफ़ान से-
सागर किनारे .

मौन की भाषा सिखाई - प्रेम से
विश्वाश द्वारे - कौन लाया था .
तुम्हारे वास्ते - दिखाए रास्ते,
आसान करने -कौन आया था .

बोलती सारी खुदाई -मौन हूँ मैं ,
आज खुद से पूछते हो -कौन हूँ मैं.

गम है ना ख़ुशी है -

गम है ना ख़ुशी है -
बस ठीक से हैं आज कल
तू है ना कमी है -
कैसे कहें ये आज कल .

आँखों में नमी है ना -
पानी की कमी है -
रोने की ये कैसी -
आदत बनी है -आजकल

दो चार गिरहें और -
काटेंगे अभी और
जाने ये कैसे चोर -
होने लगे हैं -आजकल.

जज्बात के दरिया में -
पत्थर की चली नाव.
सर पर हैं अब चुनाव -
कैसे लड़ेंगे -आजकल

पेट्रोल -और डीजल,
सब हो गए महंगे -
चल चल के मरगये -
हम सोचते हैं आजकल .

ना राख ही मिली -
ना हाड का पता .
कैसे ये फिर जला -
सब पूछते हैं- आजकल.

कैसा ये देश है -
नेता दरवेश है -
अवाम लापता
सब ढूँढ़ते हैं- आजकल.

ये भगवान विष्णु क्षीर सागर में

ये भगवान विष्णु क्षीर सागर में -
शेष नाग की छतरी तले ,
कमल की शैया पर क्यों सोते हैं
शेषनाग के दाँत तो बहुत विषैले होते है .

ये कैसा विरोधाभास है -
विरक्त है और लक्ष्मी पास है.
हम क्या जाने -ये तो वही जाने-
सुनी सुनाई बात सच कैसे माने .

हम इंसान तो - काटों के बिछोने पे
संसार सागर के -अनाम कोने पे
माया के छत्र तले -हर दम सोते  हैं-
हमारे दुःख दर्द तो -भगवान के
कद से भी - बड़े होतें हैं .

सोनियाजी की शतरंज - बिसात है  
आपके सम्मुख हमारी तो भला
मनमोहन से ज्यादा क्या औकात है .
पर मान ले हममे भी कुछ तो बात है .

तेरी तू जाने -मैं तो अपनी जानता हूँ
खुद को तुझ से बड़ा मानता हूँ .
अरे भगवान बन के रहना  -बहुत आसान  है,
दो घडी को बन तो सही  इंसान -
और आजा सीधे मेरे हिंदुस्तान.
मेरा दावा है - या तो तू इंसान बनाना
भूल जाएगा और या तू भगवान बनना.
 

Tuesday, March 8, 2011

हम आपके हैं कौन ?

कभी चाँद से बदली  में ,
दीखते हो छुप जाते हो ,
कभी खुल के मिलते हो -
बहूत बतियाते हो -और
कभी बिना देखे ही -
चुपके से निकल जाते हो .

तुम कौन हो मेरे -
कभी तफसील से समझाते हो -
और कभी यूँ ही बदले बदले से
जाने क्यों नजर आते हो .

बड़ी उलझन में हूँ -
सब हैं मौन -आखिर
कोई तो बताये -
हम आपके हैं कौन ?

Monday, March 7, 2011

तुतलाई जुबान से जब - तुने मुझे पापा कहा .

तुतलाई जुबान से जब -
तुने मुझे पापा कहा .
एक क्षण को भूल गया था -मैं
अपने आप को -तुझ से जुड़े
अपनी जिम्मेदारियों
के अहसास को .

फिर अमर बेल सी - जाने
कैसे लिपटती चली गयी थी -
मेरे  अस्तित्व से - पर हर
बार याद आ जाता था तुझसे जुड़ा-
मेरा कर्तव्य बोध .

बहूत खुश नहीं था -जब
तुने छू ली  थी -आकाश की
बुलंदियां को - लिख दिया था
मेरा नाम -अपने नाम से पहले .
पर मेरे कर्तव्य बोध ने -फिर से
मुझे सावधान  किया था .

और आज दुल्हन के रूप में -
देख रहा हूँ सजे हुए -तुझे
अपने से अलग -करने के
मेरे सपने साकार हो गए हैं  .

मेरे आँखों के समंदर अब -
छलकने को हैं -पर जज्ब कर लेता हूँ
पलकों के भीतर ही -ना जाने क्यों .
लगता है ये घर की बहार -ना मालूम
अब वापिस लौटेगी भी या नहीं .

अपने बगीचे की सबसे सुंदर
जूही की कलम -लगा दी थी
किसी और के उपवन  में -
खुशबुओं के विस्तार के लिए .
ममता और प्यार के लिए .
इस महा मत्स्य को अपने
विस्तार के लिए- घर का
फिश अक्वारियम अब -
छोटा पड़ने लगा था .

अकेला रह गया हूँ -आज
अपने ही घर में -अजनबी सा .
सब कुछ है -सब लोग हैं ,
पर तेरे बिना -कुछ भी नहीं है .

चौंक जाता हूँ - तभी उस
चिर परिचित आवाज़ से .
मैं आ गयी हूँ पापा -
नजरें भर आई हैं -पर
नहीं - अब ये सब नहीं .
क्यों की मूलधन के साथ
सूद भी लौट आया है आज .
राजकुमारी के साथ -
एक राजकुमार भी है.



,

ये नदी -सतत बहती हुई

ये नदी -सतत बहती हुई -
मेरे आने वाले कल को,
मेरे आज से मिलाती है .
शांत रहती है - अंतर में उमड़ते
तूफानों को बेतरह छुपाती है.

मैं चुप नहीं रह सकता- तुम
कुछ भी कहो -चले जाओ
मेरा साथ छोड़ या -
फिर साथ रहो .

यहाँ मैं हूँ - बस
या ये नदी-
जो बहूत कुछ कहती है -
रुक जाना -जीवन नहीं है
इसी लिए शायद -और उद्दाम वेग से
बहती है .

मेरी कविता मेरे एकांत का नहीं-
मेरे पल भर के मौन का प्रतिफल है
मैं शांत हूँ - पर
कविता में मेरे हलचल है .

मुझ पर विश्वाश कर -मैं खुद को अमर कर दूंगा ,

मुझ पर विश्वाश कर -मैं
खुद को अमर कर दूंगा ,
तुम्हारी मांग मैं -
अपने लहू से भर दूंगा .

सुबह का आस्मां -और शाम
रतनार - मुझे प्रिय है
लाल रंग यार .

खून में पसीना जब-
आ के घुलता है तभी मेहनत का-
सुफल मिलता है -
माली जब मन से सींचता -उपवन
तभी हर एक फूल खिलता है .

रास्ते- तेरे मेरे अलग होंगे ,
मंजिलें तो अलग नहीं - ऐ दोस्त ,
घर -मोहल्ले जुदा ही सही-
पर वतन तो एक है

तेरी मेरी पीड़ा -फिर तेरी मेरी
कहाँ रह जाती है -
जब कविता सारे दर्द को -
सह जाती है .

तू चल ना साथ मेरे

तू चल ना साथ मेरे -
चलना सिखला दूंगा .
बातों ही बातों में-
सब कुछ समझा दूंगा.

पथ के भारी पत्थर -
रस्ता जब रोकेंगे ,
ये मीलों के पत्थर -
हर पल जब टोकेंगे.

इनको सरका दूंगा ,
उनको दरका दूंगा -
तू चल ना साथ मेरे
चलना सिखला दूंगा .

आये ना साथ कोई -
मैं हूँ ना साथ तेरे,
नहीं हारेगा अब तू -
लाखों हैं हाथ तेरे .

मंजिल मिल जाए तुझे -
रस्ते अनजान ना हों -
हम तुम हैं एक -भले
चाहे पहचान न हो .

ऐ मेरे वतन -बता मैं तेरे लिए क्या करूँ !

ऐ मेरे वतन -बता मैं तेरे लिए
क्या करूँ !
तेरे लिए जिन्दा रहूँ -या तेरी
खातिर मरूं .

मेरे सीने में गड़े ये दुश्मनों के तीर
टीस अनवरत उठ रही है -
घाव अति गंभीर ,

युद्ध का आवाहन करूँ -या
शर शैया पर भीष्म सा सो जाऊं -या
किसी कृष्ण के प्रतीक्षा में -
बूढ़ा हो जाऊं .
सूर्य की दिशा बदलने का -
इंतज़ार आखिर मैं क्यों करूँ .

मैं ही ब्रह्म हूँ - क्यों भूल जाऊं
मेरा कर्म ही धर्म है - फिर
जमाना मुझे भूल जाए -या
याद रखे जमानो तक -इस की
चिंता मैं क्यों करूँ -
मरने से पहले -आखिर क्यों मरूं .
अब सभी कुछ है स्वीकार ,
फिर भले जीत मिले या फिर हार .

जंग लम्बी है - समय नहीं है मेरे पास

जंग लम्बी है -
समय नहीं है मेरे पास
उम्र के इस आखिरी मुकाम पर,
और व्यर्थ गंवाने को .
कहाँ से लाऊंगा मैं वक्त -
हंसने-हंसाने और गाने को .

तुम भी तैयारी कर लो -
युद्ध की भैंरी-बस बजने को है .
कुरुक्षेत्र में दोनों और की सेनाएं
सजने को हैं .
ये वक्त निकल गया तो -फिर
हाथ नहीं आएगा - सोचता है क्या ?
जो होगा देखा जायेगा .

ये युद्ध बिना कृष्ण के लड़ा जायेगा
तलाश सिर्फ अर्जुन की है मुझे
वो कहाँ से आएगा ?
मैं जानता हूँ -यह युद्ध
कुरुक्षेत्र मैं नहीं - मेरे हृदय में
सबसे पहले लड़ा जाएगा.

हमारा हिंदुस्तान , क्या है मेरा यहाँ

हमारा हिंदुस्तान ,
क्या है मेरा यहाँ -सिर्फ
एक छोटा सा ५५ गज का मकान ,
फिर भी मैं कहता हूँ - 'मेरा'
भारत 'सबसे' महान .

यहाँ मंत्रीमंडल तो है -पर
नहीं है अपनी कोई
संसदनुमा दूकान , जहाँ
पाते हैं खैराते पगार -
तथाकथित 'श्रीमान' .

इस बात का रहे ध्यान ,
बाकी सब ठीक है -मित्र ,
दोस्ती पक्की -खर्चा
अपना अपना .

आइने कभी झूठ नहीं बोलते

आइने कभी झूठ नहीं बोलते -
बुत कभी सच नहीं कहते ,
क्यों की वे अब नहीं है .
पर आइने तो यहाँ वहां -
सब जगह बिखरे पड़े हैं ,
हर कही हैं .

तू मेरी आँखों में निहार
अपनी बिंदी ठीक कर-
बाल संवार.
क्यों की हम तुम -
दोनों ही आइने हैं .

व्यक्ति ताउम्र स्वयं को
आइनों में -या फिर
दूसरों में देखता है -
कभी उसके जैसा बन जाता है -
या खुद को वैसा बना लेता है .

इल्तिजा है दोस्तों - आइने
साफ़ रखो -धुल ना जमने पाए
क्या पता कोई खुद को देखने
इसमें कब चला आये .

सुख यदि फल है ऊँचे दरखत का

सुख यदि फल है ऊँचे दरखत का,
तो तोड़ कर ला तो सही-
पूरी दुनिया-जहान को दिखला तो सही
इसकी कलम अपने उपवन में
लगा तो सही .

पर ये सच नहीं है -दोस्तों
सुख की ये परिकल्पना ही
व्यर्थ है - इसके तो दुसरे ही
सारगर्भित अर्थ हैं .

सुखी वो है -जिसने सुख को
जान लिया -मान लिया.
जो है -जितना है , उसी में संतुष्ट है
ज्यादा की लालसा नहीं करता .
आज के लिए जीता है- कल के
लिए नहीं मरता .

ना की वो जो वर्तमान में -
बहूत है या कम है -उससे खुश नहीं,
और ज्यादा की हवस रखता है,
कल के लिए मरता है , आज जो
सत्य है शाश्वत है- उसका
ध्यान नहीं करता है .

भावनाओ के साथ जो बहते हैं

भावनाओ के साथ जो बहते हैं -
वे अक्सर घाटे में रहतें हैं.

जो कायर हैं - बहाव के साथ बहतें हैं
बिना श्रम के - मौका मिला तो
फायदे मे रहतें हैं .

दिलेर पुरुष -हमेशा तुफानो के
रुख मोड़ते हैं - सफल हो तो
दुनिया का ताज पाते हैं ,
काम आये तो -इतिहास में लिखे जाते हैं .

अब प्रशस्ति गान छोडो,

अब प्रशस्ति गान छोडो,
कोई विप्लव तान छेड़ो.
महा प्रलय के गीत गाओ,
अब नहीं तुम हिचकिचाओ

आसमां और इस धरा पर,
दुश्मनों का वास ना हो .
मत पढो -इतिहास वीरो ,
स्वयम नया इतिहास रच दो .

सामने पर्वत बड़ा हो
सिन्धु मुंह बाए खड़ा हो
क्या बिगाड़ें मुश्किलें फिर ,
हौसले का तीर लेकर ,
निकल पड़ शमशीर लेकर.

एक धरती गोल है बस
ये निराला ढोल है बस -
चीर कर सीना -हलों से
स्वर्ण और मुक्ता निकालो .

कायरों का शोर है बस-
ये अरि मुहजोर है बस ,
यूँ बड़ा कमजोर है बस .
जनाजा इसका निकालो .

गीत गाते गाते - लोग चीखते-चिल्लाते क्यों हैं

गीत गाते गाते - लोग चीखते-चिल्लाते क्यों हैं
सुर-ताल नहीं जानते तो -
फिर गाते क्यों हैं.

मैंने लिख दिया - तुमने पढ़ लिया,
इतना नहीं है काफी , बाकी को जाने दो
कोई और आएगा - अपना दिल जलाएगा.

ये बेसमय का राग -किसी की समझ में
नहीं आएगा -लोग सड़कों पर
उतर आये ,तो तू भाग भी नहीं पायेगा .
और बेमतलब अपनी जान से जाएगा.

चलो तुमने गा भी लिया तो -किसी से
ना कहना - वर्ना बताने के काबिल भी
नहीं रह जाओगे -की तुमने क्या गाया
क्या गवाया .

अरे बच्चों की कविता नहीं है- ये
तो तोप का गोला है - दागने वाला
भी जान से हाथ धोता है -वैसे
लाल रंग कोई होली खेलने का
रंग नहीं होता है .

मेरी मान -गाने की जिद्द मत कर
जल्दबाजी मे -मुंह जल जाएगा .
ना उगल पायेगा -ना ही निगल पायेगा .
वैसे बिना गाये भी तेरा काम चल जायेगा .

चीखने -चिल्लाने से

चीखने -चिल्लाने से , नारे लगाने से
रोने और गाने से -
कुछ होने हुवाने वाला नहीं .

आपस में सर जोड़ कर -
बिना किसी पूर्वाग्रह के ,
आइये सोचें .
और ढूंढ लाये-गहरे सागर से
सीपियाँ -निकाल ले उनमे से
सच्चे मोती -जिनकी चमक
कभी कम नहीं होती .

अपने- अपने हितों का ,
बलिदान करना पड़ता है ,
सभी की चिंता और हितों का -
ध्यान/सम्मान करना पड़ता है.
मछली की आंख को,
निशाना लगाने से पहले -
शर-संधान करना पड़ता है.

ऐसे ही नहीं करती वरण द्रोपदी
उसे स्वयंबर में जीतना होता है .

तभी महाभारत में विजय मिलती है
पांडवों को हर क्षण दूसरों से ही नहीं -
अपनों से भी लड़ना पड़ता है .

हम सभी को -जीवन में ,
पञ्च विकारों से लड़ना पड़ता है.
पर ध्यान रहे - पांचाली को
पांच पतियों की ब्याहता होते हुए भी
पतिव्रत धारण करना पड़ता है .

क्षणिकाएं

वो शक्श कौन था जो- भर दुपहरी में
अँधेरा ओढ कर आया -और
चुपके से रौशनी बाँट कर
वापिस चला गया .

रूठ जाना तो कोई बड़ी बात नहीं -
रूठ के मन भी तो जाना चाहिए.
मन जो लगता नहीं कहीं भी यार 
किसी से दिल लगाना चाहिए .

कितना मुख़्तसर सा था सफ़र अपना ,
ना कोई घर था, ना कोई घर का सपना .

लौट जाते हैं थक कर लोग जब
दरवाजे की कुंडिया खडका कर -
गिर जाती है उम्मीद-की दिवार
भरभरा कर .

मैं भी हारा ना था - और जीता भी नहीं कोई
युहीं आपस में लड़ते रहे हम तमाम उम्र .

उम्र भर ढूँढता रहा जिसको - जो मेरा कभी था ही नहीं
कमबख्त, ये किसी दूसरे की आंख का सपना तो नहीं.

फिर कोई फूल मुस्कुरा के जब खिलखिलाया,
अपना गुज़रा बचपन - तब बहूत याद आया.


करते हैं इश्क - मादरे हिन्दोस्तान से ,
रब से कभी, खुद से कभी, पुरे जहान से .


सूरत नहीं सीरत नहीं - है कुछ नहीं खुदा   
मैं पशोपश में हूँ - तुझे अब पेश क्या करू .

बातें अजीब हैं मेरी - समझेंगे नहीं लोग 

खुदको समझ सका नहीं - वो आदमी हूँ मैं .

दिल नहीं चाहता 
खो जाऊं तो - 
ढूंढे कोई मुझे .
बड़ी मुश्किल से - 
खुदको भूलकर - 
उसका हुआ हूँ मैं .

गाफिल नहीं - सोया नहीं 
पाया नहीं खोया नहीं .
ढूंढो जरा यारो - मुझे 
मैं ना जाने कहाँ हूँ .

वो हम नहीं हमसा कोई और नहीं और होगा 
पाया कहाँ हूँ खुदको अभी तक ढून्ढ रहा हूँ . 

खुदा को ढूँढना आसाँ -
है खुदको ढूँढना मुश्किल .

खुद से बेगाना हो - उसको अपना बना लिया 
सच है की जो खो गया - उसने उसे पा लिया .

झूनझुनों से खेलता देश 
ये आयातित सोच -
नए जमाने के तरीके - 
तौर भी है - हाकिम से पूछो 
जो दे सके जवाब तो -
सवाल और भी हैं .















यूँ ही हम देखते से रहते हैं

यूँ ही हम देखते से रहते हैं , सुबह का शाम से मिला करना ,
सूखे पत्तों का झरझरा कर के- शाख से टूट कर गिरा करना,
फिर कोई जख्म दे गया शायद , क्या किसी से गिला करना
सिलसिला ये भी टूट जाएगा , बस जरा देख कर चला करना .

गुड्डे गुड़ियों के खेल पुराने हुए

गुड्डे गुड़ियों के खेल पुराने हुए ,
बचपन को गुजरे ज़माने हुए .
पलट के देखता क्या है -
एक तरफ़ा ट्रेफिक है -

प्यादे सी -जिन्दगी.
आगे ही बढती जाती है
यहाँ से वापिसी नहीं होती .
मिलती है जीत या फिर मात.

राजा-वजीर, घोड़े-हाथी
को बचाने के चक्कर में
मिल जाती है - मौत .

हाँ कभी कभी -खेल में
बेमौसम की बरसात -
खेल को ड्रा भी कर देती है,
जहाँ ना जीत होती है ना हार .

पर कभी कभी -प्यादा भी
राजा को शय/मात दे जाता है
जब कोई पैदल (प्यादा )
अपनी सारी हदें पार कर
बहूत आगे निकल जाता है .

आग पानी , दिल की - दरिया सी रवानी

आग पानी ,
दिल की - दरिया सी रवानी
उन्मुक्तता की हदें ना पार करे .
शोखियाँ फूलों से ना रार करे.

छल कपट -झूट फरेब हट जाएँ.
प्रेम ,विश्वाश के रिश्ते बस-
केवल तुम तक रहें ,
बाकी सब सिमट जाए .

सुबह की बेला है ,
अब जाग भी जाओ यार
जगाने के लिए -यूँ
ना किसी का इंतजार करें

फिर बसंत क्या -पतझर क्या

फिर बसंत क्या -पतझर क्या
क्या फर्क है मुझे -समझा जरा .

ये सुर्ख गुलाब -की कलि ,
तू चाहे तो देख ले -गली गली .
प्रेम के खेल में ,वासना के मेल में

जो हिन्दुस्तानी ना रहा -वो
फिरंगी बनेगा क्या ?
इनकी जवानी क्या - जो बंध गया
उस दरिया की रवानी क्या .

कोडियों के मोल में -बिना किसी
भाव तोल में ,इससे ज्यादा और क्या
पायेगा -जिसे आज की चिंता नहीं ,
कल जो होगा देखा जाएगा .

ये जिन्दगी तो मस्त फ़ानी है -
हर जवान ,हर नवयोवना की -
बस एक सी कहानी है .

इतनी तेज रफ़्तार -
कोई कमो बेशी नहीं यार.
चलते चलते पढ़ते -खाते है .
मेट्रो में चढ़ने से उतरने तक ,
मोबाइल पर लगातार-
जाने किस-किस से बतियातें है .

क्या देंगे ये देश को -जिनका
सपना विलायती है -देश तो परदेश है
माँ बाप ने सीधी फ्लाईट इन्हें
यू एस की पकडानी है .

अगल -बगल से मत छाँट

अगल -बगल से मत छाँट,
तेरे मेरे में इसे मत बाँट .
इस विलायती कीकर को
सीधे सीधे -जड़ समेत काट .

शहद और मट्ठा इनकी जड़ो में -
चाणक्य की तरह सींच -
तभी बनेगा देश -एक महादेश
तभी होगा इसका सम्पूर्ण
और सही अभिषेक.

मेरी सोच -

मेरी सोच -मेरे घर आँगन की
सीमा रेखा -नहीं लांघ पाती.
सच कहूं तो -मेरे घर-खेत खलिहान
से आगे नहीं जाती .

ये देश -धर्म ,समाज
किस चिड़िया का नाम है-
कहाँ से आई -कभी
पहले तो नहीं सुना भाई.

समस्याओं की भरमार है -
घर में गृहणी है-सुबह का
अखबार है -सबका
एक ही विचार है.

अपने अतीत के सपनो से
संतुष्ट हो मत सो -इतिहास
कितना ही स्वर्णिम हो -का बोझ
अपने कंधों पर मत ढो.

कुछ नया कर -नया सोच ,
सर्प के फ़न पर दृष्टि रख
मौका मिलते ही दबोच -वर्ना
ये हम सबको अजगर की मानिंद
समूचा ही निगल जाएगा -
तुम्हे खबर लगने से पहले ही ,
सारी दुनिया को पता चल जाएगा .

कहीं का नहीं रहेगा तब - इससे पहले
की देर हो जाए -और कोई नया
फिरंगी तेरे तट पर तम्बू तान दे .
अपने अतीत से सीख ले -और
जंग करने की ठान ले .

तभी बच पायेगा -
तेरा घर इटली में तो है नहीं -
सोच फिर कहाँ जाएगा .

ये कहाँ आ गए हम

ये कहाँ आ गए हम -
क्या ढूँढने निकले थे -
क्या पा गए हम .

किंतनी बेचारगी है-
कभी ऐसी तो ना थी -
बर्फ की ये नदी -कभी
जमी ऐसी तो ना थी .

रास्ते काँटों भरे - ऐसे तो ना थे
रहनुमा यार -सब ऐसे तो ना थे .
कारवां -लूट गया दिन के उजाले में
हमारे दिन कभी ऐसे तो ना थे .

रात भर छत पर बरसते रहे पत्थर,
अजीब लोग है सब ये -मेरे
पडोसी कभी ऐसे तो ना थे

कहाँ पे जाके रहिएगा -
कहाँ दिल को लागाओगे,
वतन अपना है फिर भी-
दूर इससे कैसे जाओगे .

क्षणिकाएं

कल तलक मैं एक था -
और आज बंट गया अनेकों में .
कई बार लगता है जैसे -
आइना हो गया हूँ मैं .

बहूत आसां है -हँसना खुद पर ,
मुस्कुराना -भी तो आना चाहिए.
तमाशा बनने बनाने से पहले ,
मदारी का हुनर भी तो -
सीखना सिखलाना चाहिए.

फिर किसी रोज -कभी फुर्सत में ,
बड़ी फुर्सत से हो -बड़ी फुर्सत में.

इश्क की हद देखें - या अपनी सरहद देखें
ना हम से ये पार होती है -ना वो पार होती है.

अंजामे इश्क देखें , की आगजे हुस्न -यारो ,
जीवन का झमेला है -इक पल का तमाशा ये.

जिन्दगी गर खेल है - तो
फिर इससे इतना प्यार क्या .
खेल तो खेल ही है दोस्त ,
फिर इसमें जीत क्या -हार क्या.

मैं कोई राझां नहीं -हीर नहीं ,
कोई ग़ालिब नहीं -फकीर नहीं .
दो लफ्ज कि दरकार -नहीं कुछ और ,
कमसे कम अब तो कह दीजिये 'वाह'.










मिले कीमत -सही

मिले कीमत -सही ,
तो बिकने को तैयार हूँ मैं -
अपने आप से सचमुच -
बहूत बेजार हूँ मैं.
उतना बुधू नहीं हूँ अब -काफी
समझदार हूँ मैं .

अब किसी से गिला क्या
कीजिये - मंडी सजी है ,
हर तरफ - तुम्हारी एक ,
नजर का तलबगार हूँ मैं .

तेरे करने से कुछ नहीं होना ,
बेकार अब लहसुन -प्याज का रोना .
मिल गया क्या -और क्या खोना.
बिक जाएँ तो सारे घोड़े -
बेचकर सोना .

बचा अब आखिरी हूँ मैं -फिर
भाव-ताव क्या होना .
कसोटी पर परख - मैं हूँ
शुद्ध -निखालिस खरा सोना .

खरीदेगा तो - तर जाएगा,
जो मर गया भी तो -बैकुंठ पायेगा .
ना ख़रीदा तो -बाद में पछतायेगा .
वो एक दिन -याद रख जरुर आएगा,
जब तू इस नाचीज का -
ना मोल चूका पायेगा .

मैं समंदर हूँ - तू नदी है

मैं समंदर हूँ - तू नदी है ,
मैं कंही-कहीं हूँ - तू हर कही हैं.
कितनी अजीब सी तलाश है
समंदर हूँ फिर भी दिल में प्यास है .

तू नदी है फिर भी उदास है -
मेरी तो जिन्दगी ही लहरों के
साथ है -बहता नहीं हूँ , बन्धनों में
रहता नहीं हूँ .

तू बहना तो चाहती है ,जाने कितने बांध
तेरा रास्ता रोकते हैं.
किसी को-अपना कहना तो चाहती है-पर
तेरे अपने लोग -तुम्हे टोकते हैं .

क्या जिन्दगी है -तुम्हारी
बस बहना - बहते बहते मुझ में खो जाना ,
थक हार कर मेरे आंचल में सो जाना.

चलो - बाँट ले

चलते हैं साथ साथ चलो - बाँट ले
अपनी अपनी तन्हाईयाँ .
रास्ते क्या हैं जिन्दगी के-
बस खंदकें और खाइयाँ .

रुसवाइयों से दुनियां के -
बच बच के चलो -नजरें
तेज हैं ज़माने की और-
दूर तक हैं -आपकी परछाईयाँ.

ना लगे दिल तो -दिल को लगा
किसी गैर मजलूम को -अपना बना .
फिर अकेलापन-अकेला रहेगा ,
बन जाएगी इकाई से दहाईयां .

ज्यादा मत सोच विचार

ज्यादा मत सोच विचार ,
जिन्दगी क्षणिक है यार .
जो सच्चा सोना है-
उसका क्या खोना है -
होगा जो होना है
प्यार ही को ओढ़ ले -
प्यार का बिछोना है .

कल -जो कल बीत गया ,
हारा या जीता गया .
पलट के ना आएगा .
क्या उसका पाना फिर -
क्या उसका खोना है .
कल का रोना तो-
बेकार का रोना है .

आज मेरे सामने है -
तीर अब कमान में है ,
तू किस के ध्यान में है -
जाग इसको खोना ना-
बाद में फिर रोना ना .
जी भर के जी ले इसे-
यही तेरा होना है .

कल किसने देखा है,
कल किसने जाना है .
किस्मत का लेखा है ,
वाक्य ये पुराना है .
अभी से क्या फ़िक्र करें ,
जीते जी कौन मरे .
कौन किससे रूठेगा -
कौन फिर मनायेगा .
होगा जब होगा-
तब देखा जाएगा .

शब्द समर्थ नहीं होगें

शब्द समर्थ नहीं होगें - पर
भाव कमजोर नहीं है यार .
समझने की कौशिश कर ,
कुछ तो तू कर -विचार .

सीमित उम्र और - सफ़र
अनंत हो चला, याद कर
आज तक कितना-रुका
कितना चला .

दायरे में बंधा मत रह-
बाहर निकल आ -
क्या पाया क्या खो दिया -
दुनिया को कुछ तो बतला .

चलने से- ना चल पाने की-
पीड़ा मिट जाती है.
कभी कभी यूँ ही गिरते-
संभलते -जाने कितनी ,
रास्ते -राहें निकल आती हैं.

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में -सभी
तो गतिशील हैं - जहाँ रुक
जाना -मौत और
चलना ही जीवन है.

चले थे बांध कर -पांवों में इन्कलाब जो

चले थे बांध कर -पांवों में इन्कलाब जो
वो लोग क्या हुए ,वो वादे -इरादे कहाँ गए .
लौटती भीड़ के हांथों में चंद पोस्टर मिले
जलती मशालें -हाथ में थामे हुए भाले कहाँ गए .

अब चीखना मना -है फुसफुसाना भी मना ,
रोना भी बंद है ,यहाँ कराहना भी मना .
सरकारी- गजट अखबार , टी.वी रेडियो भी है ,
गाना भी बंद है यहाँ -गुनगुनाना भी मना .

क्षणिकाएं

गाते तो बहुत हैं ,गुनगुनाता हैं कोई कोई
दिल से लिखे गीत-दिल से गाता है कोई कोई.

कहाँ है वो सुबह - उषा की लालिमा लिए हुए
कहाँ है वो शाम - सुरमई आंचल लपेटे हुए
वो रात भी होगी -यहीं कहीं ,चलो ढूंढ़ ले
सितारे गोद में -आँखों में सपने लिए हुए .

दुःख की कोई बात नहीं -दिन है यारो रात नहीं ,
तू बालक नादान अभी ,खतरे मत पहचान अभी .
एक मसीहा आएगा , तुमको खेल खिलायेगा,
जन्नत में ले जाएगा -खूब खिलौने लायेगा .

दुःख बाधाएं हर लेगा ,काम सभी वो कर लेगा ,
तूने फिर क्या करना है ,अमरीका सब कर लेगा .
फिर चिंता क्यों करता है ,वो चिंताएं कर लेगा ,
इतने कामो के बदले , कितनी झोली भर लेगा.

गीता में रख कृष्ण को -रामायण में राम,
बाकी जाएँ भाड़ में, क्या है उनसे काम.
क्रिकेट का रख ध्यान तू , उनको हीरो मान,
ट्राफी लेकर आयेंगे , उनको अपना जान .

नादान हैं लोग- दिल के जख्म को बेचते हैं
प्यार को बेचते हैं , सनम को बेचते हैं
जाने कैसे-कैसे गैरों को अपनों को बेचते हैं .
इस मुफलिसी में , और क्या बेचें हम जनाब ,
हम ग़ुरबत के मारे तो सिर्फ अपने को बेचते हैं .
आँखों में पाले हुए ,जवां सपनो को बेचते हैं.

जीवन मैं - गर कभी मिलो ,
तो अपनों की तरह मिलना .
वैसे ही जैसे - मिलती हैं
दो नदियाँ ,किसी संगम पर-
और खो जाती है -एक दूजे में .
ऐसे कभी मत मिलना जैसे-
पत्ते मिलते हैं आँधियों से.

वादे होते ही हैं -तोड़ने को ,
रिश्ते होते ही हैं - जोड़ने को .
पर आज का चलन अलग सा है
ना वो मिलतें हैं -हमें ना छोड़ते हैं .
ना वादा तोड़ते हैं -ना रिश्ता जोड़तें हैं .

अजीब ढोल हैं सियासत के -ना भजन, ना कोई तराना ,
बरसों पुराने घीसे गीत को-हर बार अलग ढंग से बजाना.

मैं कहीं डूब गया हूँ शायद , ढून्ढ जो मेरा पता पाले तू
मजा जब है इस प्रेम सागर से ,जीते जी मुझे निकाले तू.

फासले रख के फिर चला करिए ,किसी से यूँ ना तुम मिला करिए ,
जान जाने के सौ बहाने हैं , दिल पर हर बात ना यूँ लिया करिए.
.
तेरी मां- बहुत अच्छी है ,ये बात ठीक है लेकिन,
भले बीमार सी दिखती है , घर में मेरी मां भी है .

सजाएँ दी जाती हैं , सुनाई नहीं जाती ,
आपदाएं ,आवाज़ दे के बुलाई नहीं जाती .
सब ठीक चल रहा था -फिर क्या जरुरत थी,
अब गलतियाँ -तो हरबार , दोहराई नहीं जाती .

किसी के काम आ नहीं सकता ,किसी का प्यार पा नहीं सकता ,
की अपना घर उजाड़ कर यारो , किसी का घर बसा नहीं सकता .

रो रो के बात करने -का क्या फायदा हैं यार,
हलक फाड़ के चिल्ला -जरा असर तो हो .

गरीब की छत है -बरसात से डर लगता है ,
घर में रहना भी बस एक हुनर लगता है .

किसी ने चुपके से कहा -सरकार है ,
हमने चिल्ला के कहा- बेकार है .

अटल हो अपने बनाये नव विधान पर ,
ना दुःख मना, गुलामी के अवसान पर .
पूरी दुनिया भी , क्या बिगाड़ लेगी तेरा,
उठाके कदम - रख दे ऊँचे आसमान पर.

तू जलना सिखाये -तो जले सूरज ,
चलना सिखाये -तो चले दुनिया सारी ,
ऐसा बन जा , की एक पत्ता भी -ये
पूछे -'हवा तेज है ,मैं हिलूं या नहीं.

कितना फरेब बेचते हैं हुक्मरान यार ,
ना बेचना मना है -ना पीना हराम है .

खौफ से खौफ हम खाते भी नहीं ,
नादाँ से दिल को लगाते भी नहीं .
फूलों की सेज ना मिले -तो ना सही -
काँटों के खौफ हमको सताते भी नहीं.

आजादी किसे मिली ये समझने की बात है ,
सरे आम चीखने को आजादी नहीं कहते .
















समझ में नहीं आता

समझ में नहीं आता - लोग
क्रिकेट ,फिल्मो की बाते
(अपने आस पड़ोस की समस्याओं
को दरकिनार कर)
किस तरह कर लेते हैं

वल्ड कप की चिंता में घूल रहें है -
घर की दीवारों पर नीलामी के पोस्टर
इन्हें क्यों नहीं नजर आते .

क्या खेल इससे जरुरी हो गए-
या फ़िल्मी तारिकाओं के
चर्चे ज्यादा संतुष्टि दे जाते हैं .
अपनी बीवी की साडी में लगे-
पैबंद इन्हें क्यों नहीं नजर आते हैं .

जिस देश की आधी जनता -
आधा पेट सोती है - अजीब बात है
इससे हमें तकलीफ-
क्यों नहीं होती है .

दरअसल हम परवाह नहीं करते

दरअसल हम परवाह नहीं करते,
भले ही कोई खोल ले जाए -
हमारी दुधारी भैंस - या फिर
सर की टोपी .

हमे चिंता जाने क्यों नहीं होती -
अखबार की खबर -चिंता जनक नहीं,
गर मेरे सब अपने -खैरियत से हैं .
ख़बरें पसंद हैं -खबर बन जाना नहीं .

पड़ोस में आग लगे-मुझे क्या
(पंजाबी में 'सहान्नु की ')
मेरा घर- मेरे बच्चे सकुशल हों -
बाकी जाएँ भाड़ में .

देश तो फिर -बड़ी इकाई है ,
मैं ही चिंता क्यों करूँ -अकेला
और भी तो हैं -इतने सारे ,
कोई मेरा ही ठेका लिखा है .
और निश्चिन्त होकर सो जाते हैं .

दरवाजे पर खड़ा है पर
बताइए इन्कलाब कैसे आएगा-उसे
कौन अन्दर आने की लिए कहेगा -
कोंन भीतर लाएगा .

छोड़ यार नाश्ता कर -
दफ्तर की लिए निकल -
बस/ट्रेन छुट जाएगा तो-
बॉस की डांट कौन खायेगा .

उन्हें कुछ कहना नहीं आता

उन्हें कुछ कहना नहीं आता -
हमे चुप रहना नहीं आता .
वो है की जानता नहीं -
दिल है की मानता नहीं .
ऐसे मिलता है -सरेराह
जैसे हमे पहचानता नहीं .

वो मेरा दोस्त भी , भाई भी था

वो मेरा दोस्त भी , भाई भी था ,
कोलाहल भी था ,तन्हाई भी था .
ग़ज़ल भी था ,शहनाई भी था .
जाने क्यों याद आ रहा है-आज ,
मुझ में शामिल ,मेरी परछाई भी था .

वो मेरी जमीं था, आस्मां भी
मेरा हमराज, पूरा दुनिया-जहाँ भी,
बता नहीं सकता -कहाँ कहाँ था वो ,
हर कहीं जहाँ में हूँ -वो वहां भी .

जो मेरे आंसू उठाता था -
गिरने से पहले पलक से.
उसका दिल खिल जाता था मेरी
एक झलक से.

मुझ से बिछड़े हुए उसे अरसा बीता -
मैं रह गया खाली -बिलकुल रीता .
गम आज भी दरवाजा खटखटाते हैं -
मेरे पास रहते हैं -दूर नहीं जाते हैं -

कहाँ से लाऊ उसे -कहाँ सन्देश भेजूं ,
किस को कहूँ -कैसे बुलवाऊँ.
मेरी पीड़ा भरा स्वर -उस तक जाता नहीं
जो चला गया -वो वापिस लौट के आता नहीं

आखरी फ्लाईट छूटने वाली है

नमस्कार , आपके गंतव्य को जाने वाली -
ये आखरी फ्लाईट छूटने वाली है
सभी काले अंग्रेजो से नम्र निवेदन है -
अपनी सीट की बेल्ट-खोल ले .
अपने दुष्कर्मों के हैण्डबैग-
कृपया अपने हाथों में रखें .

३०-४० हजार फीट की ऊंचाई-
हम १३ मिनिट में तय करेंगे
उसके बाद आपको -बिना पेराशूट
के नीचे कुदाया जाएगा .
इश्वर से प्रार्थना है -की वे आपको
घोर नरक में अवश्य जगह दे .
हमे आशा है - आपकी ये यात्रा
अत्यंत दुखद होगी .
धन्यवाद .

क्षणिकाएं

समंदर - जलधर नहीं है,
वे तो मेघ होते हैं -
धरती की प्यास को बुझाते हैं
पर जल भरने तो हर बार
समंदर के पास ही आते हैं .

इतनी विषमतायें , विपरीत
धाराओं के बीच आदमी .
आखिर करे तो क्या करे ?
किस किस से रार ठाने ,
किस को गैर कहे -
किस को अपना माने ?

बीज तभी अस्तित्व में आता है,
जब धरा के माता सम
गर्भ में आश्रय पाता है .
और एक से अनेक हो जाता है .

जीते जी और मरने के बाद
किस तरह होता है -इंसानी
जिस्मो-जान का कारोबार -
किस बात की चिंता -
इसके लिए राजनीति हैं ना यार .

प्रवाह के साथ बहने का क्या मजा -
वो तो सभी बहतें हैं -
पर वे सभी हाशिये पे रहते हैं .
वो लोग महान होते हैं जो दुर्गम -बीहड़ में
नए रास्ते बनाते है- इतिहास में उनके नाम
स्वर्णाक्षरों में लिखे जाते हैं -
और सदियों तक देवता की मानिंद -
पूजे जाते हैं.


इतनी बेबाकी से ना लिपटो, की शर्म खो जाए
दोनों के -कहीं एक होने का ना भरम हो जाए .









प्यार

प्यार करता है -
हर पल -हर रोज,
कोई और ना मिले -
तो अपने आप से .
अपने दुख- संताप से .
कभी पुन्य से कभी पाप से .

ता-उम्र बस यूँ ही
प्यार किये जाता है -
आम आदमी-कभी
मर्जी से -कभी खुदगर्जी से ,

और एक दिन -उसकी
रजा से -चाहे अनचाहे
प्यार करता है -और
मौत-बेमौत मरता है .