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Monday, December 31, 2012

आओ यज्ञाग्नि में समिधा डालें

आओ यज्ञाग्नि में समिधा डालें 
अग्नि प्रज्वलित हो - और भड़के 
चिंगारी को दिलों में शोला बना लें .

भस्माभूति हो जाएँ हमारी 
राक्षसी प्रवर्तियाँ - विकार 
मानवीय संवेदनाओं को 
जगह दें - दिल में बसा लें .

बहूत हुआ - अब ना हो 
ये डर के प्रेत से मुक्त हों
स्वछन्द - मुक्त हठ योग
नहीं - अपने विलुप्तप्राय
संस्कारों को फिर से जगा लें .

ये वर्ष कुछ अद्भूत अनोखा हो
घर - नगर - देश बेगाना ना लगे
भारत को - भारमुक्त करें
वक्ष से लिपटा - अपना बना लें .

जिसे आना है - आएगा ही .

तुम चाहो न चाहो 
पर आएगा वो .
द्वार देहरी पर - 
स्वागत हो ना हो - 
बुरा नहीं मनाएगा वो .

पुराना जा रहा है - 
तो नया आएगा ही .
गुजरे का विलाप हो -
तो भी जाएगा ही .

तू मत मना - कोई
और मनायेगा ही -
जिसे जाना है वो -
रुकेगा नहीं - जाएगा ही
कैसे रोकोगे - अब
जिसे आना है - 

वो तो आएगा ही .

ये नो दो ग्यारह हुआ बहूत


ये नो दो ग्यारह हुआ बहूत 
अब तेरा तेरा कह प्यारे 
अपनी मनमानी बहूत हुई 
अब  'उसकी' रजा में रह प्यारे .

दिल की बातें दिल में ना रख 
जो दिल में है तू कह प्यारे 
जो बात चुभ रही है दिल में
तू उसको पहले कह प्यारे .

जो बुरा बहूत है तू उसको 
मत भला बुरा तो कह प्यारे 
वो अपनी हद में रहता है 
तू अपनी हद में रह प्यारे .

फिर बात बनेगी धीरज धर 
दिल्ली के दिल में रह प्यारे  
भारत वालों की बात और 
इंडिया को भारत कह प्यारे .

आये अंग्रेज गए सारे - 
ना इटली में तू रह प्यारे - 
भारत तो अपना भारत है - 
बेख़ौफ़ यहाँ तू रह प्यारे .


जो बीत गया सो बीत गया


जो बीत गया सो बीत गया 
होने दो अब कुछ बात नयी 

तेरा मेरा - ना बोल सखे 
ये तेरा तेरा - तेरहा है . 
कुछ अद्भूत सी है बात नयी 
सच मान यही सौगात नयी .

जो कल बीता - बिलकुल रीता 
ना राधा सी - ना थी सीता .
ना रामा सा ना श्यामा सा .
बेस्वाद रहा - बिलकुल फीका .

चल बीती ताहि बिसार सखे   
करने दे कुछ उपचार सखे  .
हाथी पर विपत भले आये 
पर चींटी  को मत मार सखे  .
  
वो रात कुलुश की बीत गयी 
सचमुच ये नया सवेरा है .
चेहरे पर शिकन नहीं होगी 
ये तेरा है - ये तेरह है .




Sunday, December 30, 2012

और बन जाती है - एक कविता .

चंद शब्दों से - पहले 
खुद को दिलासा देता हूँ 
फिर लोगों में बाँट देता हूँ
एक दीपक जलाता हूँ -
उजाला बाँट देता हूँ -
और बन जाती है -
एक कविता .

फिर देखता हूँ - 
क्या अँधेरा घटा - 
क्या उजाला -
घर घर में बंटा .
और - स्वयं
आत्मविभोर हो
मगन हो जाता हूँ .

कुछ भी सही - कुछ तो
कलुष कम करता हूँ -
उजाला बढाता हूँ -
दीया हूँ यार - 

खुद अँधेरे में रहता हूँ
रौशनी में नहीं आता हूँ .

बहूत खतरे हैं यार

बम्ब फटने लाठी गोलियां चल जाना क्या .
बहूत खतरे हैं यार रौशनी में आना क्या 

अँधेरे रास्तों में - बहूत महफूज हूँ यार 
मुश्किल है इन्हें कोसना लतियाना क्या .

अब हरेक जंग चौराहे पे लड़ी जायेगी 
गोल गुम्बद चांदनी चौक जाना क्या  

समझने वाले - समझ गए होंगे यार 
नासमझ - को भी भला समझाना क्या .

अभी तो देश में अमन है

फिर किसी दिन लाल रंग 
अभी तो देश में अमन है .
खिल रहें है - काले गुलाब 
अभी ये देश तो चमन है .

पचा ले - हाज्मौला इन्हें ला दे 
छोटे मोटे - हाथ कोई जो लगा दे .
इंडिया गेट है भाई - जनपथ नहीं 
ये तो सरकार का सरासर दमन है . 

ये काली ओढ़नी - पहने भीड़
युवा तुर्क देख - ये कैसा पहन है
फिर भी कुछ तो कसीदाकारी है
इसे क्यों कह रहा कफ़न है .

झुनझुने मत थमाइये


नारी शक्ति को -
ये झुनझुने मत थमाइये .
ये अंग्रेजी राज की -
कांग्रेस नीति को और
आगे मत बढ़ाइए .
डर के भूत से - इन्हें
मत डराइये - हो सके तो
हाथ में त्रिशूल पकड़ाईये .

नहीं बेचारी बन

तू चाहे - फूल गुलाब
महकती क्यारी बन .
माँ बेटी - बहन -और
पति की प्यारी बन .
पर अबला नार अकेली -
नहीं बेचारी बन .

फ़नधर विष भरपूर
खप्पर भर शोणित
रक्तबीज कर नष्ट
माँ महाकाली बन -
तू कुछ भी बन पर -
अबला - नार अकेली
नहीं बेचारी बन .

कलुष भरी रात

कलुष भरी रात - चुपके से 
जा रही है - प्रकाश भरी 
रुपहली सुबह मंथर गति से 
रौशनी में नहा रही है .

बीत गया जो - गलत था 
धीमी गति से ही यार 
सही की पहचान - 
हमें अब आ रही है .

बदल जाए जो ये -
विधान - गलत की
बन चूका जो पहचान -
फिर से कह सकूं - एक बार
मैं और - मेरा देश 

सचमुच महान .

गीत मेरे

गीत मैंने लिख दिया -
देगा तुझे सुर कौन - अब 
मैं सोचता हूँ - गीत मेरे .

सुर तुम्हारे - मीत मेरे 
गूंज जाए - दूर तक 
ऐसे सदा में - 
सुन चितेरे गीत मेरे .

फिर लगेंगे - दूर तक 
अपने ये फेरे - गीत मेरे 
चल सुना दे भाव - भक्ति 
निबल बाहों में भरी 
अकूत शक्ति - गीत मेरे .

चल अचल - नभ 
और सागर - थल .
हर जगह - लग जाएँ 
तेरे जैसे डेरे - गीत मेरे .

मैं डरा हूँ - विप्लवों की 
तान से - और तेरे 
मान से सम्मान से - सुन 
गीत मेरे .

अब नहीं चिंता - की 
कोई तान छेड़े - गान छेड़े 
या विवशता में गुनगुनाये -
गीत मेरे .

जुगनुओं की चमक से 
खुद को जलाए - साथ  
ना दे या की -  तेरे 
साथ आये - गीत मेरे .   

Saturday, December 29, 2012

क्षणिकाएं

हो भले सारी खुदाई - 
कम नहीं है .
क्या करूँ दुनिया का - 
जिसमे हम नहीं हैं .

उत्तरदायी कौन है - चल अब करें ये फैसला 
सबकी ऊँगली उठ रही है - आज खुद की ही तरफ .

दीप तो बुझ जाएगा पर रौशनी जिन्दा रहे 
आओ मिलकर - दीप से दीप जलाएं यारो .

रूकती है ठिठकती है - मगर हारती नहीं 
कोई कांग्रेसी दाव नहीं होती जिन्दगी .

दिल ना जाने मुझसे अब चाहता क्या है 
रात के सपनो का शूल अब तक गड़ा है . 
मेरा आज - मेरे बीते कल से बहूत बड़ा है 
जो आने वाले कल का हाथ थामे खड़ा है .

रुकेगा नहीं - रोका तो बहूत
सबने मिल टोका भी बहूत 
हमारा जो है रुकेगा नहीं - 
अब 'तेरा' ही आएगा जो 
किसी शय के सामने -
झुकाए से भी झुकेगा नहीं .

जब तक पीर जिन्दा है -
तब तक 'मीर' जिन्दा है .

ग़मों को छोड़ने - बहूत 
दूर मत जाना - ना जाने 
कब कमी अखरने लगे .
सुखों का क्या भरोसा - यार 
ना जाने कब तलक साथ रहें 
और कब मरने लगे .

कविता चन्द शब्दों की कलाकारी है 
भाव तेरे हैं अपनी बस अदाकारी है .
हरेक हर्फ़ - तेरी शय को बयाँ करता है 
रोशनाई मेरी - पर रौशनी तुम्हारी है .

रंज गम पास ना आये तो अच्छा है 
ख़ुशी भी दूर ना जाए तो अच्छा है 
पर कभी रूठों न अपनी ख़ुशी से . 
जो रूठ जाए ख़ुशी तो क्या है .

वो प्यार था ही नहीं - जो कभी मिला ही नहीं .
ना कोई अदावत - किसी से गिला ही नहीं . 
आदत थी यार अकेले चलने की - सच 
वो लम्बा रास्ता - कभी खला ही नहीं .

आज कुछ ठण्ड बहूत है -
चलो-अलावों को जलाया जाए 
या आज की शाम को फिर 
तेरी यादों से सजाया जाए .

वो जो सड़कों पे 'पर' साथ लिए बैठे हैं 
उड़ने को तत्पर परवाज़ लिए बैठे हैं .
एक वो हैं पिंजरे सैंयाद लिए बैठे हैं 
बड़े शातिर - हमारा आज लिए बैठे हैं .

जिन्दगी तेरे नाजो अदा - क्या कहने 
फटी बिवाइयाँ तूने कभी सिली भी नहीं .
बहूत ढूंडा तुझे दिन रात - जिन्दगी 
तू मिली भी और कभी मिली भी नहीं .

तमाम उम्र नफरतों के सर्द सायों में रहे 
प्यार की हरारत यूँ कभी मिली ही नहीं .

दूर से इशारों में बात होती रही - हर बार 
कभी करीब से ये जिन्दगी मिली ही नहीं .

प्रेमका रोग लगे तो - मर्ज कभी ठीक ना हो 
रिस्ते जख्मों की अपनी ही कसक है यारो .

बात कुछ ख़ास नहीं है - फिर भी 
मेरी आँखों में कुछ नमी सी है . 
तू नहीं है तो कोई बात नहीं - 
फिर भी जीवन में एक कमी सी है .

कुछ खुद बीती - कुछ जग बीती 
सभी कहते हैं - मैं परेशां बहूत हूँ .

खो दिया था जहाँ कभी दिले बेज़ार 
चल उसी कूंचे की तरफ फिर एक बार .

फुरसतें फिर तलाश कर लेना 
मुद्दतों में मिले हो - कुछ तो कहो .

बंध गए हम तो बिना बांधे - यार 
प्यार की रेशमी डोरी तोड़ी ना गयी .

हाथ जोड़कर प्रणाम है यारो 
सुबह की राम राम है यारो .
हमें तो फ़ुर्सते ही फुर्सत हैं -
और कोई न काम है यारो .
जो अभी जम गयी कुहासों में 
वो सुबह सबके नाम है यारो .

हुई मुद्दत के अब कुछ याद नहीं - पर 
इससे पहले भी कहीं हम मिलें हैं यार .

कहीं से कोई तो आये तसल्ली देने 
अब ये रात अकेले नही कट पायेगी .

सितारे गिनते हुए छत से गिरे ख्वाब कई .
ये कौन ले गया ख्वाबों के संग नींद मेरी .

ना खोये रहो इस कदर ख्यालों में यार 
दूसरा भी कोई यहाँ है - ये ध्यान रहे .

प्यार कुछ और चीज है शायद
मगर ये प्यार - हो सकता नहीं . 
जिस्म से होके जो पहुंचे दिल तक 
रास्ता रूह का - वो यार हो सकता नहीं .

कल तक तुझको सब कहते थे - खुद़ा 
अब महूब्ब्त को लोग खुद़ा कहते हैं .

जहाँ पहुँच के कभी लौट के आया ना कोई
मिल गयी जिसको जन्नत या महूब्ब्त यारो .

फिर वही उजाड़ शामें - खो गयी कुहासों में 
जले यादों के अलाव जाने बुझ गए कब के .

खुद पे हंसने का हुनर याद आया 
मेरे हालात पे जब भी कोई मुस्काया .

तेरे अहसास की कलम से - दिलपे लिखता हूँ मिटाता हूँ .
रौशनी हमसे दूर रहती है - फिर वहीँ हाशिये पे आता हूँ .

कौशिश जो करो तो - क्या हो नहीं सकता 
एक दिन जमीं पे उतर आएगा बैरी चाँद .

आ जाओ तुम फलक से उतरकर ऐ मेरे चाँद 
तुमको छुपा लूं दिल में - बाहर ठण्ड है बहूत .

कुछ लोग मिल गए मगर - कुछ लोग खो गए 
किसको तलाशा यार  - जाने किसके हो गए .

नहीं आना तो मत आओ 
अब तेरा इंतज़ार  नहीं . 
बस ये ना पूछना - हमसे 
की तुमसे प्यार  नहीं .




Tuesday, December 18, 2012

इतना बबाल क्यों ?


क्या हुआ - इस बात पर
इतना बबाल क्यों ?
नैतिकता का - इस देश में
इतना बुरा हाल क्यों .

कोई सुरक्षा पर सवाल
उठाता है - कोई
क़ानून में खामियां -
गिनवाता है .

कोई संसद में रोरोकर
हँसते हँसते - पूरा
वाकिया एक सांस में
पढ़कर सुनाता है .

पर किसी ने उससे -
ये सवाल नहीं किया -
मौहतरमा - इतनी
रात गए - आप वहां
से क्यों गुज़र रही थी -
आखिर - उस यार(दोस्त)
के साथ क्या कर रही थी .

मम्मी पापा से -
पूंछ कर आई थी
या कॉलेज से - बंक लगा
नाईट शो देखने आई थी .

पर ये कोई सवाल
कभी नहीं पूंछा जाएगा
आखिर क्यों - क्या
कोई मुझे ये बतायेगा .






Wednesday, December 12, 2012

क्षणिकाएँ



मैं तो हर हाल में जीने की कसम खाता हूँ 
वो नहीं जो हर - तकलीफ से घबराता हूँ .
राह के कांटे क्या बिगाड़ लेंगे मेरा - यार
वो नहीं जो सहर के अंदेशे में मरा जाता हूँ .

दिल में गर प्यार नहीं - तो ना आये कोई 
प्यार गर दिल में है तो - ना छिपाए कोई 
किसी लैला की तलाश - नहीं मजनू को 
बात कांटे की हो - तो चला आये कोई .

दिल में आता है - रूठूँ तो मनाये कोई 
जो दूर हूँ तो - आवाज़ देके बुलाये कोई .
सोगया हूँ जो तेरे ख़्वाबों में यूँहीं मैं कहीं 
झिंझोड़ कर मेरे सपने से ना जगाये कोई .

जिन्दा हूँ - तो जिन्दगी का मौह्ताज़ नहीं .
वो परिंदा नहीं जिसकी कोई परवाज़ नहीं .
मुंह में जुबाँ है तो दोस्त बोलेगी जरुर -
यार ऐसा नहीं की इस साज़ में आवाज़ नहीं .
किसी से दोस्ती नहीं - ना किसी से रार 
ठनी किसी से नहीं - ना किसी से प्यार
हरपल हरघडी जिन्दगी सफ़र में रही 
यही लगा ये जिन्दगी एक सफ़र है यार .

बड़ी अजीब सी है ये रात -
अँधेरे में छिपी हर बात - 
चाँद को यूँ तो किसी से बैर नहीं 
पर उजालों की यार आज खैर नहीं .

ये ख्याल ना जाने - कैसे तुझे आया था 
हम नहीं थे - तो कौन था आखिर 
वो जिसने - तुझे नींद से जगाया था .

बंद पिंजरे में - एक मैना 
जब भी फ़रियाद करती है . 
यक़ीनन किसी और को नहीं 
बस मुझ को याद करती हैं .

मेरे पांवों में - कोई चक्कर है 
चल चले इक नए सफ़र के लिए .

दिल चाहता है - कोई हो जो रूठे तो मनालूं 
मिलने को चला जाऊँ - या कभी उसे बुलालूँ .

हैं इतने लोग पर कोई अपना सा नहीं लगता 
कोई मासूमियत से ना जाने क्यों नहीं ठगता .

मौत को कविता ना कहो -
जाम को ठीक से भरो साकी 
अभी जिन्दगी की किताब में 
पढने को बहूत पन्ने हैं बाकी .

सफ़र तो जिन्दगी का है लेकिन 
आओ अपनी मृत्यु को सुंदर बनाएं .
बहूत रुलाया इसने - उम्रभर हमको 
चलो जाते जाते हम सबको रुलाएं .

पता नहीं हम आगे बढ़ रहें हैं की पीछे हट रहे हैं 
पतंग को ढील दे रहें हैं की मांझे लिपट रहे हैं 
जितनी भी बढ़नी थी बढ गयी यार - अब 
बाढ़ कहाँ उम्र के दरिया - सचमुच सिमट रहें हैं .

'आ राम' ढूँढ़ते रहे - आराम से बहूत 
'आया ना राम' - और सब 'आराम' से गए .

ले चल मुझे - इस अजनबी दुनिया से कहीं दूर 
अब दिल नहीं लगता घड़ीभर - इस फ़कीर का .

ना जाने किस गली से निकल आये इन्कलाब 
अब इतना आश्वस्त होके भी ना बैठिये जनाब .

भभके से आ रहे हैं  - चारों तरफ से यार 
सोचता हूँ किस तरफ की दिवार उठाई जाए .

जो तुम नहीं आते तो - सोचो क्या कमी होती 
पहले ही दिल भरा है रंजों गम से बहूत यार .

खुद अपने आप से मिलें
ना - खुलके कभी यार
ऐसी कोई फुर्सत - ना 
हमें जिन्दगी ने कभी दी .

आगाज़ भी मालूम था - अंजाम भी पता .
जो दिल नहीं माना - इसमें मेरी क्या खता .

सच तो है वो मुझे कभी मिली भी नहीं 
मिल जाती - ऐसी कौशिश थी भी नहीं .
भटकते हुए यूँहीं मिल गयी मुझको - यार 
मिली जो जिन्दगी - वो इतनी हंसी भी नहीं .

ऐ मेरी चंद लाइनों की तहरीर सुन 
इक गज़ब बात मैं तुझे बताता हूँ .
तू सदा सबसे ऊपर है - लेकिन 
मैं तो खुद हाशिये पे आता हूँ .

यूँ हमें बहूत प्यार था लेकिन 
जिदगी तुझपे एतबार था लेकिन .
एक दिन छोड़ चली जायेगी 
तय कहाँ ऐसा यार - था लेकिन .

रात में भी चैन कहाँ - मिलता है  
वो ख्वाबों में मेरे बेहिसाब आते हैं .

बनते बनते भी 
बिगड़ जाती हैं -
समेटते हैं फिर भी 
बिखर जाती हैं 
साली जिन्दगी ना हुई - 
रेत की दिवार हुई .

सच में ना आ सको तो कोई बात नहीं
कभी चुपके से आजाओ मेरे ख़्वाबों में .

कोई शिकवा नहीं किसीसे - कोई गिला भी नहीं 

की जिससे प्यार था - वो कभी मिला भी नहीं .

जगह है ही नहीं - जो तुम्हें रूकने को कहूं . 
मेरे वजूद में सच अकेला - बड़े आराम में हूँ .

वो प्यार था ही नहीं जो कभी मिला ही नहीं .
ना कोई अदावत - किसी से गिला ही नहीं . 
आदत थी यार अकेले चलने की - सच 
वो लम्बा रास्ता - कभी खला ही नहीं .

आँखें धुंधला चली लेकिन - फिर भी 
रूप की पारखी वो निगाहें आज भी हैं .