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Tuesday, October 30, 2012

चाहता हूँ लिखना - ग़ज़ल

चाहता हूँ लिखना - ग़ज़ल 
प्यार या प्यार के अहसास पर .
जो मेरे पास हैं - या उस
दूर के विश्वाश पर .

पर ऐसा नहीं होता - यार 
जो दूर है - दूर ही रह जाता है 
कभी पास नहीं आता .
दूर की चीज पर - जल्दी से 
विश्वास नहीं आता .

जो मेरे हाथ में है - पास है
वही मेरी जमा पूंजी -
सम्पूर्ण विश्वास है -
किसी के लिए कुछ और सही -
पर मेरे लिए तो वही
बस खासम - ख़ास है .

आइने को दूसरों को मत दिखा

बाज आ - आइने को 
दूसरों को मत दिखा
कभी अपनी ओर भी कर - 
मेरी बात मान जा .

मन्त्रमुग्ध - मतहो 
अपनी छवि देख - 
निहार - एक पल को
विचार - कौन सुंदर है 
वो जो आईने में है - या
वो जो उसके बाहर है .

या फिर वो -
जो तेरे और
आइने के दरमियाँ
कहीं हैं - पर
नजर नहीं आता .

पर कभी कहा नहीं गया .


पन्ने खाली  - जो 
कभी लिखे नहीं गए .
वो जज्बात जो कभी -
कहे नहीं गए .

सोचता हूँ - आज 
तुमसे कह दूं - अभी 
मैं जानता हूँ - वक्त 
शायद ना दे - मौका 
फिर कभी .

पर क्या कहूँगा - 
वो जज्बात - वो बात 
जो अब मुझमे नहीं - 
जीवन की विडम्बनाओं में 
कहीं छुट गए - वो रास्ते जो 
होते थे यहीं कहीं .

बहूत कठिन है - 
वो सब कहना - जो 
समझा तो बहूत बार - 
पर कहा कभी नहीं गया . 

Thursday, October 25, 2012

आओ दशहरा मनाएं .

दशाअवतार - नहीं
बस राम हों - और
हम राममय हो जाएँ .
चलो 'सर' करलें -
दस सर -दस दिशाएं
आओ दशहरा मनाएं .

आक्रान्ता के भाल पर
उस काल विकराल पर
नए लेख लिखें - पुराने मिटायें
आओ दशहरा मनाएं .

ना भूलें - नारायण -नर को
सहस्त्रा कवच के एक एक -कवच को
भेदें - तिमिर की स्याही को- चलो
अगणित सूर्य की रश्मियों से नहलाएं .
आओ दशहरा मनाएं .

बुझे हुए चाँद तारों को- बदल दें .
राख के ढेर में दबी - चिंगारियों को
कोटि कोटि सूर्यों की मानिंद जगमगायें .
दीवाली बाद में फिर कभी - पहले
आओ दशहरा मनाएं .

चल चले सोने

मेरे अहसास से सुंदर 
एक ऐसा जहाँ . 
बादलों का परिवेश 
परियों का देश -
आ तुझे ले चलूँ - वहां .

घट रही है - उम्र 
और बढ़ रही है बात .
सूर्य का तेज़ - 
दिनमान के डूबते 
वैभव - की कैसी
ढलती चांदनी की
ये अद्भूत सौगात .

दिल के वो उजले कोने -
अब क्या किसी के बनने -
क्या किसी के होने .
ऐ मेरे ख्वाब - रात होने को
चल चले सोने .

Friday, October 19, 2012

क्षणिकाएं

कहीं कोई तो है हवाओं में 
कोई तूफ़ान सा है राहो में .
ऐ मेरे दिल जरा बचके निकल 
किसी का दर्द है इन आहों में .

वो जो चिलमन को हटायें तो ग़ज़ल होती है . 
आज बीते से बिताया नहीं जाता यारो - 
जुल्फ चेहरे से वो हटायें तो आज से कल होती है .

वहीँ रूक जाना - यार वही है मकसदे मंजिल
किसी का जीत लो या - हार जाओ अपना दिल .

इतनी पास है दिलके  - 
फिर भी छू नहीं सकता . 
डर है - रंग छुट ना जाए कहीं 
यादों की तितलियों के पंख - 
बहूत नाजुक होते हैं यार .

दुखी क्यों आखिर - अंधेरों से क्यों डरता है 
सुख की सुबह - के लिए क्यों नहीं लड़ता है .

कल किसने देखा है कल किसने जाना है
कल आने का बहाना तो - पुराना बहाना है .

जिस्म की मौत है लेकिन 
ये मन और आत्मा तो अमर है 
वही तो असली निवासी है -यार 
जिस्म तो उसका अस्थाई घर है

आज जो हाथ में है -
आज मेरे सामने है .
कल की छोड़ - कितने
छूटने हैं साथ - और 
कितने हाथ थामने हैं .

अँधेरे - शाश्वत नहीं होते 
हर रोज सुबह होनी ही है .

कहीं नहीं जाती - दिल के करीब 
आज भी - रहती हैं वो तेरी यादें .

हर घडी उजाले अच्छे नहीं - रात को होना भी है .
थक जाती हैं आशाएं - उन्हें पलभर सोना भी है .

वो इतनी ढीठ है - तुमको बता नहीं सकता
साए सी है - छोड़कर कहीं जा नहीं सकता .

गहराइयाँ मन की बहूत गहरी हैं
पैमानों से नापी नहीं जाती .
प्रेम असीम हैं - क्षितिज की तरह 
जिसकी ऊँचाइयाँ आंकी नहीं जाती .

अन्धकार का राक्षस - 
समूची जमीं खा गया 
आस्मां निगल गया .
अरे वही 'कल' जो - 
अभी अभी 'कल' गया .

जब दुःख - सिर्फ दुःख होते हैं 
तेरे मेरे नहीं होते - 
फिर ये तेरे सुख व्यक्तिगत 
कैसे हो गए भाई - 
कुछ समझे - क्या बबुआ 
हमें तो ये बात समझ में नहीं आई .

कल्पना की मोहिनी सी - 
एक मधुरिम हास हो तुम . 
परिणति या एक नव आगाज हो तुम - 
मुखर हो या मौन हो तुम - 
सच बताओ रूपसी - कौन हो तुम .

एक सागर एक नाव - एक सोच एक भाव 
हम अलग नहीं - यार एक से ही लगते हैं .

वो बरसते हैं तो सैलाब उमड़ आते हैं 
जरा धीरे बरसते तो प्यास बुझ जाती .

जमीं और आस्मां - सारा जहाँ 
बिन तेरे - इन्हें लेकर जाऊँगा कहाँ .

मेरे रोने के माने कुछ नहीं -
वो मुस्कुरा दें तो ग़ज़ल होती है .

देख कर दिल में तेरे इतना प्यार 
मैं गया ही कहाँ था - यही था यार .

वो भूत था - विगत था 
गुजर ही गया - लेकिन 
इस कशमकश में - मेरा 
आज जाने किधर गया .

ढून्ढ लो राम को - जो वध करे दशानन का 
फिर उसके बाद दशेहरा मनाया जाएगा . 
पूर्ण आहुति विजयदशमी होगी उसी दिन 
ना सही आज - एक दिन तो जरुर आएगा

तेरा मेरा बस एक सा फ़साना है - साथ 
इक दिल ही नहीं - बाकी तो जमाना है .

मेरे अफ़साने में उसका भी जिक्र आएगा
उसकी बातों पर जो जरा भी मुस्कुराएगा .

लुटाके दिल - भी मालामाल हैं हम 
दिल बिना - कौन से कंगाल हैं हम .

मेरी नजरें को वो जाने कैसे पढ़ लेती है 
जिसने कभी स्कूल की सूरत नहीं देखी.

सदा सी गूंजती है हवाओं में 
खनक थी चूड़ियों की बाहों में . 
दिल मेरा बार बार - कहता है 
चल उसी हूर की पनाहों में .

कह देने से कोई बेचारा नहीं होता 
मान लेने से कोई हमारा नहीं होता .
बड़ी अजीब शै 'मैं' - है मेरे यार  
मैं ही रहता है - कभी तुम्हारा नहीं होता .

गए जो भूल - उनको याद करना क्या
बेवफाओं के लिए सोच यार मरना क्या .

बेखबर लोग सो गए अपनी ख्वाबगाहों में 
चुपके से तुम चले आओ मेरी पनाहों में .
किसीकी क्या मजाल तुमको छू नहीं सकता 
देखूं - हवाएं कैसे भरती हैं तुम्हें बाहों में .

हजार बातें सेंकडों दुःख सुख 
जो मिल बैठ तुम्हें सुनाने हैं .
किसी रोज - यार फुर्सत में 
हमसे कभी मिलो तो सही .

जिन्दगी का - परीक्षा से नहीं कोई मेल 
यहाँ तो सीधे पास या फिर डाइरेक्ट फेल .
(री-अपिअर या कम्पार्टमेंट की कोई गुंजाइश नहीं)

उनकी पेशानियों पे बल हैं अभी 
लगता है नाराज़ अभी तक हैं वो .
मनाना यूँ तो कठिन लगता है -
फिर भी - कुछ तो कौशिश करो .

फिर उसी दर पे अपनी किस्मत आजमाने आये हैं 
उन्हें क्या - हमतो खुदको - खुद से मनाने आये हैं .

मैं वापिस लौट भी आता - जो पुकारा होता 
मुझे पता है तुमको मेरा साथ गवारा होता .
निकाल कर दिल से पूछते हो - कहाँ जाओगे
जहाँ जाओगे - हैरान ना हो हमको वहीँ पाओगे .


आशा की रौशनी - जिन्दगी हूँ मैं  
सभी मुझको नूरे अज़ल कहते हैं .
वो जो मेरे दिल के आईने में रहते हैं 
उन्ही को  तो यार ग़ज़ल कहते हैं . 

मैं सफ़र में नहीं था - लेकिन 
मेरे पांवों में एक सफ़र है यार 
कहीं रूकेगा नाही ठहरेगा -कहीं 
जिन्दगी भी तो एक सफ़र है यार .

जिन्दगी का जरासा हेर फेर हूँ 
काफिर हूँ पर मुक्कमल शेर हूँ .

हार जाना सभी बाजी तुम -
जिन्दगी दाव पर लगाना मत
हारकर भी जीत जाओगे - यार
बस मौत से हार जाना मत .

कबर पर फातिया पढ़ ले 
ग़ज़ल या गुनगुना कोई .
मरे सुनते नहीं - यारो 
और जिन्दा लोग बहरे हैं .

कपडे बदलने से क्या सूरतें बदलती हैं
बदलना है तो सीरत को बदल दो यार .

वही बासी सी सूरत - 
जो बदलते रोज़ चहरे हैं .
खुदा जाने - या वो जाने 
हम अंधे हैं की बहरे हैं .

जो बह जाते तो अच्छा था 
ये जालिम बह नहीं पाए .
अभी भी दर्द है दिल में 
जो तुमसे कह नहीं पाए .

फकीरी ओढ़ ली मन ने 
ये कैसे तुमको समझाएं 
कोई है ही नहीं दिल में 
किसे कह दूं - चले आयें .

ना तेरी थी ना मेरी थी - 
ये दुनिया जाने किस की थी .
हमारे बीच ना जाने - 
ये कैसे आ गयी यारो .

जमे क्या पाँव - कीचड़ में
जहाँ मिटटी है पानी है 
सफलता माप कर मिलती है 
ये दुनिया की बयानी है .

मेरी भी पीर गूंगी है - 
तेरी चुप भी जुबानी है 
ना मैं कोई - किस्सा हूँ 
ना तू कोई कहानी है .

रात की कालिमा - गयी 
पौ फटी - हुई भौर . 
सुबह की लालिमा - 
आकाश में परिंदों का शोर .
हसरतें जागने लगी - फिर 
चलें उस ओर - जहाँ मिल जाए 
कहीं क्षितिज का खोया छोर .

चाँद और चकोर सा देवयोग बना रहे 
हर पल हर क्षण इकदूजे का साथ हो 
यही दुआ है मेरी दिल से ऐ दोस्त - 
कभी ना हो जुदाई - सदा हाथों में हाथ हो .

जो मैं से बाहर आ गया 
उसने 'उसे' पा लिया -वर्ना
तेरा मेरा - से क्या हासिल 
जो मिला हथिया लिया .
पर हाथ रहे फिर भी खाली - 
जब उसके सामने खड़ा होगा - 
तू यार बनके सवाली .

अपनी रूमानियत कम कर - यार 
वर्ना तेरी आजादी पे आंच आएगी .
इक अकेली वफ़ा का क्या करिए 
पूरी दुनिया तो तेरी छिन जायेगी .

प्यार इसरारे वफ़ा का - क्या कीजे 
दो दिन के तमाशे की सजा काफी है .

जब तलक मैं हूँ तो तू है वर्ना - जिन्दगी 
काल के हाथ इक दिन तू छली जायेगी .

स्मृतियों के पात पीले पड गए
तितलियों के पंख सारे झर गए .
वेदना ऐसी लिखी इतिहास ने
वक्त से पहले इरादे - मर गए .











वंस मोर

बहूत काम हैं - यार
और - वक्त है कम .

कितनो से मिलना है -
कितनो को बुलाना है .
किस किससे मिलने -
जाने कितनी- कितनी 
बार कहाँ कहाँ जाना है . 

जाने कितनी आशाएं - 
अपनों को भेजनी हैं .
तुम्हारी मनोहारी -
स्मृतियाँ मन में -
छुपानी सहेजनी हैं .

छोटी पड़ती जा रही है
ये जीवन की डोर - काश
कालको नहीं मिलता इसका -
उलझा हुआ दूसरा छोर .

अन्धकार ना छाता कभी
प्रकाश बना रहता - चारोँ ओर
हमेशा रहती मेरी सनातन भौर .
कह उठती जिन्दगी - एक बार
फिर वन्स मोर - वंस मोर .

कविता के लिए कविता मत कर

तुमसे नहीं होगा - कचरा मत कर
कविता के लिए कविता मत कर .
भाव आसमान में - शब्द धरा पर 
कमजोर लफ्ज भाव नहीं ढोते - 
बाल भर - किंचित जरा पर .

सुनले सुनाले - दालभात सा रांध -
कुछ दूसरों को खिला - कुछ खुद खाले .
पर जोड़ तोड़ कर दो लाइन की सही
पर अपनी कविता बना ले .

मन की बात कहने के और भी -
ढंग तरीके हैं यार - कविता क्यों
इस कदर कविता - रुसवा ना कर
किसी कविता के लिए - कविता ना कर .

तुझसे वादा था

दुनिया के बंधन - रोकते रहे 
सब मिलकर मुझे टोकते रहे . 
पर तुझसे वादा था - तेरे पास 
इसलिए चला आया .

नहीं मालूम - मुझे अपनाएगा 
या दुनिया के रहमो करम पर - 
यूँही - अकेला छोड़ेगा
नाता रखेगा या - तोड़ेगा .

अभी कोई नहीं जानता -
मेरी बलहीन कलाई - थामे
रखेगा - या उफनती वेगवती
समय की धार में कश्ती -
पतवार विहीन सा छोड़ेगा .

सब लोग कहते हैं तू विधाता है .

तेरी आवाज़ - आज तक 
कानों में गूंजती है - पूरी फिजा
धरती का हर कोना .
इतनी सी गुज़ारिश है 
मेरे ना सही -यार पर 
किसी और के भी मत होना .

तेरा जिक्र आते ही - दोस्त 
आँखें नाम- मन मयूर नाचता 
तन का रोम रोम गाता है 
पता नहीं कौन है तू -
सब लोग कहते हैं तू विधाता है .

किसे क्या भाता हैं -
नहीं मालूम - पर
मुझे तो रात - दिन
शाम के सिंदूरी साये में
प्रभात - की वेला में
बस तू ही तू नज़र आता है .

तुझे आज तक - ठीक से
मैं कभी जान नहीं पाया .
तू पूरी तरह से मुझे अपना -
कभी मान नहीं पाया .

पर मेरी हर घडी हर पल - जैसे
चीत्कार कर - कह रही हैं .
तुझसे अलग होने का संताप
हम ही तो सह रहीं हैं .

सब प्रभु की माया है .

अंतर में कोलाहल - 
बाहर - घना 
अन्धकार छाया है - 
क्यों दोष दें किसी को - 
सब प्रभु की माया है .

रात धीरज है - रक्षा है 
ठांव है - परीक्षा है .
हम हारे थके फकीरों को
ईश्वर से मिली - 
बेशकीमती भिक्षा है .

विश्राम की वेला - समाप्त
उठ ज़ाग - रास्ते प्रतीक्षा में
मौन खडें हैं - चलो होने वाली
नयी सुबह की बाते करें .

Saturday, October 13, 2012

मन ना जाना तुम अकेले

स्मृति की परछाइयों में 
आम की अमराइयों में 
प्रेम की गहराइयों में 
गीत की तन्हाइयों में 
मन ना जाना तुम अकेले .

याद के वन - जल उठेंगे
चीड से नाजुक तने - और
आंधियां चलती यहाँ हैं -
इन अँधेरी कंदराओं में -
मन ना जाना तुम अकेले .

बच ना पायी - वो जली थी
शीतल- छिटकती चांदनी में
वो पली थी - एक नाजुक
अधखिली सी वो कलि थी .
भीड़ और कोलाहलों में -
मन ना जाना तुम अकेले .

अपनेपन की तलाश में

खंडहर - बियाबान 
वो अतीत के - जंगल
मेरे मन के अँधेरे - कोने
अक्सर अनछुए रह जाते हैं .

लोग मुझे अपना - 
कहते - बताते हैं .
पर अपनेपन के - स्पर्श
किन्हीं हाथों में - आज भी 
नज़र क्यों नहीं आते हैं .

क्या अपनापन - बस
केवल भाव है - लगता है
अपनेपन में भी 'अपने'
का कितना अभाव है .

अपनेपन की तलाश में - हम
कितने अपने से ही रह जाते हैं .

कौन हो तुम - सोचता हूँ

कौन हो तुम - सोचता हूँ 
वार्ता या मौन हो तुम . 
प्रणय का मीठा स्पंदन -
या विरह का कोण हो तुम .

आज मेरे साथ हो तुम 
हौसला विश्वाश हो तुम
बालमन सा खिलखिलाता
एक मधुरिम हास्य हो तुम .

एक अनबुझ प्यास हो तुम
अधखिली सी आस हो तुम .
दूरियां लेकिन बहूत हैं -
वैसे दिल के पास हो तुम .