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Monday, January 17, 2011

चलने का हुनर

चलने का हुनर -सीख
सूर्य और चाँद-तारों से .
वेगवती नदियों के किनारों से .

बूढ़े हो गए - सड़क के दरख्तों से
वीथिकाओं से सटे झाड़ों से .
ऊँगली थामे हुवे -
पिताकी आँखके इशारों से .

याद रखना - जिन्दगी के
शोर्ट कट नहीं होते - सारे
उतार -चढाव स्वयं
तय करने पड़ते हैं
तभी मंजिले मिलती हैं -
थके हारों से .

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