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Monday, January 17, 2011

अब मुमकिन नहीं .

तू कैसे रोक सकता है -
इन बहती हवाओं को .
इन्हें मुठी में कैद करना
अब मुमकिन नहीं .

ये विलायती कीकर -
अब तो पुरे देश में छा गए ,
जिन्हें एक षड्यंत्र के तहद -
अंग्रेज यहाँ लगा गए .

तू चाहे भी तो इन्हें निर्मूल नहीं कर सकता -
अपने नीम पीपल काट दे-जला दे
पर ये कैंसर की कोशिकाएं -अब
मरने वाली नहीं -
एक से अनंत हो जाएँगी -पर
ये मुल्क छोड़ कर कहीं नहीं  जायेंगी .

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