Popular Posts

Sunday, January 9, 2011

फूल बोता नहीं -

फूल बोता नहीं -
एक से अनेक कलमें
काटता हूँ- लगाता हूँ
मैं -फूलों के नए नए
चमन खिलाता हूँ .

इस भांति -मैं
हर रोज नए फूलों के -
शहर बसाता हूँ
अपनी कविता की
खुशबु से पूरी दुनिया
को महकाता हूँ .

हाथों में फूलों के -
गुलदस्ते लिए
यहाँ -वहां , कहीं भी -
निकल जाता  हूँ.

फूल प्रतीक हैं -
प्रेम के -आस्था के
सत्य के -विश्वाश के
स्वयम काँटों में रह कर भी
तुम्हें फूलों से सजाता हूँ .

No comments:

Post a Comment