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Saturday, June 29, 2013

प्यारे फैंकू - फैंक दे

प्यारे फैंकू - फैंक दे 
इनको सागर पार
खाना पीना बंद हो 
यही उचित व्यवहार .

इनको रखो जेल में -
या फिर बेचो सेल में .
मुफ्त कोई ले जाए तो 
बाँट जमूरे खेल में .

बिना बाल की मूंछ है
ये कुत्ते की पूंछ हैं .
चूहा नहीं ये घूंस हैं .
पक्के बावले बूच्छ हैं .

अधूरी अतृप्त सी - मन की वासनाएं

अधूरी अतृप्त सी - 
मन की वासनाएं 
फूलों पर मंडराती 
रूपमती इच्छाएं -
तितली सी - घूमती 
मादक हवाएं - 
मन ये सोचता हैं यहीं रुकें -
या कहीं आगे निकल जाएँ .

हर बरस - बिन बरसे 
आगे चली जाती हैं
ये - काली घटाएं .
कुछ याद हैं तुम्हें - या
हम भी भूल जाएँ .

हो जाता है मन छिज्जा
पसीजा सा - हथेली
भीगने लगती हैं -
दिल चाहता है - ये
बादल अब ना बरसें -
विरही मन अब ना तरसे .

पर फिर - लौट आती हो
दूर जाकर - पास आकर
ये निर्दयी सावन - धुप से
अठखेलियाँ करते ये बादल
और मन में छिपी हुई - सी
कहीं तुम - या
फिर कोई नहीं .

तुम चकले पर मुझे रोटी सा बेलो .

तुम चकले पर 

मुझे रोटी सा बेलो .

मेरे अस्तित्व से खेलो

मेरे साथ कुछ भी कर दो .


तवे पर डालो या - 

कडाही में तलो उबालो 

काटो छांटो - मुझमे 

मिर्च मसाले - आलू 

कुछ भी भरदो .




ये तय है -

मैं उफ़ नहीं करूंगा

रूप बदल लूंगा - पर

फिर भी नहीं मरूँगा .

आम आदमी हूँ  मैं 

कांग्रेसियों को बादाम का मजा सस्ते में

उसकी हैसियत का 
अंदाज़ नहीं लगाइये 
सूखा चना  है - ज़रा 
चबा चबाकर खाइये .

घी शक्कर ना मिले तो 
पहले पानी में भिगोईये 
फिर कच्चा ही चबा जाइये .

पक्की बात है नहीं मिलेगा 
मोदी से ज्यादा स्वादिष्ट 
वा स्वास्थ्य वर्धक टानिक 

कांग्रेसियों को बादाम का 
मजा सस्ते में - 
अभी पैसे नहीं - कोई बात नहीं -
लौटते में ले लेना रस्ते में .

Friday, June 28, 2013

'बडे आये - बड़े दिल वाले '

यूँही खामोश क्यों 
रहती हैं आप . 
क्यों नहीं कहती - जो 
हर बार कहती हैं आप .
सरकारी से सरकार मेरे - 
अब कह भी दो - 
'बडे आये मोदी से - 
ड़े दिल वाले '

जिन्दगी अनमोल भी है

जिन्दगी अनमोल भी है 
जिन्दगी बेकार भी है .
इक कदम पर जीत भी है 
दो कदम पर हार भी है .

मुश्किलें सागर सी गहरी 
उलझनें पहाड़ भी है .
इक कदम आसान सा है 
दो कदम दुश्वार भी हैं  .

आसमा सुखा खडा क्यों 
बादलों से रार भी है .
दामिनी तुम खूब चमको 
ज्योतिर्मय संसार भी है .

जीत जाना जीत भी है 
हार जाना 'हार' भी है .
झिडकियां खाती है लेकिन 
जिन्दगी से प्यार भी है .

Wednesday, June 26, 2013

कुछ 'अ-प्रश्न'

कुछ 'अ-प्रश्न' 
कुछ एकल संवाद - 
सिर्फ अपने आपसे -
उधार का सोच - 
ढोते रहे ताउम्र - यार 
क्यों नहीं सोचा कभी 
खुद - अपने आपसे 
यार उम्र हो चली - 
अब तो लगने लगो - 
तुम भी अपने बाप से .

क्या हर्ज़ है

क्यों ना इन - चिलचिलाती -
बेगैरत पश्चिमी - 
नंगी हवाओं को 
गहरे प्रशांत सागर - 
तलकी तरफ मोड़ा जाए .

एक अश्वमेघ का घोडा 
अरूणोदय - बुद्ध के देश से
पश्चिम की और छोड़ा जाए .
हर दुश्मन के - बाजुओं को 
तोड़ा -मरोड़ा जाए .

आतातायी - देशद्रोही और
राह के बेशर्म - ढीठ पाषाणों को
पहले - घन कुदालों से तोड़ा जाए .
गाँव की पगडंडियों को -
चमचमाते राजमार्गों से जोड़ा जाए .

फिर क्या हर्ज़ है - जो
गोलगुम्बद* में बसने के लिए
मोदीके संग जनपथ से -
राजपथ की और दौड़ा जाए .

गोलगुम्बद* = संसदभवन

Saturday, June 22, 2013

यूँ तो जिद्दी बहूत हूँ

यूँ तो जिद्दी बहूत हूँ
कैसे मिलो ना नाथ 
द्वार तुम्हारे आ गया 
बांधे दोनों हाथ .

मेरा इसमें कुछ नहीं 
तेरा हित भी होए .
बिन सेवक के सोच तो 
स्वामी भया ना कोए .

तेरी मेरी प्रीत तो
नर नारायण साथ
जिक्र करेंगे लोग सब
तेरा मेरे साथ .

प्रभु की कृपा अपार है
ना कोई उसका पार
जितना चाहे मांगले
भक्ति में सब सार .

कितनी अच्छी बात है
अगर कभी ये होए
मैं नर रह जाऊं भले
पर तू नारायण सोहे




अब ना छूटे साथ .

विपदा पड़ी - पहाड़ पर
संकट भया अपार .
नारायण तक पहुंचना
नर का मुश्किल यार .

कैसे हम रह पायेंगे
बिना तुम्हारे देव
कैसे मांगन आयेंगे
देव देव कछु देव .

मुक्ति निश्चित हो गयी
अब क्या करो विचार  .
पहले ही कुछ सोचते -
अब हम भवनिध पार .

जो डूबे सब तर गए
ये तो पक्की बात
मेरे भोलेनाथ जी
अब तो थामो हाथ .

नारायण भगवान् हैं
नर भी नहीं अनाथ
सच्ची बातें हैं प्रभु
अब ना छूटे साथ .









परबत पर बाधा हुई

परबत पर बाधा हुई 
नहीं किसी में रोष .
ऊपर से ले जायजा 
ना किंचित भी शोक .

क्यों उतरे जमीन पर 
पानी कीचड गाद . 
नीचे अपना कुछ नहीं 
ऊपर अपना राज .

तुम्हें ये मोदी ही आखिर क्यों भाता है ?

किसी ने कहा - 
क्या कोई और -
नहीं मिला लिखनें को
तुम्हें ये मोदी ही 
आखिर क्यों भाता है ?

दिल में आ रहा है 
पूंछूं - यार चलो 
कोई दूसरा नाम - 
सुझा दो .

कभी सपने में भी
देश हित की सोची हो
ऐसे किसी एक
नेता का नाम तो बता दो .

जीवन कल की आशा

जीवन कल की आशा 
और आज का विश्वाश है . 
मृत्यु सत्य - शाश्वत 
और निश्चित है .
जीवन सुंदर है - 
शुभ्र प्रकाश है .
मृत्यु एक असीम शान्ति 
भरा अन्धकार है . 
सकाळ के अकाल में 
खो जाने का नाम ही 
संभवत: मृत्यु है .

शब्द आईना होते हैं

शब्द आईना होते हैं 

जाने कितने भावों को 


अलग अलग तरह से 


बार बार ढ़ोते हैं .


छिपे भावों - प्रभावों को 


उडती कल्पनाओं को 


मादक कल्पनाओं को 


जिवंत करते - पर 


फिर भी अर्थ नहीं खोते हैं .


तभी तो कहते हैं 


शब्द मरते नहीं - 

अमर होते हैं .

Thursday, June 20, 2013

तेरे द्वार आने को

(श्री केदारेश्वर से क्षमा याचना सहित)

तेरे द्वार आने को 
दर्शन पाने को .
अपना घर छोड़ा - 
बार छोड़ा - तुझसे 
मिलन की आस में 
सारा संसार छोड़ा .
तूने पीछा अपना - 
छुड़ा लिया सस्ते में 
खुद मिला नहीं मौत को - 
भेज दिया रस्ते में . 


Tuesday, June 18, 2013

क्या कर लोगे जी

क्या कर लोगे जी
क्या बिगाड़ लिया -
क्या उखाड़ लिया
उस सोनिया प्रधान
या मनही मन महान का .

हमारा क्या - हम
तो हैं मनमौजी  -
अक्खड़ पुलिस वाले हैं
नहीं कोई फौजी .

किसी नियम विधान
डंडा प्रधान -
सारे तर्क -ऐ - जहान को
नहीं मानते .

जहाँ दिल करता है
जाते हैं - चिंघाड़ते
चीखते चिल्लाते हैं .

हमारी आँखों में
बिजलियाँ है -
नजर मिलाई -
तो जल जाओगे .

फिर मत कहना -
सताया बहूत -
बताया नहीं
अभी भी समय है -

छतरी खोल ले -
वर्ना अपने इरादों से
तरबतर कर दूंगा -

पूरा पहाड़ नहीं
तेरी दिल्ली भी -
उफनते - सैलाबों से
लबालब भर दूंगा    

Saturday, June 15, 2013

'यार' वो नहीं मिला .

शहर के फेरों में 
गाँव के घेरों* में
पीपल के पेड़ों में 
झुरमुट घनेरों में 

आशा और आस में 
बिजली प्रकाश में 
ढीबरी के पास में 
नीम अंधेरों में . 

झाडी के बेरों में -
पत्थर के ढेरों में
ढूंढा मिला नहीं
कहाँ कहाँ हेरूं मैं .

सीधा सा सादा सा
मिट्टी - बुरादा सा
कुछ कुछ नर सा
और कुछ मादा सा .

जलता अलाव सा
लकड़ी पुलाव सा
बाजारी भाव सा
गुस्से में ताव सा

खोये उन सालों में
गोरों में कालों में
इंसानी खालों में
नदियों से नालों में

दुःख में रुदन सा
सुख का कृपण सा
बहन में भाई सा
भाई में बहन सा .

रीता सा बीता सा
हारा सा जीता सा
शब्द ये कविता सा
पुस्तक में गीता सा

गढ़ी ना कोई किला
सूत्र ना कोई सिला
ढूँढा जीवन भर जो
'यार' वो नहीं मिला .

घेरों* = वो स्थान जहाँ पशु बांधे जाते हैं

Tuesday, June 11, 2013

अभी मैं हूँ अलबत्ता

असंतोषी जीव है 
यारो ये इंसान 
जब तक दाता दे इसे 
तब तक इश्वर मान . 

तब तक इश्वर मान 
नहीं फिर कोई सत्ता 
होगा खुदा - कहीं 
अभी मैं हूँ अलबत्ता .

बना दिया - तो भुगत
अरे ओ ऊपर वाले
ले ले मजे हज़ार
और इंसान बनाले .

चाहे जितना भौंक .

कहाँ छिपे बैठे सभी 
ये सत्ता के वीर 
कहीं कोई जलसा नहीं 
ना कोई तक़रीर .

सत्ता बैठी चैन से
ना किंचित भी शोक 
चाहे जितना चीखिए 
चाहे जितना भौंक . 

अडवाणी ने खींच दी
चुप्पी ये गंभीर
ना शेरो सी गर्जना
ना मोदी के तीर .

उठ रहा नभ में धुंआ सा देखिये

उठ रहा नभ में धुंआ सा देखिये 
हर तरफ फैला कुहासा देखिये 
सामने गहरी खुदीं हैं खाइयाँ 
और पीछे है कुआँ सा देखिये .

पतझरों का दौर बीती बात है 
फूल ही बस फूल हैं बिखरे हुए
जहाँ तक भी यार जाती है नजर -
पात सूखे देखिये निखरे हुए .

आज कुदरत का तमाशा देखिये
पेड़ खुद फल अपने खाता देखिये .
आदमी मजबूर है मगरूर भी
आज बन्दर का तमाशा देखिये .


बाँध के जिनके किनारे वास हैं 

घर बना उनका कुआँ सा देखिये 
प्यास सागर की कभी बुझती नहीं  

आज नदियों को भी प्यासा देखिये .

बारिशों की बूँद से राहत नहीं
बादलों का झुण्ड आता देखिये
क्षीर सागर में प्रभु का वास है
आदमी है फिर भी प्यास देखिये .

आदमी देखो जरा सा .

आँधियों तूफ़ान में 

निश्चल खड़ा सा 

बीहड़ बियाबाँ में 

पसरा पडा सा 

हैं इरादे पर्वतों की चोटियाँ 

और आदमी देखो जरा सा .

बड़े आये थे रहने को - गए सब भूतनी वाले

बड़े आये थे रहने को -
गए सब भूतनी वाले -
चले जायेंगे ये भी - जरा
थम जाओ पल तो पल
अभी से यार इनको -
भेजने की जिद नहीं करते .

किरायेदार बन आये -
जो मेहमाँ बनके रहने थे
मकान मालिक बने बैठें हैं
किसी से क्या कहें यारो
किसी से कुछ नहीं कहते
बड़े कड़के हुए हैं हम
और सड़कों पे रहते हैं .

नजर अब तो सवाली हैं -
मायके ले गयी सब माल
ना असबाब कुछ छोड़ा -
पलास्टर तक खुरच डाला
बड़ी बदरंग दीवारें हो गयी
अपने मकानों की .

बड़े कमजोर से हैं हम
किराया मिल नहीं सकता
लड़ाई कर नहीं सकते
दबंगई का है ये आलम
कड़ाई कर नहीं सकते .

यही है रास्ता बाकी
बहुमत भी बना लेंगे
इन्हें हम वोट के जरिये
(मकाँ घर देश की छोडो )
दिलों से हम निकालेंगे .

क्षणिकाएँ


जिन्दगी उम्मीद है आस है

मौत जिन्दगी हो ही नहीं सकती
ढूँढना जिन्दगी को पड़ता है
मौत तो कहीं खो ही नहीं सकती .

कोई हमदर्द - कोई

अपना सा - ढूंडा बहूत
कभी मिला ही नहीं
सिले और क्या मिलने थे यार 
जब कोई सिलसिला ही नहीं .

जब इंसान अट्टाहास करता है 
तो प्रकृति बहूत रोती है .
पर प्रकृति की हंसी - तो 
बड़ी डरावनी विभित्स होती है .

ना सही फूल - 
काँटों का ही सृजन कर 
आज प्रसव की - 
कुछ पीड़ा सहन कर . 
कल ये तेरे गुलशन के 
पहरुए कहलायेंगे .

जिदगी शान से जियोगे 

या सफ़ेद चमड़ी से -
अपनी भद्द पिटवाओगे 
ये तुम पर निर्भर है 
की शमशान में जलोगे 
या फिर ताबूत में जाओगे .

एक मोदी को 

ओढोगे या बिछाओगे -
या फिरंगियों के हाथों -
देश की अस्मत -
दुबारा लूटवाओगे .
अब घर में ही पड़े रहोगे 
या सड़क पर भी आओगे .

नीरो की मुरली बजे फड्कें सारे अंग - 

झूम झूमकर - नाचले फिरना हों ये रंग . 

दिल्ली कितनी दूर है - इटली कितनी पास 

जिस दिन बस्ता हो जमा - टूटे इनकी आस .

रात सतरंगी -

रंगारंग हसीन 
पर सुबह के 
बस दो रंग -
या तो सबरंग - 
या फिर बेरंग .

कई बार यूँही - कुछ कहने को दिल नहीं करता .

वो खामोश हों तो चुप रहने को दिल नहीं करता .

जिन्दगी इम्तिहान - पहेली नहीं

सुघड़ नार तो है पर नवेली नहीं 
गम ख़ुशी दोनों साथ साथ मिले 
ख़ुशी मिली - पर कभी अकेली नहीं .

आओ स्वागत करें -
इस मुस्कुराती शाम का
उजाला जा रहा है रोक लो - 
अब ये मेरे किस काम का .


सुबह होगी तो - सब जान जायेंगे 
ये सूरज भी - निकल आएगा .
बादलों की ओट में - आखिर 
कोई इसे कब तलक छुपायेगा .


रहने की चाह थी - मगर रहने नहीं दिया 
कहने को बहूत था मगर कहने नहीं दिया 
अनुबंध के घर या की दिल की शर्त है यही 
अवधि ख़तम पैसे ख़तम तो निकल जाइये .


ना ये भाग्य से मिली उन्हें -
ना मिली उन्हें जो थे खेल में . 
बडी कीमती थी स्वतंत्रता - 
गधों को मिल गयी 'सेल' में .


जिन्दगी खेल थी - 
गुज़र गयी खेल खेल में 
कठिन पढ़ाई थी - बीत गयी 
नतीजे और - इस पास फेल में .


बिगाड़ लो जो बिगाड़ना है 
करूँ वही जो मन भाया 
उखाड़ लो जो उखाड़ना है 
लो पप्पू स्वीडन घूम आया .


प्यार गर ज्यादा नहीं
तो यार कम ही सही .
जब करना ही है 
तो फिर कोई और क्या 

हम ही सही .

इतना कमजोर भी नहीं हूँ - 
जो तुमसे सुलह की बात करूं .
युद्धविराम नहीं हुआ है अभी 
क्यों ना तुमसे दो दो हाथ करूं .


ना सही हुकूमते हिन्द -
कमसे कम 'वो' तो वहां थे 
अरे जब मोदी जी वहां थे - 
तो देश के बाकी सीएम कहाँ थे ?
 

सत्ता की कुर्सी से दूरी 
लड़ना है चुनाव जरुरी 
मोदी का विरोध मुखर हो  
कांग्रेस की है मज़बूरी .


अब तो मेरे लाल उतर जा 
चढ़े रहोगे कबतक गोदी .
चुप होजा अब रो ना ज्यादा 
वर्ना आ जाएगा मोदी .


हाय हाय -अब गयी हाथ से 
निकली कुर्सी बहूत पास से 
अम्मा मेरी रोको इसको -
आम आदमी कह बहकाया 
मोदी तो हैं बहूत ख़ास से .


गाँधी नेहरु त्याग बावले 
मत कर इनको देश हवाले
जाओ मोदीजी से कह दो 
उठे पार्थ गांडीव सम्भाले .

जिन्दगी लट्टू सा 
घुमाती रही - 
ना कहीं पहुंचना था 
ना कभी पहुंचे कहीं .

ये द्वार - 
किसने खटखटाया था 
अभी यहाँ कौन आया था .
हवा या तुम - या 
फिर तुम्हारा ख्याल .

ना हकीकत - ना फ़साना था 
ये नए दौर का ज़माना था - 
एक दौड़ थी - अंधी जिसमे 
जिन्दगी जी तोड़ कमाना था .

ना मिले कुछ तो सबर करिए 
ना मिले ठौर तो सफ़र करिए .

पहले इंसान तो बनले बादमे करना शिकार 
महूब्ब्त सीख ले पहले ओ भोंदू राजकुमार .
वो जो सीमा पे खड़ा होके करता ललकार - 
तिरंगे में लिपटा हुआ है देशका प्यार दुलार .

शहर में नीम अन्धेरा - और रौशनी की दरकार 
ये मरघट के दिए जलते हुए अच्छे नहीं लगते .

ख्वाब देखना ही है 
तो फिर ऐसा देखो 
जो हकीकत में हो - 
और हकीकत सा लगे .

ऐसे सपने जो कभी हो जाएँ सच
मैं कहता हूँ ऐसे सपनों से बच .
है बहूत भीड़ यहाँ बचके निकल 
कहीं दिलसे दिल ना हो जाए टच .

पिज्जा बर्गर अब जाने दे 
तू देसी खीचड़ी खा प्यारे .
मैया - भैया में क्या रखा -
मोदी मोदी चिल्ला प्यारे .

जाने कैसा ये मौसम है 
जिस बारिश में हम भीजें है . 
ना दारु है ना पिज्जे है 
ना ढोल कहीं ना डीजे है .
फिर भी क्या है इस मोदी में 
जाने क्यों हम इसपर रीझे हैं .