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Friday, December 30, 2011

फूलों - बहारों की बात जाने दो

फूलों - बहारों की बात जाने दो
जरा इस तरफ - पत्थरों की बौछार
तो आने दो - बचें या फटे हमें क्या 
उन्हें सर अपना खुद बचाने दो .

और बढ़िया क्या होगी - सौगात
तमाचे गाल पे - इनके अभी लगाने दो
पुराना साल बीत जाएगा तो क्या -
इस नए साल को तो जरा आने दो .

नए चेहरे नहीं - वही बासे हैं
हाथ में उनके वही पासे हैं .
खेल नटवर को खेलने दो अब
शुक्नी को भी तो मात खाने दो .

कोई दो चार - नहीं अरबों -खरबों हैं
हिसाब मुझको आज तुम लगाने दो
एक एक पाई वसूल होगी अब -तुम 
मुझे रौशनी में तो जरा आने दो .

प्यार हमने भी किया था यार

प्यार हमने भी किया था यार - पर
हम अपने ही रहे - किसी और के
ना जाने कभी हो ना सके .

वक्त की मार - ने कस्बल
सारे ढीले कर दिए .
लगाये थे  बूंटे तो - बहारों में  
नामुराद - पतझर ने पात सारे
पीले कर दिए .

जुल्फे रुखसार पर फ़िदा जान थे हम
चाँद निकला ना कभी -
काली घटा छाई रही .
निकाह की बात जाने दो -
सफल अपनी तो सगाई ना रही .

आगंतुक का - स्वागत हो

इतना सुन्दर भी नहीं था
की जाने का शोक होता .
इतना बुरा भी नहीं था की -
चला जाता तो अच्छा था.

जैसा भी था मेरा कल
जो अब नहीं है .
आज मैं जी रहा हूँ - जैसा भी है
ये नया कल - अभी आया नहीं है
जाने कैसा होगा -कौन जाने .

पर - आशाएं अभी से
हम क्यों छोड़ें .
अपना आशावादी -
दृष्टिकोण आखिर क्यों तोड़ें .

आगंतुक का - स्वागत हो
आरती का थाल सजाने दे .
वो अपने साथ - ख़ुशी या गम
ज्यादा या कम - जो भी
ला रहा है - उसे लाने दे .

क्षणिकाएं

बहूत खूब जिये - वो गुजरे पल
चलता रहता है - ये आज और कल
समय के साथ साथ - उम्र भर चल .
फिर क्या फर्क है - वो आज हो या कल .


आने वाले का जश्न बाद में -
पहले मेरे अनुत्तरित -
प्रश्नों के तो उत्तर दो .
नवागंतुक का स्वागत बाद में -
पहले मुझे तो चलता करो .

वर्ना याद रखना - मैं अपने
गुजर जाने का शौक
नहीं मनाऊंगा - आने वाले के
काँधे पर चढ़ कर फिर चला आऊँगा .
 चलो डूबने वाले पत्थरों से - ही पुल बनाये
तब तो मुमकिन है - समन्दर से
शायद जीत जाए .
मत कहो - सबका काम
यूँ ही तमाम होता है .
मरने वालों/ डूबने वालों का भी
तो इतिहास में नाम होता है .
यह अंतिम - सुबह शाम
इस निरे बुद्धू - वर्ष के नाम
फिर ना कहना - फिर कोई बताएगा नहीं
गया ये वर्ष तो फिर - लौट के आएगा नहीं .
फेंक दो पत्थरों को पानी में
कुछ तो द्विस्ट हो कहानी में .

तेरे मेरे बीच बहती ये नदी -
चुप नहीं - बहूत कुछ कहती है.
किनारे दूर दूर है लेकिन - इन्ही
के बीच कहीं छुप के वफ़ा रहती है .
आवाज़ में असर हो तो - दुआ कबूल होती है जरुर
वर्ना घुट के रह जाती है - चीख भी नक्कार खाने में .
किसी को क्या बदलने चला है तू - अब छोड़ यार
उम्र लगती है असर होने में - बांसों पे फूल आने में .
तेरे जज्बात को समझता हूँ - मैं
पर अभी छोटा है  - तू बड़ा हो जा.
सफ़र लम्बा है - रास्ते मुश्किल 
घुटनों के बल रेंगने को छोड - अपने
पैरों पे पहले  खड़ा हो जा . 
मीर मेरा पडोसी था -
मोहल्ला मीरासियों का था .
घर कान्हा का - वृन्दावन
दबदबा देवदासियों का था.
 
 
 
 
 
 

Thursday, December 29, 2011

गाँधी का नया अवतार

पूरे हिंदुस्तान में केवल
एक जिन्दा आदमी - या फिर
मान लें की पूरा मुल्क
मुर्दों की बस्ती है .

कह रहें हैं लोग - की
इस मायने में लोकपाल -
एक उपलब्धि है .

यहाँ स्तुति गान से ही - फुर्सत
कहाँ की सोचें - विचारें
इस मुए लोकपाल को
किस किस के सर पर देके मारें .

एक आदमी अपना नाटा कद
राजनीति के झूले पर -
पींगें ले लेकर बढ़ा रहा है .
कैसे कहते हो की -
गाँधी का नया अवतार
आपके सामने आ रहा है .

भूलने की आदत डाल - ये
इतिहास से एक और नया गाँधी
मत निकाल ( अभी पुराने से तो
फुर्सत पा लें ) उसके उतराधिकारी
वंशजों को तो पहले निपटा लें .

Tuesday, December 27, 2011

पहला ही चक्कर है - अभी और फेरे हैं .

जो ना टकराए कभी-पर्वत सुमेरों से 
उमड़ घुमड़  - गहराए ना सिन्धु की मुंडेरों से 
तटबंध ना तोड़े  जो - पवन के झकोरों से 
तूफां के मौसम में हम लहरों से खेले हैं .
  
जो मिला साथ चले - कदमो से कदम मिला  
दूर तक चले जो साथ - वो फासलों के मेले हैं .
क्या तूने - झेला है , तूने क्या सहा यार
रिश्तों की भीड़ में  - हम बिल्कुल अकेले हैं .

फुर्सत नहीं पल भर - चलना तो है हरपल
एक खेत सींचा है - अभी आगे बहुतेरे हैं .
थकना नहीं है मुझे - रुकना गंवारा कहाँ 
पहला ही चक्कर है - अभी और फेरे हैं .

सूरज की कौन कहे - चंदा भी मौन रहे .
अंधियारी रात - सारे भुवन को घेरे हैं
दीपक प्रकाश पुंज - चांदनी बिखेरे हैं
निपटना है उनसे मुझे - जो मन के अँधेरे हैं . 


Friday, December 23, 2011

दिल की बात करते करते

दिल की बात करते करते  -
ये दिल हाथ से जाने लगा है .
तमाम जिन्दगी - के सफ़र
का एक एक वाकया - नजर
के सामने आने लगा है .

जीने की बात कहता हूँ -
और हर पल मर रहा हूँ -
ये मर्म आज कुछ -
ज्यादा सताने लगा है .
काश ना - आखिरी हो
ये कविता मेरी - आज
खुद पे से एतबार जाने लगा है .

फलक पर चाँद है तो सितारे भी होंगे -
आस्मां में उड़ने को -
आज जी चाहने लगा है .
ऐ मेरे मेहरबान दोस्त सुन -
बादलों ने  मुझको - चुनौती दी है
आज इनके पार जाने को
मन इतराने लगा है .





Wednesday, December 14, 2011

क्षणिकाएं

शब्द ये हैं कमाल के यार
प्यार से बोलो - निहाल हों जाएँ
कई खुद में सिमट जाएँ - कई
अपने -आपे से बाहर हो जाएँ .


बोल कडवे हों - मगर सच कहना
जमीं हिल जाए - पर तू डटे रहना .
मान ले तू अगर मेरा कहना  - झूठ
कहना नहीं - सच को सच कहना .


तू मेरा आज है  - 
और वो  कल था .
मेरा क्या -मैं तो 'कल'
बीता हुआ कल हो जाऊं .  


प्रकाश - की बात पर 
चाँद सूरज - तारे
सब फकीर से मौन हैं .-
तभी दीपक ने विनीत भाव
से पूछा  -  ये अँधेरा कौन है  ?


जो टूटे कौन से थे -
सितारे मौन से थे .
बात आकाश की है -
चाँद देगा जवाब .
लिखा था ख़त मिला नहीं -
है झूठ सरासर -
ये और बात है - की
तुम ना जवाब दो .

कहते हैं हर सवाल का जवाब नहीं होता
अब क्या जवाब दूं मैं - तेरे सवाल का .
एक पल - जो मिला
सदियों के गिले गए.
जज्बात के आँचल में
प्यार के पैबंद -फिर
फुर्सत से सिले गए .
किसके थे - अब याद नहीं
यहाँ ना जाने -
किस किस के हो चले .
थक जाओगे - रुक जाओ एक पल
ये जिन्दगी के रस्ते - अनंत हो चले .
चलते चलते -निरंतर इस
भूलभूलैया में हम खो चले .
रुक गया था एक पल -को
बस यूँ ही - चलूँ आगे बढूँ .
सच हो के ख्वाब हो -
ना जाने कौन हो तुम .
आओ चलें - इसी बहाने
धुप का तकिया - गर्म
लिहाफ में छिप जाये  .
या फिर - मन में बिसूरते
ग़मों को - गंगा में 'बहाने'
तो चलो चलें गंगा नहाने.
जाड़े की ठंडी - वीरान
कोहरे में लिपटी -
ठिठुरती शामें -
मन में जाने कैसे कैसे -
उजड़े से अहसास जगाती हैं.
सन्नाटे बोती सी - लबों पे
एक लाचार सी चुप्पी उगाती हैं .
एकांत - सितार सा बजेगा फिर
मन चाहा गीत गुनगुना - ना .
फिर किसी रोज बात करेंगे हम -
तू अभी यहाँ से चला जा ना .
जी खोल के हंसा मैं - खुद अपने आप पर
फिर उसके बाद - मुझ पे हंस ना पाया कोई . 
ये तेरी दुआ थी - या प्यार
जो मैं कल भी था - और
आज भी हूँ - यार .
सच हो के ख्वाब हो -
ना जाने कौन हो तुम .
 
 
  
 
 
 


 

 







Tuesday, December 13, 2011

ये सिरफिरा चाँद - पागल है

ये सिरफिरा चाँद - पागल है
पर नहीं अनजान .
चन्द्रप्रभा के दुखों से - आखिर
क्यों नहीं परेशान .

सुन , तुझ से क्या -
कहती है चांदनी - जो 
बादल हवाओं में अटकती -
धरती पर आने को भटकती .
क्यों नहीं उतरने देती - इसे
ये प्रचंड सुर्यप्रभा - जमीन पर .

और तभी - सुबह के
अंदेशे में - लौट जाती है -फिर
वापिस चंद्रलोक को .  
ये क्रम अनंत काल से  - चल रहा है
रात हो रही है - दिन निकल रहा है .

Saturday, December 10, 2011

तुम एक आदमी हो

तुम एक आदमी हो - झंझावात आंधी नहीं
तुम अन्ना हजारे हो पर महत्मा गाँधी नहीं .

हजारों साथ चलते थे - जब वे घर से निकलते थे
सत्याग्रही हर कदम पर उनके साथ साथ चलते थे .
अकेले आपकी तरह - चने से भाड़ में नहीं जलते थे.
एक 'बाबा' आपको इतना ज्यादा क्यों खलते थे .

वैसे आपकी इच्छा है - आपकी मर्जी है
पता नहीं 'बाबा' से आपको क्या अलर्जी है .
सफलता का श्रे अकेले लेना - साफ़ साफ़ खुदगर्जी है .

ये जान लो - चाहो तो सच मान लो -
एक लहर - सिर्फ नदी सी बहती है 
तूफान नहीं उठाती - तट से दूर नहीं जाती
सभी का संग साथ कर लो -हम भी
बीच मझधार ना डूबें और
तुम भी पार उतर लो . 

इतने 'शायदों' के बीच - एक और शायद .

उफफ्फ्फ्फ़ ...ये
इतने 'शायदों' के बीच -
एक और शायद .

अब बस भी करो -
अंतरे बदल दो - भगवा
ना सही हल्दी से रंग दो -
छोटा - बड़ा या तंग हो - पर
अब चोला बसंती रंग हो .

शायद अन्ना - सुभाष है
ये कैसी बेमेल आस है - ये
इतने दूर के ध्रुव -क्या इतने
पास -पास हैं .

अन्ना को अन्ना ही रहने दो - चाहे
क्षीण सी लहर है - पर इसे यूँही
दोनों किनारों के बीच बहने दो .

जो गाँधी सुभाष ने सहा इन्हें भी
तो थोडा सा सहने दो .
लोगों को क्या है -
लोगों को कहने दो .

Wednesday, December 7, 2011

ये क्रांति के रथ

ये क्रांति के रथ -
ये रामलीला मैदान के जलसे .
ये उजड़े उजड़े से राजपथ .
भूख से फाका करते लोग -
(अनशन नहीं )
आत्महत्या करते हैं .

इनपर भी मुकदमा चलाओ -
या अन्ना के बराबर में -
अनशन पर बैठाओ - मरना
जरुरी है -तो लोकपाल के लिए मरो .
ये गधे - सिर्फ अपने लिए क्यों मरते हैं .

क्षणिकाएं

इस पत्ती को छोड़ दो -
इसे थोडा छांट दो .
क्या बकवास है - ये
खरपतवार हैं -यार
इन्हें तो जड़ से ही काट दो .



इन बूझते चिरागों से -
हम क्यों उम्मीदें लगाये बैठे हैं .
आप जानते हैं - घुप्प अँधेरे में
हम कबसे आये बैठें हैं .
गले थक जायेंगे - हलक पक जायेंगे
अब तो जयकारा लगाना छोड़ दो .
जिंदाबाद - कहने से बच ना पायेंगे - ये
मौत से शर्तें लगाना छोड़ दो .
शब्द नापते तोलते हैं - फिर बोलते हैं
इशारों में समझ लो - तो कुछ और बात है .

ऐसा क्या हुआ...? 
जो...ऐसा ख्याल आया ...!! 
हलक से सारी -
ख़ामोशी निकाल आया ...!!

बड़े थे हौसले दिल में - चाँद तक मन की उड़ान थी
तीर थे हाथ में - पर किसी दूजे के हाथ में कमान थी .
कभी अहसास होता है -
तू हर दम पास होता है .
कभी तू भी नहीं मैं भी नहीं -
दसों दिशाएं चुप - सारा भुवन मौन है .
सोचता हूँ फिर ये तीसरा शक्श कौन है .
ना कोई कसम थी - ना ही थी मनुहार
आखिर मैं यहाँ - क्यों चला आया यार .
सच ना सही तो - एक झूठा ख्वाब ही सही
इतना ही बहूत है मेरे जीने के लिए - यार .
अब आइनों में कोई चेहरे नहीं होते
बिके हुए लबों पे अब पहरे नहीं होते .
गलत हूँ तो बता देना मुझे - सुना है
शमशीर के जख्म अब गहरे नहीं होते .
 
 
 




 
 





कविता कलम से - नहीं बन्दूक से निकलती है

सभी कहते हैं -
मैं कविता लिखता हूँ - पर
क्या जज्बात शब्द ओढ़ लें तो -
कविता बन जाती है -
या भाव निर्लज होकर
सरेराह बिखर जाएँ  -
तो कविता होती है -
ये तमाशा है जनाब -
मनोभावों का दिखावा -
इसे सच मे कविता नहीं कहते .

कविता कलम से - नहीं
बन्दूक से निकलती है .
दिलों की आग दीये सी नहीं
मशाल सी जलती है -
हवा साथ दे तो फिर देख -
कैसे क्रांति की पुरवाई -
तूफानी जोर शोर से चलती है .

Tuesday, December 6, 2011

लो अब आस्मां में भी पहरे

रोक सकते हो तुम - मुझे
मेरे पांवो को .
कैद कर सकते हो -
क्या उडती हवाओं को .

ये असली आग उतना कहाँ जलाती-
जितनी विचारों की आग - जिस्म को
हरारत - दिल को तपिश दे जाती है .

इससे बच सकता है तो बच -
भाग सकता है तो भाग .
ये जंगल की आग - तेरे घर को  
जला ना जाए कहीं -
इसमें जलकर स्वाहा
ना हो जाए यहीं  . 

लो अब आस्मां में भी पहरे -
यक़ीनन -तुम निपट अज्ञानी -
निरे बुद्धू ठहरे - पहले
जमीन को तो संभाल ले .
दफ़न पुरखों को तो -
इससे निकाल ले .
 
लूट ना जाए कहीं - तेरा घर
तेरा कारवां - ये तख्तो ताज.
शाहजहाँ गए - मुमताज़ की चिंता कर .
क्यों उसकी कब्र खुदवा रहा है -
ताज नहीं बनते बातों से -
क्यों बेसर पैर की उड़ा रहा है .

 
 

Sunday, December 4, 2011

नट नहीं - नटनागर की बात कर

अच्छा आदमी  - वो
बहूत अच्छा - किरदार था.
जाने क्यों मुझे उससे महूब्ब्त
बहूत सा प्यार था .
 
ये बहरूपिये  -  बहुआयामी
जीवन जीते हैं - जाने कैसे 
बन जाते हैं हमारे प्रेरणास्त्रोत -
हमारे आदर्श -नेता/अभिनेता .

पर शाश्वत कुछ भी नहीं -
ये नट-नटी के खेल -
ख़त्म होते ही हैं .
फिर कैसा दुःख कैसा विषाद .

जीवन की सच्चाइयों से
रूबरू हो - साक्षात्कार कर.
अभिनय नहीं है जीवन -
नट नहीं -
नटनागर की बात कर.

Saturday, December 3, 2011

कैसे जाऊं उस पार

कैसे जाऊं उस पार -
यहाँ सागर नाव -
लहरें - और तुम हो .

सूर्य की -
स्वर्ण रश्मियाँ लेकर
करूंगा क्या - की
मेरे चाँद तुम हो .

प्रेममय मेरा संसार - कैसे
जाऊंगा उस पार - सोचो यार
बतलाओ करूँ क्या .

पैरोल की अवधि ख़तम -
है चंद साँसे शेष - अब 
मुझे जाना पड़ेगा .

वापिसी के सजे हैं  यान -
निश्चित है महाप्रयाण -
अब जाना पड़ेगा . 


Thursday, December 1, 2011

ये दुनिया चलती नहीं

ये दुनिया चलती नहीं -
कागजी नोटों के व्यापार से
कभी फुर्सत नहीं मिलती - तुझे
रार -तकरार से .

चीखो पुकार - आलमे
दस्तुरे जहाँ हैं - सब भागते
फिरते हैं -  दिले बेजार से .

किसको कहूं रुके  - जो ठहरे
एक पल यहाँ - ना जाने कितने
दूर रास्ते हैं - मंजिले यार से .

थक जाएगा ,गिर जाएगा
तू एक दिन यहाँ - तैयार
जनाजे हैं - बड़े बेक़रार से .

रुकना नहीं मुमकिन तो -
अहिस्ता चला करिए - ठोकर
ना वक्त की लगे - किसी तलबगार के .

रोता हुआ आया यहाँ - रोता
ही जाएगा - हंस कर बिता
संग - पल मिलें जो जानिसार के .