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Friday, February 25, 2011

तितलियों के पंख लाया हूँ

आज उड़ने को तुम्हारी -
कल्पना को -
तितलियों के पंख लाया हूँ !

मैं वही हूँ -
साथ तेरे हर घडी हर पल
उठाए फिर रहां हूँ -
बोझ तेरा इस धरा पर
मैं तेरे ही साथ जन्मा -
हमसफ़र हूँ
कब पराया हूँ .

उजाला मेरा पिता है-
रश्मियाँ मेरा बनें घर,
अंधेरों से रौशनी में आया हूँ
नहीं कोई गैर -पगले
मैं तेरा ही साया हूँ. 

ये नदी

ये नदी -सतत बहती हुई -
मेरे आने वाले कल को,
मेरे आज से मिलाती है .
शांत रहती है - अंतर में उमड़ते
तूफानों को बेतरह छुपाती है.

मैं चुप नहीं रह सकता- तुम
कुच्छ भी कहो -चले जाओ
मेरा साथ छोड़ या -
फिर साथ रहो .

यहाँ मैं हूँ - बस
या ये नदी-
जो बहूत कुछ कहती है -
रुक जाना -जीवन नहीं है
इसी लिए शायद -और उद्दाम वेग से
बहती है .

मेरी कविता मेरे एकांत का नहीं-
मेरे पल भर के मौन का प्रतिफल है
मैं शांत हूँ - पर
कविता में मेरे हलचल है .

मुझ पर विश्वाश कर

मुझ पर विश्वाश कर -मैं
खुद को अमर कर दूंगा ,
तुम्हारी मांग मैं -
अपने लहू से भर दूंगा .

सुबह का आस्मां -और शाम
रतनार - मुझे प्रिय है
लाल रंग यार .

खून में पसीना जब-
आ के घुलता है तभी मेहनत का-
सुफल मिलता है -
माली जब मन से सींचता -उपवन
तभी हर एक फूल खिलता है .

रास्ते- तेरे मेरे अलग होंगे ,
मंजिलें तो अलग नहीं - ऐ दोस्त ,
घर -मोहल्ले जुदा ही सही-
पर वतन तो एक है

तेरी मेरी पीड़ा -फिर तेरी मेरी
कहाँ रह जाती है -
जब कविता सारे दर्द को -
सह जाती है .

तू चल ना साथ मेरे

तू चल ना साथ मेरे -
चलना सिखला दूंगा .
बातों ही बातों में-
सब कुछ समझा दूंगा.

पथ के भारी पत्थर -
रस्ता जब रोकेंगे ,
ये मीलों के पत्थर -
हर पल जब टोकेंगे.

इनको सरका दूंगा ,
उनको दरका दूंगा -
तू चल ना साथ मेरे
चलना सिखला दूंगा .

आये ना साथ कोई -
मैं हूँ ना साथ तेरे,
नहीं हारेगा अब तू -
लाखों हैं हाथ तेरे .

मंजिल मिल जाए तुझे -
रस्ते अनजान ना हों -
हम तुम हैं एक -भले
चाहे पहचान न हो .

ऐ मेरे वतन

ऐ मेरे वतन -बता मैं तेरे लिए
क्या करूँ !
तेरे लिए जिन्दा रहूँ -या तेरी
खातिर मरूं .

मेरे सीने में गड़े ये दुश्मनों के तीर
टीस अनवरत उठ रही है -
घाव अति गंभीर ,

युद्ध का आवाहन करूँ -या
शर शैया पर भीष्म सा सो जाऊं -या
किसी कृष्ण के प्रतीक्षा में -
बूढ़ा हो जाऊं .
सूर्य की दिशा बदलने का -
इंतज़ार आखिर मैं क्यों करूँ .

मैं ही ब्रह्म हूँ - क्यों भूल जाऊं
मेरा कर्म ही धर्म है - फिर
जमाना मुझे भूल जाए -या
याद रखे जमानो तक -इस की
चिंता मैं क्यों करूँ -
मरने से पहले -आखिर क्यों मरूं .
अब सभी कुछ है स्वीकार ,
फिर भले जीत मिले या फिर हार .

धुप की बातें करें

चलो इस ठिठुरते मौसम में -
धुप की बातें करें .

बुझते अलावों में -यादों की
सुखी लकड़ियाँ से,
अग्नि प्रज्वलित करें .

भूले बिसरे -अतीत की यादें
राख के ढेर कुरेंदें शायद
मिल ही जाएँ चंद चिंगारियां -
या बीते कल की परछाईंया .

पुरानी यादें -अगरबत्ती सी
जलती हैं- और देर तक चलती है
उनकी खुशबू उम्रभर कहाँ-
दिल से निकलतीं हैं .

समय नहीं है मेरे पास

जंग लम्बी है -
समय नहीं है मेरे पास
उम्र के इस आखिरी मुकाम पर,
और व्यर्थ गंवाने को .
कहाँ से लाऊंगा मैं वक्त -
हंसने-हंसाने और गाने को .

तुम भी तैयारी कर लो -
युद्ध की भैंरी-बस बजने को है .
कुरुक्षेत्र में दोनों और की सेनाएं
सजने को हैं .
ये वक्त निकल गया तो -फिर
हाथ नहीं आएगा - सोचता है क्या ?
जो होगा देखा जायेगा .

ये युद्ध बिना कृष्ण के लड़ा जायेगा
तलाश सिर्फ अर्जुन की है मुझे
वो कहाँ से आएगा ?
मैं जानता हूँ -यह युद्ध
कुरुक्षेत्र मैं नहीं - मेरे हृदय में
सबसे पहले लड़ा जाएगा.

हमारा हिंदुस्तान

हमारा हिंदुस्तान ,
क्या है मेरा यहाँ -सिर्फ
एक छोटा सा ५५ गज का मकान ,
फिर भी मैं कहता हूँ - 'मेरा'
भारत 'सबसे' महान .

यहाँ मंत्रीमंडल तो है -पर
नहीं है अपनी कोई
संसदनुमा दूकान , जहाँ
पाते हैं खैराते पगार -
तथाकथित 'श्रीमान' .

इस बात का रहे ध्यान ,
बाकी सब ठीक है -मित्र ,
दोस्ती पक्की -खर्चा
अपना अपना .

आइने कभी झूठ नहीं बोलते

आइने कभी झूठ नहीं बोलते -
बुत कभी सच नहीं कहते ,
क्यों की वे अब नहीं है .
पर आइने तो यहाँ वहां -
सब जगह बिखरे पड़े हैं ,
हर कही हैं .

तू मेरी आँखों में निहार
अपनी बिंदी ठीक कर-
बाल संवार.
क्यों की हम तुम -
दोनों ही आइने हैं .

व्यक्ति ताउम्र स्वयं को
आइनों में -या फिर
दूसरों में देखता है -
कभी उसके जैसा बन जाता है -
या खुद को वैसा बना लेता है .

इल्तिजा है दोस्तों - आइने
साफ़ रखो -धुल ना जमने पाए
क्या पता कोई खुद को देखने
इसमें कब चला आये .

कहाँ रहते हो यार

कहाँ रहते हो यार -आजकल
मिलते मिलाते नहीं,
क्या बात है - कहीं आते जाते नहीं .

ठीक है -मेरा घर दूर है ,
तू चलने से लाचार मजबूर है ,
फिर भी कभी कहीं - रस्ते में
यूँ ही मिल जाया करो - सुबह
दूध और शाम को सब्जी के बहाने
ही निकल आया करो .

भाई अपनी तो अजब राम
कहानी है - आँखों में धुंधलका
सा है , फिर भी दूर तक ,
सुबह -शाम सैर करने की ठानी है .

आ, जाओ साथ -साथ चलेंगे
कुछ आज या बीते कल के
किस्से कहानी कहेंगे-सुनेगे .

कितने से दिन बचे हैं -
जिन्दगी सड़क पर चलते चलते
अबतो पटरी पे आ गयी है .
ढलान थोडा ज्यादा है -
और समय की गति तेज.

जाने कब कौन -कैसे और कहाँ
मशीन में ढल जाए -
किस की खबर कौन जाने,
कल के अखबार में निकल जाए.
और आ जायें हाशिये से,
सीधे इतिहास के पन्नो पर .

सुख यदि फल है

सुख यदि फल है ऊँचे दरखत का,
तो तोड़ कर ला तो सही-
पूरी दुनिया-जहान को दिखला तो सही
इसकी कलम अपने उपवन में
लगा तो सही .

पर ये सच नहीं है -दोस्तों
सुख की ये परिकल्पना ही
व्यर्थ है - इसके तो दुसरे ही
सारगर्भित अर्थ हैं .

सुखी वो है -जिसने सुख को
जान लिया -मान लिया.
जो है -जितना है , उसी में संतुष्ट है
ज्यादा की लालसा नहीं करता .
आज के लिए जीता है- कल के
लिए नहीं मरता .

ना की वो जो वर्तमान में -
बहूत है या कम है -उससे खुश नहीं,
और ज्यादा की हवस रखता है,
कल के लिए मरता है , आज जो
सत्य है शाश्वत है- उसका
ध्यान नहीं करता है .

नहीं चाहिए अब

नहीं चाहिए अब -
सच्चे सुख से कम ,
कुछ भी नहीं .

वो सपना जो शहरों को
गावों से मिलाता है .
वो अपना जो -नाना नानी
दादा दादी से मिलने -
हर बरस छुट्टियों में गाँव को
जाता है .

वो घर - जो घर सा ही
नहीं लगता -सचमुच
घर कहलाता है .
बाप जहाँ बोझ नहीं-
घर का मुखिया बन जाता है.
जिस देश में बूढों के लिए -
अलग से घर नहीं -बनते
घर के नौनिहालों की जो -खुद
छत कहलाता है .

ऐसा देश -ऐसा घर ,
जहाँ मंदिर नहीं होते -*
हर घर ही वहां पूजा घर
बन जाता है .
सारे जहाँ में - वो बस एक ही है
जो हिंदुस्तान/कहलाता है .

*(क्षमायाचना सहित-भव्य पूजाघरों को
नाचीज मंदिर नहीं मानता)

भावनाओ के साथ जो बहते हैं

भावनाओ के साथ जो बहते हैं -
वे अक्सर घाटे में रहतें हैं.

जो कायर हैं - बहाव के साथ बहतें हैं
बिना श्रम के - मौका मिला तो
फायदे मे रहतें हैं .

दिलेर पुरुष -हमेशा तुफानो के
रुख मोड़ते हैं - सफल हो तो
दुनिया का ताज पाते हैं ,
काम आये तो -इतिहास में लिखे जाते हैं .

गाते क्यों हैं.

गीत गाते गाते - लोग चीखते-चिल्लाते क्यों हैं
सुर-ताल नहीं जानते तो -
फिर गाते क्यों हैं.

मैंने लिख दिया - तुमने पढ़ लिया,
इतना नहीं है काफी , बाकी को जाने दो
कोई और आएगा - अपना दिल जलाएगा.

ये बेसमय का राग -किसी की समझ में
नहीं आएगा -लोग सड़कों पर
उतर आये ,तो तू भाग भी नहीं पायेगा .
और बेमतलब अपनी जान से जाएगा.

चलो तुमने गा भी लिया तो -किसी से
ना कहना - वर्ना बताने के काबिल भी
नहीं रह जाओगे -की तुमने क्या गाया
क्या गवाया .

अरे बच्चों की कविता नहीं है- ये
तो तोप का गोला है - दागने वाला
भी जान से हाथ धोता है -वैसे
लाल रंग कोई होली खेलने का
रंग नहीं होता है .

मेरी मान -गाने की जिद्द मत कर
जल्दबाजी मे -मुंह जल जाएगा .
ना उगल पायेगा -ना ही निगल पायेगा .
वैसे बिना गाये भी तेरा काम चल जायेगा .

कुछ होने हुवाने वाला नहीं

चीखने -चिल्लाने से , नारे लगाने से
रोने और गाने से -
कुछ होने हुवाने वाला नहीं .

आपस में सर जोड़ कर -
बिना किसी पूर्वाग्रह के ,
आइये सोचें .
और ढूंढ लाये-गहरे सागर से
सीपियाँ -निकाल ले उनमे से
सच्चे मोती -जिनकी चमक
कभी कम नहीं होती .

अपने- अपने हितों का ,
बलिदान करना पड़ता है ,
सभी की चिंता और हितों का -
ध्यान/सम्मान करना पड़ता है.
मछली की आंख को,
निशाना लगाने से पहले -
शर-संधान करना पड़ता है.

ऐसे ही नहीं करती वरण द्रोपदी
उसे स्वयंबर में जीतना होता है .

तभी महाभारत में विजय मिलती है
पांडवों को हर क्षण दूसरों से ही नहीं -
अपनों से भी लड़ना पड़ता है .

हम सभी को -जीवन में ,
पञ्च विकारों से लड़ना पड़ता है.
पर ध्यान रहे - पांचाली को
पांच पतियों की ब्याहता होते हुए भी
पतिव्रत धारण करना पड़ता है .

चल कहीं दूर चलें

चल कहीं दूर चलें -
रंजो गम के साए -ना हों
जहाँ अपने-पराये ना हों .

इस कदर गुम हो जाएँ -खुद में
किसी अपने -गैर को
ढूँढने पर भी पाए ना हो .

पुकारें लोग हमको -
भीड़ में मेले में -
या फिर कहीं
अकेले में- इतने खोये रहें
किसी के हाथ में आयें ना हों .

एक छोटा सा घर - अंजलि भर
आस्मां हो -सपनो का सा
अपना जहाँ हो .
ना कोई हमदम -ना कोई पासबां हो .

तेरे मेरे आलावा किसी-
और की तनिक भी -गुंजाईश ना हो
प्रेम प्यार की जहाँ कोई पैमाइश ना हो.

है कोई ऐसी जगह इस जहां में ?
तेरे मेरे एक साथ रहने के लिए -
एक दूसरे की सुनने -कहने के लिए.

मंदिर हो घर हो -या
किसी तीसरे का दर हो
मेरी दुनिया में हो -ना हो
तेरे पास मगर हो.

पर हो तो सही - जिसे मैं ढूँढता
रहता हूँ यहाँ -वहां हर कहीं.
अपना पता बता -या सीधा मेरे पास
बेझिझक चला आ .

सब लोग कह उठें - वाह !
इसे कहते हैं - परम आत्मा
से आत्मा का मिलन .

muktak

वो शक्श कौन था जो-
भर दुपहरी में-
अँधेरा ओढ कर आया -
और चुपके से -
रौशनी बाँटता चला गया .

यूँ ही हम देखते से रहते हैं -
सुबह का शाम से मिला करना .
सूखे पत्तों का झरझरा करके -
शाख से टूट कर गिरा करना .
फिर कोई जख्म देगया शायद -
क्या किसीसे 'अमन' गिला करना .
सिलसिला ये भी टूट जाएगा -
बस जरा देख कर चला करना .

रूठ जाना तो कोई बात नहीं -
रूठके मन भी जाना चाहिए.
दिल जो लगता नहीं कहीं यारो -
किसी से दिल लगाना चाहिए .

कितना मुख़्तसर सा था सफ़र अपना ,
ना कोई घर - ना कोई घर का सपना .

वो जो साथ साथ थे , मंजिल की खोज में
क्या हुआ है उन्हें , क्यों उदास बैठे हैं .

लौट जाते हैं -
थक कर लोग .
जब दरवाजे की
कुंडिया खडका कर .
गिर जाती है
उम्मीद की दीवार
जैसे भरभरा कर .

मैं भी हारा नहीं और जीता भी नहीं कोई
युहीं आपस में लड़ते रहे हम तमाम उम्र .

उम्र भर ढूँढता रहा जिसको - जो मेरा कभी था ही नहीं
कमबख्त, ये किसी दूसरे की आंख का सपना तो नहीं.

फिर कोई फूल मुस्कुरा के खिलखिलाया,
अपना बीता हुआ बचपन बहूत याद आया.











गुड्डे गुड़ियों के खेल

गुड्डे गुड़ियों के खेल पुराने हुए ,
बचपन को गुजरे ज़माने हुए .
पलट के देखता क्या है -
एक तरफ़ा ट्रेफिक है -

प्यादे सी -जिन्दगी.
आगे ही बढती जाती है
यहाँ से वापिसी नहीं होती .
मिलती है जीत या फिर मात.

राजा-वजीर, घोड़े-हाथी
को बचाने के चक्कर में
मिल जाती है - मौत .

हाँ कभी कभी -खेल में
बेमौसम की बरसात -
खेल को ड्रा भी कर देती है,
जहाँ ना जीत होती है ना हार .

पर कभी कभी -प्यादा भी
राजा को शय/मात दे जाता है
जब कोई पैदल (प्यादा )
अपनी सारी हदें पार कर
बहूत आगे निकल जाता है .

आग पानी

आग पानी ,
दिल की - दरिया सी रवानी
उन्मुक्तता की हदें ना पार करे .
शोखियाँ फूलों से ना रार करे.

छल कपट -झूट फरेब हट जाएँ.
प्रेम ,विश्वाश के रिश्ते बस-
केवल तुम तक रहें ,
बाकी सब सिमट जाए .

सुबह की बेला है ,
अब जाग भी जाओ यार
जगाने के लिए -यूँ
ना किसी का इंतजार करें

निष्ठुर ही सही कवि हूँ यार -

निष्ठुर ही सही कवि हूँ यार -
इस कदर पत्थर तो मत मार.

बसंत कब मेरे आंगन में -
चुपके से चला आया ,
किसी ने नहीं देखा -
किसी ने नहीं बताया .

पर दरखतों से गिरते-
सूखे पात ,हर पल ये कह रहें हैं
बसंत के जाने का संताप-
हम ही तो सह रहें हैं .

फिर बसंत क्या -पतझर क्या

फिर बसंत क्या -पतझर क्या
क्या फर्क है मुझे -समझा जरा .

इस सुर्ख गुलाब -की कलि ,
तू चाहे तो देख ले -गली गली .
प्रेम के खेल में ,वासना के मेल में

जो हिन्दुस्तानी ना रहा -वो
फिरंगी बनेगा क्या ?
इनकी जवानी क्या - जो बंध गया
उस दरिया की रवानी क्या .

कोडियों के मोल में -बिना किसी
भाव तोल में ,इससे ज्यादा और क्या
पायेगा -जिसे आज की चिंता नहीं ,
कल जो होगा देखा जाएगा .

ये जिन्दगी तो मस्त फ़ानी है -
हर जवान ,हर नवयोवना की -
बस एक सी कहानी है .

इतनी तेज रफ़्तार -
कोई कमो बेशी नहीं यार.
चलते चलते पढ़ते -खाते है .
मेट्रो में चढ़ने से उतरने तक ,
मोबाइल पर लगातार-
जाने किस-किस से बतियातें है .

क्या देंगे ये देश को -
जिनका सपना विलायती है -
देश तो परदेश है .

अगल -बगल से मत छाँट

 अगल -बगल से मत छाँट,
तेरे मेरे में इसे मत बाँट .
इस विलायती कीकर को
सीधे सीधे -जड़ समेत काट .

शहद और मट्ठा इनकी जड़ो में -
चाणक्य की तरह सींच -
तभी बनेगा देश -एक महादेश
तभी होगा इसका सम्पूर्ण
और सही अभिषेक.

मेरी सोच

मेरी सोच -मेरे घर आँगन की
सीमा रेखा -नहीं लांघ पाती.
सच कहूं तो -
मेरे घर-खेत खलिहान
से आगे नहीं जाती .

ये देश -धर्म ,समाज
किस चिड़िया का नाम है-
कहाँ से आई -कभी
पहले तो नहीं सुना भाई.

समस्याओं की भरमार है -
घर में गृहणी है-सुबह का
अखबार है -सबका
एक ही विचार है.

अपने अतीत के सपनो से
संतुष्ट हो मत सो -इतिहास
कितना ही स्वर्णिम हो -का बोझ
अपने कंधों पर मत ढो.

कुछ नया कर -नया सोच ,
सर्प के फ़न पर दृष्टि रख
मौका मिलते ही दबोच -वर्ना
ये हम सबको अजगर की मानिंद
समूचा ही निगल जाएगा -
तुम्हे खबर लगने से पहले ही ,
सारी दुनिया को पता चल जाएगा .

कहीं का नहीं रहेगा तब - इससे पहले
की देर हो जाए -और कोई नया
फिरंगी तेरे तट पर तम्बू तान दे .
अपने अतीत से सीख ले -और
जंग करने की ठान ले .

तभी बच पायेगा -
तेरा घर इटली में तो है नहीं -
सोच फिर कहाँ जाएगा .

अक्सर मैं सोचता रहता हूँ

अक्सर मैं सोचता रहता हूँ -
तुम्हे ख़त लिखूं -
कुछ समय निकालू ,
भ्रमण के लिए अपने देश
कुछ दिन के लिए बुला लूं .

पर खामोश रह जाता हूँ
तुम्हे क्या दिखाऊँगा और
क्या क्या तुमसे छिपाऊँगा .

यहाँ दिखाने से ज्यादा -
छिपाने को बहूत कुछ है ,
घर में क्या -क्या ऐसा है
जिसे स्टोर में जाना पड़ेगा ,
कुछ नया समान और
घर में लाना पड़ेगा .

पर मौहल्ले का क्या करू -
और मौहल्ला ही क्यों - ये
शहर ही कौन सा साफ़ सुथरा है
इस बात का ही मुझ को सबसे
ज्यादा खतरा है .

एअरपोर्ट से आते आते-
कहीं टेक्सी वाला ही
काम ना कर जाए .
बेचारा जिन्दगी के
सपने ले कर आ रहा है
बेमौत ही कहीं ना मर जाए .

ट्रेनों के हाल और भी ख़राब हैं -
होटल वालों की बिल से ज्यादा
टिप पर नजर होगी .
और भिखारियों की गीध दृष्टि से
इसको कैसे बचाऊंगा -
समझ में नहीं आता -
इसे मैं भारत कैसे बुलाऊंगा .

ये कहाँ आ गए हम

ये कहाँ आ गए हम -
क्या ढूँढने निकले थे -
क्या पा गए हम .

किंतनी बेचारगी है-
कभी ऐसी तो ना थी -
बर्फ की ये नदी -कभी
जमी ऐसी तो ना थी .

रास्ते काँटों भरे - ऐसे तो ना थे
रहनुमा यार -सब ऐसे तो ना थे .
कारवां -लूट गया दिन के उजाले में
हमारे दिन कभी ऐसे तो ना थे .

रात भर छत पर बरसते रहे पत्थर,
अजीब लोग है सब ये -मेरे
पडोसी कभी ऐसे तो ना थे

कहाँ पे जाके रहिएगा -
कहाँ दिल को लागाओगे,
वतन अपना है फिर भी-
दूर इससे कैसे जाओगे .

muktak

कल तलक मैं एक था -
और आज बंट गया अनेकों में .
कई बार लगता है जैसे -
आइना हो गया हूँ मैं .

बहूत आसां है -हँसना खुद पर ,
मुस्कुराना -भी तो आना चाहिए.
तमाशा बनने बनाने से पहले ,
मदारी का हुनर भी तो -
सीखना सिखलाना चाहिए.

सवाल और भी हैं -जो तुमसे पूछने हैं ,
अभी से क्यों बौखला रहें हैं आप

लिख्खन वाला लिखा गया -
(अब डिक्शनरी ले कर ढूँढ़ते रहो मतलब)
मैं ते लिख्खना ही सी वीर जी !
जे कुज समझ आ जावे ते मेनू वी समझा देणा जी .
साडा लिखना सुपर्द लग्गे जी,एनी साडी वैनती है जी.

फिर किसी रोज -कभी फुर्सत में ,
बड़ी फुर्सत से हो -बड़ी फुर्सत में.

इश्क की हद देखें - या अपनी सरहद देखें
ना हम से ये पार होती है -ना वो पार होती है.

अंजामे इश्क देखें , की आगजे हुस्न -यारो ,
जीवन का झमेला है -इक पल का तमाशा ये.

जिन्दगी गर खेल है - तो
फिर इससे इतना प्यार क्या .
खेल तो खेल ही है दोस्त ,
फिर इसमें जीत क्या -हार क्या.

मैं कोई राझां नहीं -हीर नहीं ,
कोई ग़ालिब नहीं -फकीर नहीं .
दो लफ्ज कि दरकार -नहीं कुछ और ,
कमसे कम अब तो कह दीजिये 'वाह'..





मिले कीमत

मिले कीमत -सही ,
तो बिकने को तैयार हूँ मैं -
अपने आप से सचमुच -
बहूत बेजार हूँ मैं.
उतना बुधू नहीं हूँ अब -काफी
समझदार हूँ मैं .

अब किसी से गिला क्या
कीजिये - मंडी सजी है ,
हर तरफ - तुम्हारी एक ,
नजर का तलबगार हूँ मैं .

तेरे करने से कुछ नहीं होना ,
बेकार अब लहसुन -प्याज का रोना .
मिल गया क्या -और क्या खोना.
बिक जाएँ तो सारे घोड़े -
बेचकर सोना .

बचा अब आखिरी हूँ मैं -फिर
भाव-ताव क्या होना .
कसोटी पर परख - मैं हूँ
शुद्ध -निखालिस खरा सोना .

खरीदेगा तो - तर जाएगा,
जो मर गया भी तो -बैकुंठ पायेगा .
ना ख़रीदा तो -बाद में पछतायेगा .
वो एक दिन -याद रख जरुर आएगा,
जब तू इस नाचीज का -
ना मोल चूका पायेगा .

मैं समंदर हूँ - तू नदी है

मैं समंदर हूँ - तू नदी है ,
मैं कंही-कहीं हूँ - तू हर कही हैं.
कितनी अजीब सी तलाश है
समंदर हूँ फिर भी दिल में प्यास है .

तू नदी है फिर भी उदास है -
मेरी तो जिन्दगी ही लहरों के
साथ है -बहता नहीं हूँ , बन्धनों में
रहता नहीं हूँ .

तू बहना तो चाहती है ,जाने कितने बांध
तेरा रास्ता रोकते हैं.
किसी को-अपना कहना तो चाहती है-पर
तेरे अपने लोग -तुम्हे टोकते हैं .
क्या जिन्दगी है -तुम्हारी
बस बहना - बहते बहते मुझ में खो जाना ,
थक हार कर मेरे आंचल में सो जाना.

चलो - बाँट ले

चलते हैं साथ साथ चलो - बाँट ले
अपनी अपनी तन्हाईयाँ .
रास्ते क्या हैं जिन्दगी के-
बस खंदकें और खाइयाँ .

रुसवाइयों से दुनियां के -
बच बच के चलो -नजरें
तेज हैं ज़माने की और-
दूर तक हैं -आपकी परछाईयाँ.

ना लगे दिल तो -दिल को लगा
किसी गैर मजलूम को -अपना बना .
फिर अकेलापन-अकेला रहेगा ,
बन जाएगी इकाई से दहाईयां .

ज्यादा मत सोच विचार

ज्यादा मत सोच विचार ,
जिन्दगी क्षणिक है यार .
जो सच्चा सोना है-
उसका क्या खोना है -
होगा जो होना है
प्यार ही को ओढ़ ले -
प्यार का बिछोना है .

कल -जो कल बीत गया ,
हारा या जीता गया .
पलट के ना आएगा .
क्या उसका पाना फिर -
क्या उसका खोना है .
कल का रोना तो-
बेकार का रोना है .

आज मेरे सामने है -
तीर अब कमान में है ,
तू किस के ध्यान में है -
जाग इसको खोना ना-
बाद में फिर रोना ना .
जी भर के जी ले इसे-
यही तेरा होना है .

कल किसने देखा है,
कल किसने जाना है .
किस्मत का लेखा है ,
वाक्य ये पुराना है .

अभी से क्या फ़िक्र करें ,
जीते जी कौन मरे .
कौन किससे रूठेगा -
कौन फिर मनायेगा .
होगा जब होगा-
तब देखा जाएगा .

शब्द समर्थ नहीं होगें

शब्द समर्थ नहीं होगें - पर
भाव कमजोर नहीं है यार .
समझने की कौशिश कर ,
कुछ तो तू कर -विचार .

सीमित उम्र और - सफ़र
अनंत हो चला, याद कर
आज तक कितना-रुका
कितना चला .

दायरे में बंधा मत रह-
बाहर निकल आ -
क्या पाया क्या खो दिया -
दुनिया को कुछ तो बतला .

चलने से, ना चल पाने की-
पीड़ा मिट जाती है.
कभी कभी यूँ ही गिरते-
संभलते -जाने कितनी ,
रास्ते -राहें निकल आती हैं.

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में -सभी
तो गतिशील हैं - जहाँ रुक
जाना -मौत और चलना ही
जीवन है.

चले थे बांध कर

चले थे बांध कर -पांवों में इन्कलाब जो
वो लोग क्या हुए ,वो वादे -इरादे कहाँ गए .
लौटती भीड़ के हांथों में चंद पोस्टर मिले
जलती मशालें -हाथ में थामे हुए भाले कहाँ गए .

अब चीखना मना -है फुसफुसाना भी मना ,
रोना भी बंद है ,यहाँ कराहना भी मना .
सरकारी- गजट अखबार , टी.वी रेडियो भी है ,
गाना भी बंद है यहाँ -गुनगुनाना भी मना .

muktak

अटल हो जा अपने ही नव विधान पर ,
ना दुःख मना, गुलामी के अवसान पर .
पूरी दुनिया भी , क्या बिगाड़ लेगी तेरा,
उठा कदम की - रख दे आसमान पर.

तू जलना सिखाये - तो जले सूरज ,
चलना सिखाये - तो चले दुनिया सारी ,
ऐसा बन जा , की एक पत्ता भी ये
पूछे -'हवा तेज है मैं हिलूं की नहीं '.

खौफ से खौफ - हम खाते भी नहीं
नादाँ से दिल को - लगाते भी नहीं .
फूलोंकी सेज ना मिले - तो ना सही
काँटों के खौफ हमको सताते भी नहीं.







muktak

अजीब ढोल हैं सियासत के -ना भजन, ना कोई तराना ,
बरसों पुराने घीसे गीत को-हर बार अलग ढंग से बजाना.

 अजीब जिन्दगी है -जो मिला उससे ख़ुशी नहीं है ,
उम्र भर मांगते रहे -वही चाहिए जिसकी कमी है .

मैं कहीं डूब गया हूँ शायद , ढून्ढ जो मेरा पता पाले तू ,
मजा जब है इस प्रेम सागर से ,जीते जी मुझे निकाले तू.

फासले रख के फिर चला करिए ,किसी से यूँ ना तुम मिला करिए ,
जान जाने के सौ बहाने हैं , दिल पर हर बात ना यूँ लिया करिए.

तेरी मां- बहुत अच्छी है ,ये बात ठीक है लेकिन,
भले बीमार सी दिखती है , घर में मेरी मां भी है .

किसी के काम आ नहीं सकता ,
किसी का प्यार पा नहीं सकता ,
की अपना घर उजाड़ कर यारो ,
किसी का घर बसा नहीं सकता .

सजाएँ दी जाती हैं , सुनाई नहीं जाती ,
आपदाएं ,आवाज़ दे के बुलाई नहीं जाती .

सब ठीक चल रहा था -फिर क्या जरुरत थी,
अब गलतियाँ -तो हरबार , दोहराई नहीं जाती .

रोरोके बात करने का क्या फायदा हैं यार,
हलक फाड़ के चिल्ला -जरा असर तो हो .

गरीब की छत है -बरसात से डर लगता है ,
घर में रहना भी बस एक हुनर लगता है .

किसी ने चुपके से कहा -सरकार है ,
हमने चिल्ला के कहा- बेकार है .

उठो जागो -खड़े हो जाओ
ऐ, हिन्दोस्तां वालो .
जमाना टकटकी लगाए
हुए खड़ा -कबसे .

कितना फरेब बेचते हैं - हुक्मरान यार ,
ना बेचना मना है - ना पीना हराम है .

आजादी किसे मिली ये समझने की बात है ,
सरे आम चीखने को आजादी नहीं कहते .

तू भी गुलाम यार ,मैं भी गुलाम हूँ
तेरे जिगर की पीड़-अब मेरे जिगर में है.


वादे होते ही हैं -तोड़ने को

वादे होते ही हैं -तोड़ने को ,
रिश्ते होते ही हैं - जोड़ने को .
पर आज का चलन अलग सा है
ना वो मिलतें हैं -हमें ना छोड़ते हैं .
ना वादा तोड़ते हैं -ना रिश्ता जोड़तें हैं

बेकार जायेगा तेरा

बेकार जायेगा तेरा , लहरों का ताकना ,
ये बात गलत है , तेरा खिड़की से झांकना .
कश्ती भी है , पतवार भी , और नाखुदा भी है,
हिम्मत है तो कर ले फिर समन्दर का सामना .

मैं कोई बच्चा नहीं

मैं कोई बच्चा नहीं , हव्वे से जो डरूं ,
छुईमुई नहीं किसी के छूते ही मरुँ.
गले की हड्डी हूँ -चबाया तो अटक जायेगा .
रसगुल्ला नहीं हूँ -जो चाहे गटक जायेगा

जीवन मैं - गर कभी मिलो

जीवन मैं - गर कभी मिलो ,
तो अपनों की तरह मिलना .
वैसे ही जैसे - मिलती हैं
दो नदियाँ ,किसी संगम पर-
और खो जाती है -एक दूजे में .
ऐसे कभी मत मिलना जैसे-
पत्ते मिलते हैं आँधियों से.

मैं निडर तो नहीं

मैं निडर तो नहीं हूँ -
पर डरपोक भी नहीं
उद्दंड तो नहीं हूँ -
पर कोई रोक भी नहीं .
मैं प्यार बेचता हूँ -
जी चाहे जो ले ले .
वतन फरोश हूँ -
ना मैं मजहब फरोश हूँ.

सपनो को बेचते हैं.

नादान हैं लोग- दिल के जख्म को बेचते हैं
प्यार को बेचते हैं , सनम को बेचते हैं
जाने कैसे-कैसे गैरों को अपनों को बेचते हैं .
इस मुफलिसी में , और क्या बेचें हम जनाब ,
हम ग़ुरबत के मारे तो सिर्फ अपने को बेचते हैं .
आँखों में पाले हुए ,जवां सपनो को बेचते हैं.

गीता में रख कृष्ण को

गीता में रख कृष्ण को -रामायण में राम,
बाकी जाएँ भाड़ में, क्या है उनसे काम.
क्रिकेट का रख ध्यान तू , उनको हीरो मान,
ट्राफी लेकर आयेंगे , उनको अपना जान .

कितनी झोली भर लेगा.

दुःख की कोई बात नहीं -दिन है यारो रात नहीं ,
तू बालक नादान अभी ,खतरे मत पहचान अभी .
एक मसीहा आएगा , तुमको खेल खिलायेगा,
जन्नत में ले जाएगा -खूब खिलौने लायेगा .

दुःख बाधाएं हर लेगा ,काम सभी वो कर लेगा ,
तूने फिर क्या करना है ,अमरीका सब कर लेगा .
फिर चिंता क्यों करता है ,वो चिंताएं कर लेगा ,
इतने कामो के बदले , कितनी झोली भर लेगा.

muktak

गाते तो बहुत हैं ,गुनगुनाता हैं कोई कोई
दिल से लिखे गीत-दिल से गाता है कोई कोई.

कहाँ है वो सुबह - उषा की लालिमा लिए हुए
कहाँ है वो शाम - सुरमई आंचल लपेटे हुए
वो रात भी होगी -यहीं कहीं ,चलो ढूंढ़ ले
सितारे गोद में -आँखों में सपने लिए हुए .

गीता में रख कृष्ण को -रामायण में राम,
बाकी जाएँ भाड़ में, क्या है उनसे काम.
क्रिकेट का रख ध्यान तू , उनको हीरो मान,
ट्राफी लेकर आयेंगे , उनको अपना जान .

लोग समस्याओं के झुनझुने -
यूँ ही हरवक्त बजाते हैं,
टीवी पर क्रिकेट देखते हुए ,
मूंगफली क्यों नहीं खाते हैं .

मैंने लिखे तो -बेजुबां शब्द थे ,
पढ़े गए - तो एक भाव बनी .
तूने गुनगुनाये तो
एक गीत बना-
भीड़ के हाथ में आये तो -
एक मशाल बनी.







समझ में नहीं आता

समझ में नहीं आता - लोग
क्रिकेट ,फिल्मो की बाते
(अपने आस पड़ोस की समस्याओं
को दरकिनार कर)
किस तरह कर लेते हैं

वल्ड कप की चिंता में घूल रहें है -
घर की दीवारों पर नीलामी के पोस्टर
इन्हें क्यों नहीं नजर आते .

क्या खेल इससे जरुरी हो गए-
या फ़िल्मी तारिकाओं के
चर्चे ज्यादा संतुष्टि दे जाते हैं .
अपनी बीवी की साडी में लगे-
पैबंद इन्हें क्यों नहीं नजर आते हैं .

जिस देश की आधी जनता -
आधा पेट सोती है - अजीब बात है
इससे हमें तकलीफ-
क्यों नहीं होती है .

कारवां रुकता नहीं

रात मुरझाई हुई सी , दिन दहकते अंगार लिए,
जिन्दगी बेवफा सी, कभी बहूत सा प्यार लिए .
यूँ ही ही कट जाता है जीवन का सफ़र-बस यारो
कारवां रुकता नहीं , बस मुसाफिर ही ठहर जाते हैं.

हम परवाह नहीं करते,

दरअसल हम परवाह नहीं करते,
भले ही कोई खोल ले जाए -
हमारी दुधारी भैंस - या फिर
सर की टोपी .

हमे चिंता जाने क्यों नहीं होती -
अखबार की खबर -चिंता जनक नहीं,
गर मेरे सब अपने -खैरियत से हैं .
ख़बरें पसंद हैं पर
खबर बन जाना नहीं .

पड़ोस में आग लगे-मुझे क्या
(पंजाबी में 'सहान्नु की ')
मेरा घर- मेरे बच्चे सकुशल हों -
बाकी जाएँ भाड़ में .

देश तो फिर -बड़ी इकाई है ,
मैं ही चिंता क्यों करूँ -अकेला
और भी तो हैं -इतने सारे ,
कोई मेरा ही ठेका लिखा है .
और निश्चिन्त होकर सो जाते हैं .

दरवाजे पर खड़ा है पर
बताइए इन्कलाब कैसे आएगा-उसे
कौन अन्दर आने की लिए कहेगा -
कोंन भीतर लाएगा .

छोड़ यार नाश्ता कर -
दफ्तर की लिए निकल -
बस/ट्रेन छुट जाएगा तो-
बॉस की डांट कौन खायेगा .

हमे चुप रहना नहीं आता .

उन्हें कुछ कहना नहीं आता -
हमे चुप रहना नहीं आता .
वो है की जानता नहीं -
दिल है की मानता नहीं .
ऐसे मिलता है -सरेराह
जैसे हमे पहचानता नहीं .

प्रेम ही जीवन

प्रेम ही जीवन , प्रेम ही पूजा ,
प्रेम ही अमित दुलार -
प्रेम के रंग में रंग जा प्यारे
प्रेम में सब का सार .
ना अपना-ना कोई बेगाना
प्रेम सहित पुकार .
प्रेम की हाला पीले प्राणी-
प्रेम करेगा बेडा पार .....

वो मेरा दोस्त

वो मेरा दोस्त भी था भाई भी था ,
कोलाहल भी था ,तन्हाई भी था .
ग़ज़ल भी था ,शहनाई भी था .
जाने क्यों याद आ रहा है-आज ,
मुझ में शामिल ,मेरी परछाई भी था .

वो मेरी जमीं था, आस्मां भी
मेरा हमराज, पूरा दुनिया-जहाँ भी,
बता नहीं सकता -कहाँ कहाँ था वो ,
हर कहीं जहाँ में हूँ -वो वहां भी .

जो मेरे आंसू उठाता था -
गिरने से पहले पलक से.
उसका दिल खिल जाता था मेरी
एक झलक से.

मुझ से बिछड़े हुए उसे अरसा बीता -
मैं रह गया खाली -बिलकुल रीता .
गम आज भी दरवाजा खटखटाते हैं -
मेरे पास रहते हैं -दूर नहीं जाते हैं -

कहाँ से लाऊ उसे -कहाँ सन्देश भेजूं ,
किस को कहूँ -कैसे बुलवाऊँ.
मेरी पीड़ा भरा स्वर -उस तक जाता नहीं
जो चला गया -वो वापिस लौट के आता नहीं .