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Monday, July 29, 2013

वो पौधा फल नहीं सकता

वो पौधा फल नहीं सकता


जो अपनी जड़ से टुटा है 

मुबारक हो नहीं सकता 


जो अपने कल से छूटा है। 



लगेगी क्या कलम तेरी 



इन परदेसी मकानों में 


ये तेरा मुल्क अच्छा है


उगें बरगद मसानो में .




जो मेरा ही नहीं है - मैं 


उसको अपना कह नहीं सकता 




मेरे बिन देश तो रह लेगा -



मैं उस बिन रह नहीं सकता .

गलत जो है - सही होगा

नहीं कुछ है - यहाँ माना 

ना बंगला है ना गाडी है .


ना बीवी मेम जैसी है .


हुकुमत भी अनाडी है .




कहाँ जाओगे लेकिन और 


कब तक भाग पाओगे .


मिले मिट्टी में जब मिट्टी 

यही तुम लौट आओगे . 




परेशानी बहूत होंगी -


पर घर अपना यही होगा


जरा सा ध्यान दोगे तो 


गलत जो है - सही होगा .

वतन मिटटी नहीं होता

वतन मिटटी नहीं होता 
वतन सोना नहीं होता 
कहीं हँसना नहीं मिलता 
कहीं रोना नहीं होता .
सेज फूलोंकी मिल जायेगी 
माना हमने ये लेकिन 
मगर कम देश की मिट्टी 
का बिछौंना नहीं होता .

मुक्तक


वो तेरा रूठ जाना - 
मान जाना .
छिटक कर दूर होना 
पास आना .
ये मन के खेल थे 
कोई जाना भी -
और कोई नहीं जाना .

चुप नहीं था - इज़हार किया था मैंने 

सच में तुमसे ही प्यार किया था मैंने -
या खुदा कुछ तो एतबार कर लिया होता
काश खामोश निगाहों को पढ़ लिया होता .

ज़माना जान जाए - इससे पहले 

हाले दिल जान लेते तो अच्छा था .

गम अच्छे हैं - खुशियों के पायदान बहूत हैं 

शहर में तुझको छोड़ - मेरे कद्रदान बहूत हैं .

मेरे दिल की तुझे - कहीं से 

थोड़ी सी खबर आती तो होगी .
मेरे घर से तेरे घर को यार - कोई 
सीधी सड़क जाती तो होगी .

ये बेबसी का बाज़ार - 

परेशानों का हुजूम .
माल बिकता है सस्ता 
बोलो क्या खरीदोगे .

कोई वादा ना कोई तकरार 

क्या इसी को कहते हैं प्यार . 
मान जाना भी महूब्ब्त होगा 
रूठ जाना भी महूब्ब्त है यार .

अपने अनकहे जज्बात सब वापिस ले लो 

मैंने पहले ही कहा था शब्दों से मत खेलो .

जाने क्यों याद आता है वो और उनका रूठ जाना 

उसने क्यों कहा था हमें इस कदर ना आजमाना .

बड़े चुपचुप से वो - हम रफा दफा से हैं 

लगता है हमसे वो कुछ कुछ खफा से हैं .

कोई जीते - कोई हारे 

कोई पिट ले - कोई मारे .
कभी मायूस - दोनों ही 
ना वो जीते ना हम हारे .

फटी हैं एडियाँ यारो 

थके हैं पाँव चलचल कर .
कोई अब तो बतादे ये यार - 
मंजिल दूर कितनी है .

खरीदोगे बताओ - 

बेच दूंगा यार सस्ते में 
मसीहे - देश के यारो 
सलीबों पर चढाने हैं .

ना हिन्द ना हिंदी -

ना हिन्दू ही यहाँ यारो 
ना जाने मुल्क ये अपना 
अपनासा नहीं लगता .

कभी तो चुप रहो यारो -

जरा खामोश हो जाओ 
हमें ये रोज़ की चिकचिक 
जरा अच्छी नहीं लगती .

सिमटना ही सही होगा . 

बिखरकर कुछ नहीं मिलता .
आँधियों में उड़े पत्ते - 
नहीं फिर लौट कर आते .

बेहतर तो यही है -

मेरे होकर तो देखिये .
अनमोल बहूत हूँ -
कभी खोकर तो देखिये . 

कोई साकिया - ना ही जाम है .

ना सुबह सी है ना ये शाम है .
ये अपने नसीब की बात है 
जहाँ दिन ढला वहीँ रात है .

इश्क तुझसे - 

या खुदा से यार - 
शर्त है -
जो भी पहले मिल जाए .

कोई तो रास्ता होगा - कोई तो राह निकलेगी 

अँधेरी रात कहती है - सुबह बस होने वाली है .

ये मेरे शेर - शेर से नहीं लगते 

यार कुत्ते की तरह भौंकते हैं .

जो दोस्त है तो - 
किसी 
बात का ना गिला कर 
फिर उसी गर्मजोशी - 
उसी चाह से मिला कर . 

दुःख में थे - सहे 

पर कहे नहीं गए . 
सुख में भी थे - 
कहीं नहीं गए .
थोडा ज्यादा - 
या कभी कम . 
ये अश्क - 
मुझे छोड़ कर -
जाते कहीं नहीं .

मौन एक भाव है -  

शब्दों की कमी - 
या अभाव नहीं है .

जो चले गए - 

उन्हें भूल जा . 
जो जारहें हैं - 
उन्हें जाना ही था . 
मत रोक - इन्हें 
ऐ दोस्त - ये आसूं हैं 
इन्हें तो - हरहाल 
आँख में आना ही था .


मेरा आज भी - तब तक हसीं कल नहीं देता 
अगर ना सींचों तो दरख्त भी फल नहीं देता .

फूलों की बात जाने दो 

अभी तो तुम - फैंके हुए 


पत्थरों का हिसाब दो .




हूँ नहीं दूर - फिर 

किसी रोज़ चला आऊंगा 


गुजरी बहार सही - 


हर बरस लौट आऊंगा .




मंजिले दूर नहीं होती - 

वहीँ रहती हैं - बस 

रास्ते ही लम्बे हो जाते हैं .








Thursday, July 25, 2013

बस एक आदमी और जीत हार का फैसला

बस एक आदमी और 
जीत हार का फैसला . 
क्या अजब तमाशा है 
एक शेर से क्या - 
पूरा जंगल डर जाता है . 

पूरी संसद में - घबराहट 
एक अजीब सी - 
अफरातफरी विद्यमान है 
पता नहीं किस पार्टी की 
किसके हाथ में कमान है .

सारे चमचे - दहाड़ मारकर
बुक्का फाड़ कर - ये
कैसा मातम मना रहे हैं
ये मोदी - गुजरात छोड़
दिल्ली में क्यों आ रहें हैं .

क्यों भाई क्या - ये
गुजरात हिंदुस्तान में
नहीं आता है - या फिर
दिल्ली आने के लिए भी
वीसा पासपोर्ट - मैडम
या अमेरिकी ओबामा से
पूछकर दिया जाता है .

हमने पहले ही कहा था
अपने ज़िंदा या मुर्दा
माई बाप - पुरखों को
अभी से रो लो .
वक्त और मोदी - फिर
ये मौक़ा दे - ना दे .

ये मोदी क्या चीज है इससे क्या डरना है .

पहले हम सोचते थे -
कोई जीते कोई हारे 
राज तो मैडम और 
लल्लू को ही करना है . 
ये मोदी क्या चीज है 
इससे क्या डरना है .

पर यार - एक बात है 
क्या दूकान चलाता है
इस गुजराती को - 
मैडम जाने -  
क्या हुनर आता है  .
हाथों हाथ सारा माल 
बिक जाता है .

एक हम हैं - 
जो सारा दिन -बैठे बैठे 
मक्खियों का शिकार करते हैं 
ग्राहक फटकता नहीं -
देखो ना चौबीसों घंटे 
कितना गला फाड़ करते हैं .

मैडम जी - एक राय है 
इन गुज्जरों से डरो - वर्ना 
अमेरिका छोडो - ये 
इटली तक 'सर' कर जायेंगे 
हम तो हिंदुस्तान में ही 
बिन मौत मर जायेंगे .



Tuesday, July 23, 2013

ये चौथा कौन है -?

एक किसान - 
धरती की छाती चीरता 
आशाओं के बीज बोता -
फसल काटता है .

एक प्रहरी - 
बे-वजह उग आये 
खरपतवारों को - 
बीनता - छांटता है .

एक मजदूर -
सपनों के सूर्य में
पसीने की बाती बन
समृधि की फसल उगाता है .

एक नेता -
करता कुछ नहीं -
इन तीन स्तंभों पर
अपनी भव्य -
अट्टालिका बनाता है .

Saturday, July 20, 2013

चोट लगती है फूल से भी यार

चोट लगती है फूल से भी यार 
फूल पत्थर की तरह फैंको मत .

सुर नहीं साज नहीं आवाज़ नहीं 
अब यूँ गधों की तरह रेंकों मत . 

जिनावर नहीं आदमी हूँ यार 
हमपे कुत्तों की तरह भौंको मत .

विदाई दूर - ये तो आगाज़ है 
तुम अभी से यार चौंकों मत .

मुमताज़ है ना ताज़ है

मुमताज़ है ना ताज़ है 
ना मित्र ना हमराज़ है .
फुकरे सभी बैठें  यहाँ 
कुछ काम है ना काज़ है .

टूटी हैं दोनों टाँग अब 
बैसाखियों पर देश है -
देसी यहाँ दारु है बस 
और फिरंगी परिवेश है .

हम आम हैं ना ख़ास है
कहने को अपना राज़ है .
हर चीज दुर्लभ है यहाँ
महगाईय ही बस पास हैं .

कहते हैं सब सरकार है
हमसे ना सरोकार है -
हम बीच हैं मझधार में
हम आर हैं - वो पार है .

कहने को जिन्दा हैं यहाँ
आधार निराधार है .
बातों से दिल को जीतते
भाषण जो धुआंधार है .

इक आस है - 'मत' पास है
जिससे हमें कुछ आस है
फिर टांग देंगे 'इनको' हम
खूँटी हमारे पास है .

जल जायेगी जो लंका है

लहरे उठती हैं गिरती हैं 
तूफानों की आशंका है .
कोई तो राम कहायेगा . 
ना शक ना कोई शंका है .
सुतपवन कोईतो आएगा .
जल जायेगी जो लंका है .

Friday, July 19, 2013

ये किसी की दुआ का है असर

ये किसी की दुआ का है असर 
मिले दर्द पर- हैं बेअसर .
जहाँ मौत की तो तलाश है 
हम जिन्दा है क्या कमाल है 

ना मिली कभी हयात तो 
वही दर्द है वही ख्याल है . 
किसी पीर को दिखाएँ क्या 
ना ये भूत है ना बबाल है .

हमें जिन्दगी का मलाल है 
तेरी जिन्दगी भी कमाल है 
यही होता है सबके नसीब में
ना कोई जवाब है ना सवाल है .

Thursday, July 18, 2013

आजादी से गुलामी -

आजादी से गुलामी - 
और काले से फिर 
गौरे का सफ़र . 
मात्र - कुछ दशक में .
तय हो जाएगा - ये 
हम गुलामों ने तो क्या 
श्वेत शासकों ने भी -
नहीं सोचा होगा .

शब्द हाथों में थे

शब्द हाथों में थे - 
और मुंह में पत्थर 
क्या समय आ गया 
यारो देखो .

गहरा सागर - 
डूबने को उद्धत है इरादे
और तूफां के मिजाज़ 
लहर मत देख 
किनारे देखो .

कलम थी जेब में -

कलम थी जेब में -
और कदम रस्ते में 
भरी बरसात में - 
भीगे अखबार के 
नज़ारे देखो .

सिमट गए थे -
घरों में . 
हवाएँ तेज़ - 
बिखरना मुश्किल .
विरह के गीत में - 
टूटे हुए तारे देखो .

चोट लगती है फूल से भी यार

चोट लगती है फूल से भी यार 
फूल पत्थर की तरह फैंको मत 
  
सुर नहीं साज नहीं आवाज़ नहीं 
अब यूँ गधों की तरह रेंकों मत . 

जिनावर नहीं आदमी हूँ  यार 
हमपे कुत्तों की तरह भौंको मत .

विदाई दूर - ये तो आगाज़ है 
अभी से यार मेरे चौंकों मत .

Monday, July 15, 2013

मैं ऐसा क्यों हूँ

मैं ऐसा क्यों हूँ  ?
कुछ करता नहीं 
पर दंगों से डरता हूँ 
लोग बच जाते हैं
बस मैं ही मरता हूँ .

डीजल पांच रूपये बढ़ जाएँ 
तो शोर मचाता हूँ 
पचास पैसे की वृद्धि पर 
घर से दफ्तर और 
दफ्तर से सीधा घर आता हूँ .

किसी का बुरा नहीं चाहता
किसी को नहीं सताता हूँ
फिर भी निरीह हूँ -
बलि का बकरा कहलाता हूँ
किसी का ख़ास नहीं -
आम आदमी के नाम से
जाना - जाता हूँ .
मैं ऐसा क्यों हूँ .

पुंगी बजाने में सबसे पीछे -
ताली बजाने में आगे
हर जलसे की शान -
जैसे हर गली - हर
चौराहे की पान की दूकान .
पान थूकता नहीं खाता हूँ
मैं ऐसा क्यों हूँ .

कभी गांधी - कभी लोधी
कभी सोनिया - कभी मोदी
सबको झेलता हूँ - और
धरती सा बिछ जाता हूँ
सत्ता की पहली सीढ़ी
पहला पायदान - क्यों
बन कर रह जाता हूँ .
रंक हूँ पर राजा बनाता हूँ
मैं ऐसा क्यों हूँ .

ज्ञान है अज्ञान भी है

ज्ञान है अज्ञान भी है 
धर्म का अभिमान भी है .
सेंकडों ऐसे मिलें - जो 
हिन्द से अनजान भी हैं .

गीत भी है गान भी है 
और मधुरिम तान भी है . 
बीन बजती है फनो पर 
नाग ये शैतान भी है .

बेरहम हाकिम बड़ा है
बैंत जैसा जो खड़ा है .
भीख में देना नहीं तू
वक्त बेईमान भी है .

वक्त की पहचान भी है
आन बान शान भी है .
जीत का फरमान भी है
' नमों ' में कुछ जान भी है .

Sunday, July 14, 2013

क्षणिकाएं

बात उनकी अब क्या कीजे - यारो 
जिनकी - करनी में कुछ कसर भी नहीं 
ऐसा नहीं की हमपे कुछ असर भी नहीं 
खबर न सही पर इतने बेखबर भी नहीं .

बनो दबंग ना की सुस्त अनमने से .
बजो बाजे से - ना की झुनझुने से .

थोड़ी थोड़ी प्रीत रख 
थोड़ी थोड़ी रार रार .
ज्यादा इसको ना पचे 
ये अद्भूत संसार .

बड़ा बना तो क्या बना 
विस्तृत मरू की रेत 
झाड कटीले केक्टस 
बिरवा उगे ना एक .

रखकर प्यारे भूल जा 
नफरत जैसी चीज .
यारो मन में धार लो 
केवल यही तमीज .

लिखता है वो सारा हिसाब 
कुछ भी भूलता नहीं 
करके कर्म चाहे भले 
हम भूल जाएँ यार .

ये नागफनी - ये केक्टस 
और नुकीले कांटे .
क्यों रंज करे 
जब कुदरत ने फूल नहीं 
कांटे ही बांटे .

प्यार भी अजब शय है 
कभी सोने नहीं देती - 
कभी हंसने नहीं देती - 
कभी रोने नहीं देती .

मैं बुलाऊं तो चले आओगे तुम
मजा जब है की - 
बिन बुलाये भी कभी आ जाओ .

जब सवेरा बुझ कर सांझ हो गया - 
लगा सच हकीकत में बाँझ हो गया है .

लोग हँसते हुए भी रोते हैं 
एक हम हैं जो रोते हुए भी 
हंसने का गुमा देते हैं .

फिर किसी रोज़ पुकारूं तो चले आना 
आज भी किसी का इंतज़ार है मुझको .

रात रंगीन ही नहीं होती -
आँख बस रंग का पता देती है .
कहीं चुन्धियाई हुई सी नजरे हैं 
कहीं ढीबरी भी धुंवा देती है .

इधर उधर सब कहीं देखा मुझको  
अपने दिल में झाँक कर नहीं देखा .

इस बहती अल्हड नदी को 
अपनी बाहों में जरुर बांधता 
इस मगरूर अलंघ्य सागर का 
मान तोड़ता और जरुर लांघता .

घर जंगल में था 
या घर में जंगल था .
ईंट पत्थर के बने 
घर नहीं - घेर थे हम 
गजल के शेर नहीं 
हिंसक 'शेर' थे हम 

मेरे रोने का सबब कुछ भी नहीं 
तेरे दिल पर हुआ असर भी नहीं 
गर यही प्रेम का हशर यारो - फिर 
मेरी पीर पर्वत क्या पत्थर भी नहीं .

ये उमस ओस बन जाएँ दुआ कीजे 
चलो बरसात में बरसात की बाते करें .

हम तो आज भी वहीँ पर हैं यार 
तुमने जहाँ पे साथ छोड़ा था .
लो फिर से जुड़ गया है दिल 
तुमने उसको जहाँ से तोडा था .

अभी सुलगी नहीं - धुआं देगी 
जो गीली लकड़ियाँ हटा देगी .
गरीबों का जो जल गया चूल्हा .
तुझे - हर आँख फिर दुआ देगी . 

ना कोई गैर - ना सगा कोई 
हरेक थाप पर क्यों ताली दो .
कोई अच्छा लगे तारीफ़ करो -
बुरा लगे तो जम के गाली दो .

ये नेता आदमी नहीं - कसाई है 
हो कोई पार्टी - सभी भाई भाई है .
नर्म गद्दी - ओ' तख्तो ताज मिले .
मेरी कौशिश है हमें स्वराज मिले .

फूल ही फूल बिखरे पड़ें हैं राहोंमें 
नहीं पत्थर - किसी निगाहों में .
उमस सी लग रही ना जाने क्यों 
किसी की आह हैं फिजाओं में . 

तर्जुमे करते रहें - अर्थ ना समझा कोई 
बेजुबानों को जुबा ना मिल सकी यारो .

सुर असुरों में है होड़ लगी 
सत्ता की कैसी दौड़ लगी .
फिर से सागर मंथन होगा 
विष अमृत का सृजन होगा .

ना देश हो नाती नानो का 
नेताजी से भगवानो का .
तुक्के और तीर निशानों का 
संसद से चंडूखानो का 
आतंकी के फरमानों का 
घुटघुट करके मरजानो का .

ये देश हो - मुक्तिमानो का 
मजदूरों और किसानो का .
सीमा पर बलि बलि जानो का
आजादी के परवानो का .

मन में उमंग हो - मनभावन संग हो 
जीवन की बात हो - आशाएं साथ हों 
चांदनी रात हो - उजला प्रभात हो .
यहीं पर स्वर्ग का मैं क्या करूँ .

फर्क क्या इनकार से इकरार से 
प्यार चलता ही नहीं व्यापार से .
गीत गाते हैं उसी के लोग सब 
जीत लेते जो जहां को प्यार से .

ना 'दाद' है ना खाज़ 
ना चील हैं ना बाज़ हैं . 
यूँ अपना अपना गीत है 
और अपना अपना साज है .
ये 'शेर' गीदड़ हैं तो क्या - 
महफ़िल में अपना राज़ है . 

अभी सुलगी नहीं - धुआं देगी 
जो गीली लकड़ियाँ हटा देगी .
गरीबों का जो जल गया चूल्हा .
तुझे - हर आँख फिर दुआ देगी .

ना कोई गैर - ना सगा कोई 
हरेक थाप पर क्यों ताली दो .
कोई अच्छा लगे तारीफ़ करो -
बुरा लगे तो जम के गाली दो .

ये नेता आदमी नहीं - कसाई है 
हो कोई पार्टी - सभी भाई भाई है .
नर्म गद्दी - ओ' तख्तो ताज मिले .
मेरी कौशिश - हमें स्वराज मिले .

फूल ही फूल बिखरे पड़ें हैं राहोंमें 
नहीं पत्थर - कहीं निगाहों में .
उमस सी लग रही ना जाने क्यों 
किसी की आह हैं फिजाओं में .