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Saturday, July 23, 2011

आपके मौन को - शब्द दे सकूं

आपके जज्बात -
आप ही के मन की बात.
आपके मौन को - शब्द दे सकूं .
बस यही चाहता हूँ  .

मैं अलग नहीं  - खुद को
आपके भीतर -
आपमें ही कहीं देखना -
महसूस करना चाहता हूँ .

पता नहीं क्या हूँ - और
क्या करना चाहता हूँ -आपमें
ही कहीं छुप कर रहना चाहता हूँ .
आप समझ रहें हैं ना- मैं
क्या कहना चाहता हूँ .

अलग अलग भूमिका में -
हर बार  - इस संसार पट
पर दीखते रहना चाहता हूँ .

मैं हर किसी - हर एक में
रहूँ भी - और उसका हिस्सा
बन जाऊं - चाहे अपनी या
तुम्हारा कहानी- किस्सा बन जाऊं .

मौत से बहूत डरता हूँ -
जिन्दगी से अथाह प्यार करता हूँ .
तुम्हारे भीतर - तुम्हारी सोच में
रहूँगा तो - यकीन है
फिर मरूँगा नहीं .

शायद तुम्हारी याद में - तुम्हारी
हर बात में - जिन्दा रहूँ तो
अमर हो जाऊंगा  - जीते जी भी
और मर जाने के बाद भी .

Friday, July 22, 2011

जिन्दगी भी अजीब है

जिन्दगी भी अजीब है - चुप सी
रहती है कभी - कभी 
कोहराम हो जाती है.

बहूत अपनी सी लगती है - कभी
बरायेनाम  हो जाती है - भागती
है वेग से - चलते चलते 
कभी यूँ ही तमाम हो जाती है .

कभी हाशिये पर - कभी अर्धविराम
तो कभी पूरणविराम  हो जाती है .
बहुत ख़ास सी हो जाती है - तो
कभी बहूत आम हो जाती है .

आखिर इसके मायने क्या हैं -
शोर मचाते हुए आते हैं - रिश्ते
मानते हैं बनाते है -और
एक दिन चुपचाप- बिना कहे 
बिना बताये जाने कहाँ चले जाते हैं .


 

Thursday, July 21, 2011

सबका ध्यान रखते हो

सबका ध्यान रखते हो -
सबकी खबर लेते हो -
तुम कहाँ -कैसे हो -कुछ
अपनी भी खबर देते हो .

पर लेना नहीं है स्वभाव - सागर का
लौटा देते हो वापिस घनो को -
बरखा की बूंदे देकर -
बरसने को धरती पर .
क्योंकि तुम देव हो-
तुम केवल देना जानते हो .

हम कितने कृतघन हैं -
अब ये कैसे कहें .
पास तू रख नहीं सकता - यूँ
दूर तुमसे कैसे रहें .

पर ये कोशिश  - हमेशा से जारी हैं
अभी कल ही तो आये थे -यहाँ
आज फिर वापिसी की तैयारी हैं .

Friday, July 15, 2011

गीत ये फिर भी -मेरा बिलकुल नया है .


देखने में घिस गया है -
बात ये सच मान मेरी -
गीत ये फिर भी -मेरा
बिलकुल नया है .

ढून्ढ लाया था - समन्दर से
हजारों बार लाखों बार -मोती.
कह रहें हैं लोग - सच्चे की चमक
युगों तक कम ना होती .

तूने उनसे - उसने तुमसे
जो कहा है - शब्द फीके
पड़ गएँ होंगे- मगर जज्बात
ये बिलकुल नया है .
  
एक तन्हा आदमी कायर नहीं है
भीड़ के सैलाब में - घुस कर अकेले -
जो भी चाहे साथ होले साथ ले ले.
जय विजय का फलसफा -
सच मान ये किंचित नया है .




Thursday, July 14, 2011

खामोश संसद जारी है

खामोश संसद जारी है -
नयी गोरमेंट की तैयारी है .
चुप रहिये -बिलकुल मौन-
नाकाफी - जलूस-झंडे
बगावत के डंडे -नेताओं के
बड़े बड़े फंडे - सड़े टमाटर अंडे .
सब हैं - पर धीरे बोल प्यारे 
अभी संसद जारी है .

दिवाली पर तो नहीं डरता था

दिवाली पर तो नहीं डरता था
आज इतना हल्ला मचाता है .
अबे दो चार बम कोई छुटाए -
उनके धमाकों से -
तू क्यों मरा जाता है .
...
सब खेल है -सियासत है
पटरी से उतरी रेल है .
कितने मर गए - कौन सी
साली लंका ख़ाली कर गए .

अभी तो इतनी फ़ौज है -
चाहे दुश्मनों की मौज है .
चलने दे छोटे मोटे पटाखे -जब
मन आये ये पिटपिट बंद कर दीयों -
सालों के दो चार -थोबड़े पे धर दियो .

तू मर्द है - मर्द को दर्द नहीं होता
सिसकते तो जनखे हैं -आखिर
बिखरते तो माला के मनके हैं .

Tuesday, July 12, 2011

दस्तक है द्वार पर

दस्तक है द्वार पर - सिंह की पुकार पर ,
सोचना फिर कभी - शत्रु पर प्रहार कर .
ठाड़ा नहीं है सिंह - भय अरण्य पार कर
मरना गर है अभीष्ट -दुश्मन को मार कर .

कामना नहीं है मन्त्र - लड़ना है एक तंत्र
चाहिए कोई जो यंत्र  - फिर से  विचार कर .
शूरवीर ना सही कर्मवीर बन के देख  -
पतझर के मौसम में - बहार से तकरार कर .

भीगा सा सावन है - लथपथ है कीचड से
दल के दल कमलदल- खिले हुए है खूब .
मौन हुआ गीत है - अस्फुट से स्वर आज
करकट सा बिखरा है - उसे तू बुहार कर .

छत पर कौवा बोला - कौन आज आएगा,
सुख दुःख तो साथी हैं -जाने क्या लाएगा .
वक्त तो मेहमा है आज - स्वागत मे कैसी लाज
आरती की थाली - तू अब तैयार कर .

Friday, July 8, 2011

क्षणिकाएं

ऐसा भी होगा - उन्हें मालूम ना था
वर्ना आग में हाथ डालते ही क्यों .
हाकिम इतना जालिम है -गर पता होता
तो परमारथ का शौक पालते ही क्यों .

तेरा मनीआडर तो आया नहीं अब तक -यार
बेमुरव्वत मुझसे मेरे पैसों का हिसाब मांगते हैं .

मैं माटी का दीया - बाल तो दूं
अपनी आत्मा की बाती -और
सांसों का ईंघन इसमें ड़ाल तो दूं.
पर क्या भरोसा है ये दीया -
आंधी तुफानो में यूँ ही जलेगा - और
रौशनी का सफ़र अनवरत चलेगा .

 मुस्कुराना तो बड़ी चीज नहीं
खुल के कहकहे लगाता हूँ
हँसता हूँ - खुद पर या अपनी
बेखुदी पर यारो - कभी खुद से
खुदा हो जाता हूँ - और फिर
खुदा की बनाई इस दुनिया पर -
यारो मैं जम के तरस खाता हूँ . 


ना लूटना पसंद हैं - ना लुटना कबूल है 
ये और बात है - अपना अपना असूल है .

मैं गांधारी - मेरा बेटा राहुल ( दुर्योधन)



मैं गांधारी - मेरा बेटा राहुल ( दुर्योधन)
पूरे हिंदुस्तान पर भारी .
चल बेटा मनमोहन -खड़ा हो
और कर - ताजपोशी की तैय्यारी .
(सोनिया)

मैं क्या कहूं जी - आखरी बार
कब कहा था कुछ - अब तो
ठीक से ये भी याद नहीं .
अगर मुंह खोलता हूँ -तो
गले पर पंजे का निशान नजर आता है
बैठे बिठाये - प्रधानमंत्री  का पद मिले
तो कौन ठुकराता है -अब तो चुप रहने की
आदत हो गयी है - इसी में मजा आता है.
(मनमोहन)

कुत्ते तो हम भी हैं जी - पर
कोठी में घुसने वाले पर भोंकते हैं .
कुत्तों से सावधान वाले बोर्ड -
पिताजी घर के बाहर लगवा गए हैं .
सुना है युधिष्टर के साथ -एक कुत्ता भी
स्वर्ग पहुँच गया था -
तब से कुत्ते की योनी में आ गए हैं .
(दिग्गी)

(क्रमश:..)

Thursday, July 7, 2011

एक दिन और गया .

छोडो भी बीत गया -
रोकते पकड़ते - बस
अच्छा वो दौर गया .
एक दिन और गया .

जीवन की डोरी -
होती और छोटी,
साँसों की आहट-
धीमी मद्धम होती.
मृत्यु की -डगर पर -
प्राणों का दौर गया .
एक दिन और गया .

नभ में - जीवन पतंग
उडती पर पंख तंग -
हवाओं से ठनी- जंग .
मन के मरुस्थल में-
बादलों का शोर गया .
एक दिन और गया .

भीगे दृग - ढूँढ़ते हैं
राहों के - सर्प दंश
मन के - इस दर्पण में
विचरते अब नहीं हंस .
भटके अरण्यों में -
कहाँ मगर ठौर गया .
एक दिन और गया .

पल -छिन से भागते
दिवस शाम -जागते से सोते
हम हुए - तो क्यों हुए
काश हम ना होते .
कहने -सुनाने में-
जीवन का छोर गया .
एक दिन और गया .

Monday, July 4, 2011

तू भी उठ -पूरा ब्रह्मांड जाग गया

तू भी उठ -पूरा
ब्रह्मांड जाग गया
आसमान में छाया
तामसी अँधेरा
कब का भाग गया .

सुबह का सूरज
जाने  कब का -उठ जाग गया
क्या सोचा है -
निकल चल -लक्ष्य
बहुत पीछे छुट गया
बटोही जाने  कहाँ भटके
वर्ना यूँ -तो नहीं रह जाते
एक जगह अटके .

चल -साथ तेरे जमाना
खुद चला आएगा -जो
अकेला ही -अकेले आदमी
की लड़ाई लड़ जायेगा .

तेरा तारनहार -तुझे
जरूर बचाएगा -चाहे
अवतार लेकर -इस जमीन
पर फिर से आएगा .

बूढ़े हो गएँ इरादे

बूढ़े हो गएँ  इरादे
कफ़न से यदा कदा
सर निकालते .

देखते भालते- कहीं
कोई देख तो नहीं रहा .

सो जाते हैं ख्वाब -
बे -आवाज़  निरापद

अगली पारी -
नए साजो सामान
नए बेट-बाल  से खेलने
की तैयारी में .

मन कहता है -
चलो कगार पर आ पहुंचे
स्वर्ग की सात सीढियाँ
दिखने लगी हैं .

फिर नया जन्म लेगी
आकांक्षाएं - नए शरीर
के साथ .

फिर कविता ही क्यों .

अंतर में छिपे -जहर को
मैं क्यों दवा की मानिंद
कविता में उडेलता हूँ -
हँसते मुस्कुराते चेहरों को
क्यों कठोरता के आवरण
में धकेलता हूँ .

आखिर कविता - करता ही क्यों हूँ
किसलिए -किसके लिए -
मेरे सिवा इन्हें पढ़ेगा ही कोंन
कोई पढ़े भी तो क्यों -
आखिर क्या है इसमें
रंजन तो है -मनोरंजन नहीं है .

अपने को व्यक्त करने के
अनकहे को कहने के -
और भी तो ढंग तरीके हैं-
सहने के -
अकेले रहने के
और भी तो कारण हैं -
फिर कविता ही क्यों .

विष वमन को -अंतर तक
चीर देने वाले  चाकू -तीर को
कविता का नाम - क्यों देते तो यार !
सब बेकार -तेरा ये मन्त्र
ज़माने पर नहीं चलेगा यार .

अपने चिंता परेशानियों को
अंतर में रख -किसी से मत
कह यार - सब जायेगा  बेकार
फिर क्या फायदा -चाहे कविता हो
या मर्सिया -दोनों एक से लगते हैं यार !.

ये बरगद का पेड़

ये बरगद का पेड़ -
कल तक ऐसा नहीं था -
आज और कल के बीच -
का मौसम इसे सुखा गया
शायद - समय इसे समूचा ही खा गया .

जाने मै क्या कह रहा था -
क्या बतला गया - सचमुच
उम्र को समझने में मैं -
धोखा खा गया .

कल के- नदी से निकले पत्थर
गोल -तराशे हुए से ,
बरसों  पुरानी ये सिला-
आज भी उतनी ही अनगढ़
अपने अपने मुकद्दर हैं- यार

हाँ तो बात बरगद की -
ठूंठ हो गया - मेरे साथ  साथ
इसने भी कलेवर बदल डाले
कल के पेंट कोट -अब बस
लुंगी के हवाले .

पर इसमें अजीब क्या है -
यही होता आया है -
और यही हुआ है - मैं कोई विशेष
तो हूँ नहीं की -नियम मेरे
हिसाब से घड़े जायेंगे -
संसद में मेरे लिए तो नए विधेयक
नहीं लाये जायेंगे .

चल चुप कर - बहुत हो चुकी
सुबह की सैर - नाटक मत कर
चाय सुड़क और नाश्ता कर के
सो जा -खाना बन जायेगा
तो जगा लेंगे -नहीं उठा तो -
तेरे बिना भी  खा लेंगे .

मैं कहीं हूँ भी की नहीं हूँ

कभी कभी सोचता हूँ
मैं कहीं हूँ भी की नहीं हूँ
जाने ऐसे विचार मन में क्यों आते हैं .
या फिर समय के साथ
धीरे धीरे यूं ही बन जाते हैं .

क्रिया शून्य होना या
समय की धार से दूर हो जाना -
या शायद दोनों .
क्यों भोथरी हो जाती है
तलवार की धार
या विचार - या दोनों
ठीक से कह नहीं सकता -
क्या ठीक है- क्यों की
मैं हूँ भी और नहीं भी .

चलो फिर से सोचते हैं आखिर भूल
कहाँ हुई -क्यों हम हाशिये से भी और
नीचे आ गए .ये मैं नहीं कहता
बस यूं ही चलते फिरते लोग हम से
कह गए  या समझा गए .
और अब तो मैंने भी मान लिया -
की इस मामले में हम सचमुच -
गच्चा खा गए .

क्या कर्तव्य से विलग हो कर -
कर्महीन होकर रहना चाहिए - किसी से
कुछ नहीं कहना चाहिए बस
चुप चुप रहना चाहिए .

मान लेनी चाहिए अपने हार
छोड़ देना चाहिए ये घर -
ये संसार .या चला जाना चाहिए
उस पार - या यूं कहें समय के
अंतिम द्वार के भी उस पार 

जहाँ शेष नहीं रह जाती - वासनाएं
जब शरीर ही नहीं तो वासनाएं कहाँ
रहेंगी - तुम्हारा क्या बिगाड़ेगी तुमसे
क्या कहेंगी .

पर कहते हैं मन जीवित रहता है
शरीर के भी बाद
शायद मन-आत्मा एक ही होतें होंगे .

जब तक मन जीवित है तब तक
मेरे होने का अहसास दिलाता रहेगा
मेरे होने का सन्देश कहीं  से भी सही
आता रहेगा .

चलो कोई माने न माने पर
मैं हूँ जरूर  -
कहाँ हूँ  ये अभी ढूँढना पड़ेगा

तुम्हे कहीं मिल जाऊं मैं यूं ही आते जाते
तो ऐ दोस्त  मुझे
तुरंत खबर करना
मुझे इन्तजार रहेगा .

चल उठ खड़ा हो .

ये सुबह की अरुणाई है -
चिड़िया चहचहाई है -
देख धूप कितनी निकल आई है .
पड़ा क्यों है -
चल उठ खड़ा हो .

परेशानियों का समुन्द्र -
चाहे कितना बड़ा हो .
कितने तूफान हों पर
मर्द है तू -
चल उठ खड़ा हो.

चलने से ही रास्ते
मुश्किल कट जाया करते हैं -
ग़मों के बादल
छट जाया करते हैं -
ढूखों के अपार सागर भी -
घट जाया करते हैं -

फिर दुविधा क्यों है -मन में
रास्ता कट ही जायेगा
चाहे कितना बड़ा हो -
सोचता है क्या -
चल उठ खड़ा हो .

चलने में सुविधा है -
कम से कम ना  चलने की
दुविधा से तो बचेगा -
प्रयास जरूरी है -
मुकाबला चाहे
कितना कड़ा हो .
ज्यादा सोच मत -
चल उठ खड़ा हो .

हमे फख्र है - हम गरीब हैं

हमे फख्र है - हम गरीब हैं
कोई चोर नहीं है यार .

मेरे कनस्तर में भले ही -
आटा नहीं मिलता है - पर
किसी स्विस बैंक में कोई
खाता भी नहीं चलता है .

दुनिया बदल जाती है - बारह बरस में
तो कुड़ी के ढेर के भी दिन बदलते हैं .
एक हम हैं - की वहीँ के वहीँ हैं
पता नहीं हमारे भाग्य किस दिशा में और -
कौन सी गति से चलते हैं .

कहने को बहूत हैं हम - आबादी का
एक तिहाई हिस्सा -पर कोई
कथा कहानी - नहीं बनती हमारी
जिन्दगी का कभी किस्सा .

वैसे देश है - नेता हैं , सरकार है
पर हमें क्या - हमारे लिए तो
सारे बिलकुल बेकार है.

अगर पत्ता भी हिलता है - तो
सारा वजूद कांपता है - नंगे
रहने की आदत है - हमारे
शरीर यहाँ कौन ढामपता है .

हमें ये क्या कपडे पहनाएंगे -
गर मांग भी लिए - तो
हम ही शर्मशार हो जायेंगे -
गाँधी की तरह ये खुद ही-
एक लंगोटी में सामने खड़े हो जायेंगे .

Friday, July 1, 2011

सत्य कहना और उसे

सत्य कहना और उसे -
उसी भाव से सहना - कहाँ है
इतना आसान - इस दुनिया में
निर्विकार भाव से रहना .
जब सच की खोज में-
इतने बूढ़े हो जाओगे -की
झूठ के कलेवर में छुपे - सत्य
को कैसे जान पाओगे .

मान ले मेरी बात - हट मत कर
बादल सूरज को कितनी देर तक
छुपायेगा - सुबह होगी - तो तू ही नहीं
सारा जग जान जाएगा .

फिर अपनी फैली बिसात से-
चाँद तारों में से - आखिर
किस किस को उठाएगा .
दिए का मान - क्या होता है
उस दिन तेरी समझ में खुद आ जाएगा.