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Friday, February 25, 2011

हम परवाह नहीं करते,

दरअसल हम परवाह नहीं करते,
भले ही कोई खोल ले जाए -
हमारी दुधारी भैंस - या फिर
सर की टोपी .

हमे चिंता जाने क्यों नहीं होती -
अखबार की खबर -चिंता जनक नहीं,
गर मेरे सब अपने -खैरियत से हैं .
ख़बरें पसंद हैं पर
खबर बन जाना नहीं .

पड़ोस में आग लगे-मुझे क्या
(पंजाबी में 'सहान्नु की ')
मेरा घर- मेरे बच्चे सकुशल हों -
बाकी जाएँ भाड़ में .

देश तो फिर -बड़ी इकाई है ,
मैं ही चिंता क्यों करूँ -अकेला
और भी तो हैं -इतने सारे ,
कोई मेरा ही ठेका लिखा है .
और निश्चिन्त होकर सो जाते हैं .

दरवाजे पर खड़ा है पर
बताइए इन्कलाब कैसे आएगा-उसे
कौन अन्दर आने की लिए कहेगा -
कोंन भीतर लाएगा .

छोड़ यार नाश्ता कर -
दफ्तर की लिए निकल -
बस/ट्रेन छुट जाएगा तो-
बॉस की डांट कौन खायेगा .

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