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Friday, February 25, 2011

कहाँ रहते हो यार

कहाँ रहते हो यार -आजकल
मिलते मिलाते नहीं,
क्या बात है - कहीं आते जाते नहीं .

ठीक है -मेरा घर दूर है ,
तू चलने से लाचार मजबूर है ,
फिर भी कभी कहीं - रस्ते में
यूँ ही मिल जाया करो - सुबह
दूध और शाम को सब्जी के बहाने
ही निकल आया करो .

भाई अपनी तो अजब राम
कहानी है - आँखों में धुंधलका
सा है , फिर भी दूर तक ,
सुबह -शाम सैर करने की ठानी है .

आ, जाओ साथ -साथ चलेंगे
कुछ आज या बीते कल के
किस्से कहानी कहेंगे-सुनेगे .

कितने से दिन बचे हैं -
जिन्दगी सड़क पर चलते चलते
अबतो पटरी पे आ गयी है .
ढलान थोडा ज्यादा है -
और समय की गति तेज.

जाने कब कौन -कैसे और कहाँ
मशीन में ढल जाए -
किस की खबर कौन जाने,
कल के अखबार में निकल जाए.
और आ जायें हाशिये से,
सीधे इतिहास के पन्नो पर .

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