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Friday, February 25, 2011

muktak

अजीब ढोल हैं सियासत के -ना भजन, ना कोई तराना ,
बरसों पुराने घीसे गीत को-हर बार अलग ढंग से बजाना.

 अजीब जिन्दगी है -जो मिला उससे ख़ुशी नहीं है ,
उम्र भर मांगते रहे -वही चाहिए जिसकी कमी है .

मैं कहीं डूब गया हूँ शायद , ढून्ढ जो मेरा पता पाले तू ,
मजा जब है इस प्रेम सागर से ,जीते जी मुझे निकाले तू.

फासले रख के फिर चला करिए ,किसी से यूँ ना तुम मिला करिए ,
जान जाने के सौ बहाने हैं , दिल पर हर बात ना यूँ लिया करिए.

तेरी मां- बहुत अच्छी है ,ये बात ठीक है लेकिन,
भले बीमार सी दिखती है , घर में मेरी मां भी है .

किसी के काम आ नहीं सकता ,
किसी का प्यार पा नहीं सकता ,
की अपना घर उजाड़ कर यारो ,
किसी का घर बसा नहीं सकता .

सजाएँ दी जाती हैं , सुनाई नहीं जाती ,
आपदाएं ,आवाज़ दे के बुलाई नहीं जाती .

सब ठीक चल रहा था -फिर क्या जरुरत थी,
अब गलतियाँ -तो हरबार , दोहराई नहीं जाती .

रोरोके बात करने का क्या फायदा हैं यार,
हलक फाड़ के चिल्ला -जरा असर तो हो .

गरीब की छत है -बरसात से डर लगता है ,
घर में रहना भी बस एक हुनर लगता है .

किसी ने चुपके से कहा -सरकार है ,
हमने चिल्ला के कहा- बेकार है .

उठो जागो -खड़े हो जाओ
ऐ, हिन्दोस्तां वालो .
जमाना टकटकी लगाए
हुए खड़ा -कबसे .

कितना फरेब बेचते हैं - हुक्मरान यार ,
ना बेचना मना है - ना पीना हराम है .

आजादी किसे मिली ये समझने की बात है ,
सरे आम चीखने को आजादी नहीं कहते .

तू भी गुलाम यार ,मैं भी गुलाम हूँ
तेरे जिगर की पीड़-अब मेरे जिगर में है.


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