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Friday, February 25, 2011

सुख यदि फल है

सुख यदि फल है ऊँचे दरखत का,
तो तोड़ कर ला तो सही-
पूरी दुनिया-जहान को दिखला तो सही
इसकी कलम अपने उपवन में
लगा तो सही .

पर ये सच नहीं है -दोस्तों
सुख की ये परिकल्पना ही
व्यर्थ है - इसके तो दुसरे ही
सारगर्भित अर्थ हैं .

सुखी वो है -जिसने सुख को
जान लिया -मान लिया.
जो है -जितना है , उसी में संतुष्ट है
ज्यादा की लालसा नहीं करता .
आज के लिए जीता है- कल के
लिए नहीं मरता .

ना की वो जो वर्तमान में -
बहूत है या कम है -उससे खुश नहीं,
और ज्यादा की हवस रखता है,
कल के लिए मरता है , आज जो
सत्य है शाश्वत है- उसका
ध्यान नहीं करता है .

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