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Monday, April 30, 2012

समंदर की रुष्ठतता से डर

समंदर की रुष्ठता से डर - 
उत्ताल लहरों से मत खेल .
किसी दरिया की रवानगी 
को तो पहले झेल .

रोज़ रोज़ के तुफानो से बच 
मेरी बात मान - बेजुबाँ नदी
खामोश ताल के किनारे - 
कहीं कोई अपना घर ले .

धारा के विरुद्ध - लड़ना
आसान कहाँ होता है .
सबसे पहले - इंसान
अपना वजूद खोता है -
हार जीत का फैसला तो
उसके बाद होता है .

मैं नहीं 'हम' कहो - तो
संभवत : विजय पा लो .
वर्ना विदेशी बैरी को -
निमंत्रण दे कर 

पहले ही बुलवा लो .

नहीं जानता सही - या गलत
जैसी धारणा - ये किताबी बातें .
दुश्मन की कुनीतिया -आत्मघाती
राजनीति - की घातें .

छोड़ ज्यादा सोच विचार -
मन में छिपे डर को मार .
देसी डोंगी जैसी ही सही -
नाव बना - और एक मुश्त
समंदर की लहरों में -
चुपचाप उतर जा .

Thursday, April 26, 2012

शिष्य ने कहा

शिष्य ने कहा - है गुरु 

हम तुझे हर दम याद करते

हर पल ध्याते हैं - पर आप


हमारे सपनों में- आखिर


क्यों नहीं आते हैं .




गुरु ने कहा - जो मुझे


हर घडी याद करते -


मुझे कभी नहीं बिसराते हैं .

मैं उनके सपनो में नहीं आता -


वो मेरे सपनो में आते हैं .



(श्री गुरु सुदर्शनाचार्यजी के चरणों में सादर समर्पित)  

Wednesday, April 18, 2012

विरासतें समटते रहे तो

विरासतें समटते रहे तो 
एक दिन बूढ़े हो जाओगे.
पुराने खंडहरों पर -अब 
नयी ईमारत बनाने दो .

जो चला गया उसे भूल जा - 
साबरमती की कौंख -
अभी बाँझ नहीं हुई है - यार 
लहर उठ रहीं है - अरबसागर से 
उसे दिल्ली तक पहुँच जाने दो .

कहीं से ताज़ा हवा का झोका
मिल जाए अगर - उसे आने दो .
चश्मे - खादी में लिपटे रहे
जमाना बीता -यार .
पुरानी खड्डी को - कुछ
नए ताने बाने दो .

सदी बदल गयी - अब तो
कुछ नए प्रयोग आजमाने दो .
जो चला गया - सो चला गया
ये आदमी नया है - इसे
जरा भीतर तो आने दो .

आजकल जनपथ पर

आजकल जनपथ पर कपड़ों की - 
कोई बड़ी सेल नहीं चलती . 
देश में कोयले से चलने वाली - 
वो भाप की रेल नहीं चलती .

दिल्ली में मेट्रो चलती हैं प्यारे - 
कोई खटारा - पैसेंजेर मेल नहीं चलती .
पञ्च तारा होटल ही नहीं होते .
फाइव स्टार माल - अस्पताल और
पिक्चर हाल भी होते हैं .

लाडला तुम्हारा है - तो क्या
विद्यामंदिर पंचतारा हैं .
पढाई के साथ लव की ट्यूशन -
मुफ्त कराई जाती हैं -
हिंदी में बात करना मना है -
अंग्रेजी से कमाई सिखाई जाती है.

गुरु- शिष्य परंपरा की -
पुरानी वो घालमेल नहीं चलती .
दिस्टिंगशन का ज़माना है -
अब परीक्षा में ये -
पास फेल नहीं चलती .

Tuesday, April 10, 2012

प्यार कम या ज्यादा

प्यार कम या ज्यादा 
पूरा या आधा - नहीं होता . 
पग इत्मीनान से धरिये 
कोई मर मिटे आप पर -
इससे पहले उसपर मरिये.

नहीं होते कोई - क़ानून कायदे
नहीं देखे जाते - नुक्सान या फायदे .
करना है तो डरना नहीं - जो डरो
तो इश्क फिर करना नहीं .

आत्मा की हद कहाँ तक -
फिर कैसे जिस्म तक -
उतर आता है प्यार .
सच में इसकी कोई निश्चित
परिभाषा ही नहीं बनी यार .

आँखों आँखों में - बातों बातों में
मेल मुलाकातों में - या फिर चुपके से
अचानक - कोई सामने आ गया .
कब मन मिल गया - नजर मिली
और जनाब दिल गया .

नित वस्त्र बदलकर आती है

नित वस्त्र बदलकर आती है 
फिर भी - नूतन कहलाती है 
ये भौर - लिए आशाओं के 
हर दिल में दीप जलाती है .

आती है ज्यूँ सोये मन में -
बज उठती -वीणा सी तन में .
चिर युवा - लगती है प्रतिदिन 
हर शाम ढले कुम्भ्लाती है 

उठ जाग अरे क्यों सोता है
हर इंसा जोगी होता है .
जागी प्रकृति - पंछी जागे
तू पीछे क्यों - रह सब से आगे .

एक जंगल बियाबान

 एक जंगल बियाबान -
दूर दूर तक  - नहीं कोई इंसान  
जहाँ एक भूतिया मकान .
चलो निकल चलें - यहाँ से 
सच में बहूत डर लगता है .

दिन की रौशनी में - 
बहूत सुंदर है ये कानन .
स्वर्ग का सा मंजर लगता है . 
रात के लम्बे होते सायों में 
यहाँ यार बहूत डर लगता है .

रात की बाहों में सोता शहर 
कितना सतरंगी - धरती आस्मां .
पर उषा की लालिमा- भ्रम तोडती है 
रात के सपने को - सुबह से जोडती है .

अपनी गर्मी से पिघलता - शीशे
सा नसों में ढलता - रास्ते मंजिले 
जिस्म में खो जाती है - ये रातें 
शैतानी आंत से भी - कहीं 
ज्यादा लम्बी हो जाती हैं .

ना कहीं चैन ना कहीं त्राण
उजड़ा उजड़ा सा - यहाँ 
पूरे दिन का विधान .
क्या इसीको - आप 
शहर कहते हैं -  श्रीमान .  
  

Sunday, April 8, 2012

चलो इसे घर ले चलें

सारा सारा दिन आवारा घूमता है - 
चलो इसे घर ले चलें - 
ड्राइंग रूम में सजा लेंगें .

बहूत आग है - इसमें 
घर का चूल्हा बिना गैस के 
जला लेंगे - रोटियां पका लेंगें 

और नहीं तो - घर की बत्तियां 
जला लेंगें - बिजली का बिल 
बहूत आता है - बचा लेंगे .
चलो इसे घर ले चलें . 

Thursday, April 5, 2012

दोहे

चींटी चढ़ी पहाड़ पर - हाथी मग मग जाए
फिर काहे को हे मना - बल पर तू इतराए .

रहना नहीं जहान में - सबको जाना यार 
ऐसे जग से क्यों भला तू फिर प्यार बढाए .

तेरी मेरी दोस्ती - हर युग में हर बार 
युगों युगों तक साथ हैं चिंता कैसी यार  .

छोटी से ये जिन्दगी - क्यों जग बैरी होए .
देता चल जो दे सके - नहीं पराया कोए .

चलना सीना तान के - दुनिया में तू यार 
पर विधना की मार से बचकर रहना यार .

अगर नदी में जल बढ़े  - सागर ही में  जाय  
पीते - बांटे ना घटे , फिर खारा हो जाए .  

चिड़िया दाना खाएगी - हाथी मण-मण खाए 
खाली का खाली रहे  - पर पेट भरा ना जाए .

आप भले तो जग भला - भला नहीं पर कोई.
पता चलेगो वा दिना - जब राम मिलाई होई  .

राजाशाही ना रही - बची ना कोई कील 
जंगल सारे कट गए - रहे भील के भील .

कठिन पढाई जिन्दगी - जीना नहीं है खेल
पता चलेगा एक दिन -  पास हुए की फेल .   

हंसा लन्दन उड़ गए  - कौआ गए बिठाए
इटली की एक मेनका - कागा लई बुलाय .


चिड़िया मेरे राम की - सिंह सवारी होए
सब मारे यमराज ने - अब काहे को रोये . 

ध्यान हटा बादल फटा - देवे और ना खाय 
देखर चल तू हे मना  - सबको खाए हाय .

चला नहीं तो क्या चला - नकली तेरा नोट 
जुगत नहीं बैठी ससुर - अब क्या मांगे वोट .

लल्ला जी ले आये थे - मैया गलैये लगाय 
या अंग्रेजी रांड है  -  अब इटली याये पठाओ  .

भूखा मरना कठिन है - ये तो पक्की बात
जनता अबतो चुनेगी - किसको परसे भात .


सुखी रोटी ना पचे - चुपड़ी चुपड़ी खाए

ऐसा भोजन जो करे वो अन्ना कहलाये .



बाप हजारी कर गए - बेटा चाहे करोड़ 


पूंजी सारी छीन गयी - अब क्यों ले मरोड़ .



थोडा थोडा प्रेम रख - थोड़ी थोड़ी रार

ज्याद इसको ना पचे - ये अद्भूत संसार .  

सबके सब इकसार हैं - फर्क नहीं कुछ यार
नेताओं की दोस्ती है एक दिवस का प्यार .

नारी अबला लोग हैं - संसद बैठे कंस
कव्वों के इस राज में कैसे जीवे हंस .

बे औलाद मरें ससुर चले ना इनका वंश
सारे दुश्शासन यहाँ  सबके सब हैं कंस .  

कैसी अपनी जीत है कैसी उसकी हार
वोट छीन ले जायेंगे फिरसे करो विचार .

पांच पति की द्रोपदी - लखपतिये ये यार
जूते जमके मारिये ये क्या जाने प्यार .

अजमा करके देखले अब ना होय कमाल 
वो 'धौली' को लाल हैं - हम लालन के लाल .

मांग इक्कठा करलिए - व्यंजन ये छत्तीस 
पर खाने से पहले गए - बत्तीस के बत्तीस .

पागल ये मन बावरा - उलटी याकि चाल
मारे से बजता बहूत - ढोल मढ़ी ये खाल .

मेरे दिल में और है - तेरे दिल कछु और 
और और के फेर में - बाकी बचा ना और .

नेता मरते आये हैं - बचा रहेगा देश 
सास पति दोनों गए फिर ये कैसी रेस .
   




Wednesday, April 4, 2012

बात करता है बहूत ख़ास


बात करता है बहूत ख़ास -
बात आम नहीं करता .
इस देश में - जिसका जो काम है 
बस वही - वो काम नहीं करता .

संत्री से प्रधान मंत्री तक 
संसद से सड़क तक - 
जनपथ से - राजपथ तक 
लोग खड़े - बैठे लेटे या 
इंडिया गेट के लान में 
पड़े पड़े - सुस्ता रहें हैं .

हंस - रोरहे - गा रहें हैं . 
सिगरेट बीडी फूंक रहें हैं -
या खैनी खा रहें हैं . 
पर वो नहीं कर रहे - जिसका
वेतन या पगार पा रहें हैं .

हाथों में डंडे- झंडे लिए 
नारे लगा रहें हैं - 
हम विधवाओं की -
मांग भरो / पूरी करो . 
बस मांग ही मांग हैं - 
सारे के सारे - मदारी हैं 
भाई वाह क्या स्वांग है .

मांग पूरी करो - वर्ना मर रहे हैं 
कल से रामलीला मैंदान में 
सत्याग्रह कर रहें हैं - 
ये अनशन - कोढ़ में 
छिपी खाज है . 
कोई क्या बिगाड़ लेगा -
सरकार किसी भी पार्टी की हो - 
पर देश में अपना ही तो राज़ है .

समय की धार में सब बह गया


समय की धार में सब बह गया -
कभी फुर्सत मिली देखेंगे - तब
क्या बचा क्या रह गया .

वक्त के पंछी चले उड़ान पर
नीड़ धरती पर - और इरादे
थे उनके आसमान पर .

ध्येय एक था और
अगणित रास्ते -एक मेरा
बाकी जाने किस किसके वास्ते .

एक अदना आदमी - और
वक्त का कद बड़ा था - 

मैं सामने और
वो मेरे पीछे खड़ा था .

केवल मैं - नहीं तुम
और वो - सिर्फ हम हैं
छोडो भी यारो जाने भी दो .

ख्याल जेहन में - शब्द कागज़ पर
नहीं उतरे - यार कुछ तो
हमारी शर्म कर - अदब कर .

प्यारकी भी बड़ी अजीब दास्तान हैं

प्यार की भी बड़ी -
अजीब दास्तान हैं
एक पागल मैं -
मेरे पीछे पूरी दुनिया
सारा जहान हैं .
मिलजाए तो -
एक नजरमें कलि
दिलकी खिल जाए .
लड़ते रहो वर्ना -
इधर हिन्दुस्तान
उधर पाकिस्तान है .
कौन कहता है -
ये इकतरफा बयान है
कहाँ आपके हाथों में -
इसकी कमान है .
इधर से निकला -
ढूँढ़ते रहो काक्रोच सा
दिल कब किधर-
कहाँ गया -
ना जाने आपका
कहाँ ध्यान है .

Monday, April 2, 2012

मुक्तक

 मैं मलबे से मकान बनाता हूँ
आदमी को इंसान बनाता हूँ .
अगर अपनी पर आ जाऊं तो -
पत्थर को भगवान बनाता हूँ .
   
रात को उजाले में लाता हूँ 
सुबह की रौशनी दिखाता हूँ 
आदमी को मसीहा बनाता हूँ 
अदृश हूँ कभी नजर नहीं आता हूँ .   

सौदा जरा सच्चा बेचता हूँ - 
फल थोडा कच्चा बेचता हूँ 
तेरी औकात क्या - हाकिम हूँ  
देश का बच्चा बच्चा बेचता हूँ

 दिल करे तो देश दुनिया जहान बेच दूं
जर्रा जर्रा - खेत खलिहान बेच दूं 
तेरी हस्ती ही क्या- राजनेता हूँ 
तेरा दीनईमान -तेरा भगवान बेच दूं .  

 थक गया हूँ फिर भी - थोडा टहल आऊँ 
दूर की उस कल्पना के संग थोडा दूर जाऊं 
चाहता है मन मैं कोई गीत गाऊं गुनगुनाऊं
शब्द बहरे हो गए - किसे गाकर सुनाऊं .

मैं अकेला ही चला था - यार 
मेरा अंदाज़ - ज़माने से थोडा जुदा था. 
कोई मंदिर ना मूरत -सच कहूं 
मैं अपना - खुद ही खुदा- नाखुदा था .

मेरे साथ ना जाने आजकल होता यही है 
कहता किसी को हूँ - और सुनता कोई है .

लिखने के अर्थ अलग होते हैं 
कहने के भावार्थ अलग होते हैं 
बिन लिखे कहे - समझ जाए कोई 
जहाँ में ऐसे हमदर्द कहाँ होते हैं .

मैं लिखूं - तो क्या तुम पढोगे 
या अपने शब्दार्थ खुद घडोगे.
सब तुम पर निर्भर है - अब
कविता बनोगे या कविता करोगे.

ये भव्य महल से - पूजाघर 
क्या रहता है भगवान इधर .
अंतर में झाँक अरे प्राणी - 
वो छिपा हुआ तेरे भीतर .

सोने के सिंघासन - ये रत्नजडित से कलश शिखर 
कैसे मानूं - ये भवन बने रहने को मेरे खुदा का घर . 
सिंदूर लगा पीपल नीचे - छत जिसकी है नीला अम्बर 
जो खुदा बसा मेरे अंदर ये भी तो है भगवान का दर .

कर्जा उतारता उसके मेरी ऐसी औकात कहाँ थी 
सूदखोर - महाजन नहीं यार वो तो मेरी माँ थी .

किसी तरह से इस दिल को बहलाएँगे 
वो नहीं आये -अब आज नहीं आयेंगे .