एक जंगल बियाबान -
दूर दूर तक - नहीं कोई इंसान
जहाँ एक भूतिया मकान .
चलो निकल चलें - यहाँ से
सच में बहूत डर लगता है .
दिन की रौशनी में -
बहूत सुंदर है ये कानन .
स्वर्ग का सा मंजर लगता है .
रात के लम्बे होते सायों में
यहाँ यार बहूत डर लगता है .
रात की बाहों में सोता शहर
कितना सतरंगी - धरती आस्मां .
पर उषा की लालिमा- भ्रम तोडती है
रात के सपने को - सुबह से जोडती है .
अपनी गर्मी से पिघलता - शीशे
सा नसों में ढलता - रास्ते मंजिले
जिस्म में खो जाती है - ये रातें
शैतानी आंत से भी - कहीं
ज्यादा लम्बी हो जाती हैं .
ना कहीं चैन ना कहीं त्राण
उजड़ा उजड़ा सा - यहाँ
पूरे दिन का विधान .
क्या इसीको - आप
शहर कहते हैं - श्रीमान .
बढ़िया प्रस्तुति । आभार ।।
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