नित वस्त्र बदलकर आती है
फिर भी - नूतन कहलाती है
ये भौर - लिए आशाओं के
हर दिल में दीप जलाती है .
आती है ज्यूँ सोये मन में -
बज उठती -वीणा सी तन में .
चिर युवा - लगती है प्रतिदिन
हर शाम ढले कुम्भ्लाती है
उठ जाग अरे क्यों सोता है
हर इंसा जोगी होता है .
जागी प्रकृति - पंछी जागे
तू पीछे क्यों - रह सब से आगे .
फिर भी - नूतन कहलाती है
ये भौर - लिए आशाओं के
हर दिल में दीप जलाती है .
आती है ज्यूँ सोये मन में -
बज उठती -वीणा सी तन में .
चिर युवा - लगती है प्रतिदिन
हर शाम ढले कुम्भ्लाती है
उठ जाग अरे क्यों सोता है
हर इंसा जोगी होता है .
जागी प्रकृति - पंछी जागे
तू पीछे क्यों - रह सब से आगे .
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