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Thursday, June 30, 2011

जब मैं - नहीं रहूँगा

जब मैं - नहीं रहूँगा 
कैसा लगेगा तुझे .
कौन देखेगा तेरी बाट
तेरी शान - ये तेरे ठाठ .

कौन बहायेगा  - तेरी याद
तेरे प्यार में अश्रुजल - 
कौन लाएगा तेरे लिए - ब्रह्मकमल.
बात-बात पर कौन सताएगा तुझे .

फिर तेरी राह पर -उद्विग्न 
विक्षिप्त बावला सा कौन -
चलकर आएगा.
कितना छलिया है - तू
ये तुझे कौन बार बार बताएगा .

तेरी महानता - दया का गुणगान 
कौन - ज़माने को सुनाएगा .
तू सिर्फ मेरा है - ये तुझे 
आखिर कौन यकीन दिलाएगा.

याद रखना - एक दिन 
ऐसा जरुर आएगा - जब 
तू तो होगा - बस मैं नहीं रहूँगा .

(श्री हरी बदरीनाथजी को समर्पित)

Thursday, June 23, 2011

हमे नारे लगाने में मजा आता है

हमे नारे लगाने में मजा आता है
आगे रहना हमे जरा नहीं भाता है .

गोली डंडा - कौन खाए -
आज की दिहाड़ी कौन गवाए .
हिम्मत हो तो दुश्मन    -
जरा फेसबुक पर तो आये  - फिर
देखना हम उसकी धज्जियां कैसे उडाये  .

जन्तर मंतर  -या रामलीला  मैदान 
ऊफ्फ आज कितनी गर्मी है श्रीमान .
हम तो ऐ .सी कूलर के बिना मर लेंगे .
भर्तसना गालियाँ ही तो देनी हैं -उसके

लिए "फेसबुक" है ना भाईजान   .

Tuesday, June 21, 2011

ये शतरंज का खेल है -प्यारे

बिसात कभी खाली नहीं रहती
कल कोई और था - फिर
कोई और आके जम जाते हैं .

ये शतरंज का खेल है -प्यारे                                                                                                                        हम इसमें ना जाने -क्यों
इतना ज्यादा रम जाते हैं.

राजनीति भी आज -कल
शतरंज का खेल हो गयी .
मानवता की पुकार - आज
गूंगी हो - ना जाने
किन कंदराओं में सो गयी .

कहीं भी देखो - आज प्यादे हर ओर है
वैसे - सफ़ेद गोटियाँ हार रही हैं-
कालियों का कुछ ज्यादा जोर है .

वैसे ख़ास ही नहीं आज -आम
आदमी भी खिलाडी हो गए
पांडवों की बात जाने दो -अब तो
हम सब पक्के जुआरी हो गए .

Saturday, June 18, 2011

मंथर गति से - बहती हवा

मंथर गति से - बहती हवा
कह रही है - अभी ठहर
कुछ देर यहीं रुक जा .

ये काले - कजरारे
उमड़ते -हुए मेघ .
कहाँ जायेगा  - चल
यहीं बरस जा .

रोक लेते हैं कदम
बढ़के मेरे - जाने
अनजाने रास्ते .
अकेला छोड़ हमे -
यूँ  आगे मत जा .

 

बूंदों का मजा ले ना

आग की बात मत कर -
बरसात का मौसम है .
पुरवैया का जोर है -
बूंदों का मजा ले ना .

रोज रोज - रोने का
क्या फायदा है सोच .
कभी तो थोड़ा सा
मुस्कुरा दे ना .

फैले सब रंग - बदरंग
जिन्दगी की तस्वीर .
क्यों पोंछता है बार -बार
एक बार - सीधे आंसुओं से
धोने दे ना .

मैं कहता हूँ - चुप्पी 
बहूत भली सी है -अब
खुद भी - आराम से रह
सरकार को भी - चैन से
सोने दे ना .

रात का राग - अलसुबह
क्यों छेड़ बैठा मैं -यार
सुबह हुई है अभी -
सबको सुप्रभात  तो
कहने दे ना .

Friday, June 17, 2011

रहने दो - तुमसे नहीं होगा

रहने दो - तुमसे नहीं होगा
नहीं बन सकोगे जनक इस
सुता के  - जिसे क्रांति कहतें हैं

भ्रूण हत्या पाप है - फिर भी
लोग इस क्रान्ति को
जन्म लेने से पहले ही
मार देते हैं .

लोग विदेशों से फोन करके
देश के हालात बताते हैं पर-
ये खबरिया चैनल वाले तो
सरकार के गिर जाने की आशंका
में जाने क्यों मरे जाते हैं .

कुछ मालूम है - क्या हो रहा है
आप ना जाने कौन सी दुनिया
में खोये रहते हैं .

Thursday, June 16, 2011

ये आबादी में अरण्य कहा से उग आये .

समझ में नहीं आता - 
इंसानी आबादी में -ये
अरण्य कहाँ से उग आये .

किसने- इन हिंसक जानवरों को
इंसानों पर गुर्राने -चीर फाड़ कर
खाने का -अधिकार दिया .
बस्ती में घुसने से पहले ही
इन्हें रस्ते में रोक कर-
क्यों नहीं जान से मार दिया .

चिड़ियाघर चिड़ियाओं के लिए हैं
इन्हें जंगल में ही आखेट में 
क्यों नहीं मार दिया   -
किसने इन आदमखोर जानवरों
की सुरक्षा का जिम्मा लिया - और
सुरक्षा के लिए नाम पर क्यों -
इनके लिए पिंजरा तैयार किया .

ये तुमने क्या किया

ये तुमने क्या किया .
जो करोड़ों लोगों के सूरज
बनके उभरते- तो तेरे सहारे -
हम लोग जीते  -तुम
ना रहते तो भी राजघाट पर
राष्ट्रीय नायक की मौत मरते .

पर ८ दिन की भूख तेरे-
सारे कसबल निकाल गयी .
देश को फिर वही -अपने
पुराने ढरे पर ड़ाल गयी .

यूँ तो सूरज की रौशनी हो - फिर भी 
आधा जगत - अँधेरा रह जाता है
टिमटिमाता ही सही - माटी
का दीपक हमसे बहूत -
कुछ कह जाता है .

होना तो यही था की - एक एक
दीपक हर घर से लाना चाहिए था.
असंख्य दीप मालाओं से -
इस देश को दीवाली की -तरह
हर रोज जगमगाना चाहिए था .

पर अब मैं क्या करूं - किस से
कहूं की कमान थाम ले - जो
इस देश को ही नहीं -पूरी
दुनिया जहाँ की हाथ में लगाम ले . 

ना जाने क्यों मेरी सारी उम्मीदें - हर बार
बीच चौरास्ते पर दम तोड़ देती हैं.
तूफानी धाराएँ - मेरी किस्ती की
दिशा को राम जाने -
किस तरफ मोड़  देती हैं .   

(बाबा रामदेव के अनशन की समाप्ति के सन्दर्भ में)

Wednesday, June 15, 2011

पहले थोडा सा - आपस में लड़ लें.

प्यार महूब्ब्त बाद में -
आओ पहले थोडा सा -
आपस में लड़ लें.
चलो मन की ग्रंथियों को -
ढीला करें - समेट कर रखना
जो सहज नहीं - तो थोडा सा
बिखर लें .

एक सागर - एक नाव ,
एक सा मन - एक भाव .
फिर क्यों अलग अलग -
पतवारों से खेवें नाव .

चलो दिल के फासले
थोडा और कम कर लें .
अलग अलग बहूत हुआ -
एक संग - एक साथ
फिर से विचर लें

जहाँ अन्ना हजारे गए

जहाँ अन्ना हजारे गए - वहीँ
बाबा रामदेव प्यारे गए- मेरे तो 
फोकट के  विलायती पैसे
मुफ्त में मारे गए  .

मुझे मेरी डूबी रकम से - कौन
कब और कैसे मिलवाएगा -
क्या कोई सज्जन - कृपा कर के
मुझे ये बताएगा .

अब कौन सा नया बाबा - इस 
अनशन एपिसोड को थोडा
और आगे - बढ़ाएगा .

कुछ अंदाजा है आपको - अब
रामलीला मैदान में - महाभारत का
अगला एपिसोड कौन से नए
कलाकारों द्वारा खेला जाएगा.

कोई है इस जहान में - जो बताये
मैं क्या करूं - अगले अनशनी
बाबा का मुबारक ताज - अब किस
के सर पर धरूँ .




Saturday, June 11, 2011

तू आम है तो आम खा ना यार

तू आम है तो आम खा ना यार -
पर इस पेड़ को छूना मत -
हाथ मत लगा यार .

इस पेड़ में जितने भी आम
आते हैं वे तो बेनागा -
गूंठ्लियों समेत -स्विस बैंक
में जमा कर दिए जाते हैं .

पता भी है खाली जितने पैसे -
ब्याज बट्टे के आते हैं - उतने से  
तेरी आने वाली सात पीढ़ियों के
पाप बिना कुछ किये धुल जाते हैं .

तू तो फिर मजबूर -मजदूर है -
पेड़ तक पहुँचने का रास्ता
अभी तेरे लिए काले -कौसों  दूर है .

बजाय आम खाने के -क्यों
हमारे पेड़ गिनने पर अड़ा है
निन्यानवें के चक्कर में- तू
तो बेकार में ही पड़ा है .

 

सत्य के बूंटे को सिंचिए

सत्य के बूंटे को सिंचिए - और
उसमे खाद डालिए - अच्छे माली
की तरह उसे बड़े जतन- और
बड़े शौक से पालिए .

जो इसके लिए जियेगा - इसकी
राह में मिट जायेगा  -
उसीका जीवन -तो
मरने के बाद भी- औरों के लिए
मील का पत्थर - बन जाएगा
और सदियों तक - दुनिया और
दुनिया वालों के लिए -
बहूत काम आएगा .

सत्य कितना ही कडुआ -
करेला या नीम है - पर
जो इसे पालेगा  और इसके लिए
मिट जाएगा - वही
जनम जन्मान्तरों तक-
इसके मीठे फल खायेगा -और
बरसों बरस -इंसान के रूप में
देवता की मानिंद पूजा जायेगा .

जो सत्य को पुजेगा - वो पायेगा
सत्य से प्रेम तो अपने आप ही  -
उत्पन्न हो जाएगा - वही
तो शाश्वत सच्चा प्रेम -युगों युगों तक 
अमरप्रेम के नाम से जाना जायेगा .

सत्यनामी वृक्ष का फल ही तो प्रेम है -
बाकी सब त्याज्य -और दिखावा
ये दुनिया तो बस फिर -ढोंग
बाजीगरी एक तमाशा  -
खेल या गेम है .


क्षणिकाएँ

इस देश में ख़ास कोई नहीं -
तू सरे आम- आम आदमी की
बात कर - समर से फिर इतना
डरता क्यों है - आज मौका भी
है और दस्तूर भी  है -आजा
दुश्मन से - दो दो हाथ कर .


उड़ चलूं - हवा के संग संग 
तूफानों से छिड़ गयी जंग .
रिमझिम बरसा पल में सावन
कैसा है मौसम मनभावन  . 

उफ़ देखो कितनी गर्मी है 
ए .सी कूलर तो सही यार 
सरकारी बाबू से चलते -
पंखे चलना बेशर्मी हैं .


चिंगारी अभी - लगी तो है


चिंगारी अभी - लगी तो है
उसे कुछ और भड़क जाने दो ,
जरा सा हट के तो खड़ा हो 
हवा को पंखा तो झलाने दो .

अभी कच्चा है - कडुआ होगा
अभी चिड़ियों को इसे खाने दो
समय आने पे पक़ भी जायेगा.
जरा बहार को तो आने दो.

मैं सच नहीं कहता - क्यों की
बहूत कडुआ कुनीन होता है .
की जिसके हाथ में शफा हो बहूत
वो बहूत बढ़िया हकीम होता है.


Wednesday, June 8, 2011

ऐ मेरे गीत तू - अजन्मा रहे तो अच्छा है

ऐ मेरे गीत तू  -
अजन्मा रहे तो अच्छा है
मैं लिख भी दूं  - पर पढ़ेगा कौन
पढ़ा तो फिर - उसे सुनेगा कौन .
सुना तो फिर - इसे गुनेगा कौन .

मैं भी पागल हूँ -जो
देश दुनिया जगाने चला हूँ -सुबह
अपनी नींद तो खुलती नहीं -
अपने इस गीत से -सारे
जहाँ को सोते से उठाने चला हूँ .

छोड़ ये सब लफ्फाजी - तुकबाजी
भ्रूण हत्या पाप है -पर
आज कल तो सब माफ़ है
भले अच्छा तो नहीं लगेगा .
तू भी चैन से सो जा - और
तेरा पडोसी भी - सुबह की छोड़
जिन्दगी भर नहीं जगेगा .





जहाँ - सच्चा प्यार -या

जहाँ - सच्चा प्यार -या
आत्मीयता नहीं होती
वहां शिष्टाचार होता है .

ये - तू को तुम और
तुम को आप बनाता है.
देखने में अच्छा लगता है -
पर काम किसी के नहीं आता है .

प्रीतीभोज में सब्जी नहीं है -ये
शब्दाचार (शिष्टाचार) - तो
बस अचार है - थोडा मान
बाकी बस व्यवहार है -इसीका
नाम शायद शिष्टाचार है

Tuesday, June 7, 2011

ये राख अभी तक गर्म है

ये राख अभी तक गर्म है - जानते हो
आग का जलना ही धर्म है
बहूत अच्छे रहोगे -जो
दूर से ही ताप खाओगे - और
नजदीक नहीं आओगे- खबरदार 
इसे छूना मत - वर्ना जल जाओगे .

वास्तविक आग से - विचारों की
आग - ज्यादा तपाती है .
शोलों सी भड़कती -तडपाती है
जीते जी जिसकी -तपिश
कम नहीं होती - जिस्म शीतल
हो जाए तो - दिल में जल जाती है .

पर बुझती कभी नहीं- चिताओं
तक आपके साथ जाती - और
उसके बाद भी नहीं बुझती -
खुद-बा-खुद दुसरे जिन्दा
जिस्मों में समा जाती है .

 

कल्याणकारी शुभकामनाएं ...!!!!

जीवन -शाश्वत -अमित अटूट
अविरल - अविराम .
जीवन अनंत है ....!!!!!
हर पल - इसका मधुरस
भर भर पीयों - क्षणिक नहीं
भरपूर जियों !!!!!!!

उसी जीवन के लिए -
नव नूतन - शुभ्र और
कल्याणकारी शुभकामनाएं ...!!!!



Monday, June 6, 2011

अब काहे चिल्ल पों मचाते हैं

अब काहे चिल्ल पों  मचाते हैं -
जभी काहे नहीं रोका - चिरैया
चुग रही थी ना -जब
ससुर -तुम्हार खेत .

काहे नहीं - बीच में ' डरावना'
मुखोटा टांगे- लाठी अपनी
तबही काहे नहीं भांजे .

अब खेत की मढैया पर बैठे
काहे रोते -मातम मनाते हैं
खाए हुए दाने - ऐसन काहे
वापस आते हैं .

ओ फसल तो बर्बाद भई- अब
कछु आगेन की सोच - के का
करना है - साहोकार का माथा
फोड़ना है - या के
हाथ मरोड़ के ही छोड़ना है  .

पर तोका बिलकुल भी -
अकल्वा नाही - अरे खाने
को तो चाहिए ना भाई - आइसे
एक एक दाना -छोड़ेगा तो
का बिछाएगा और -
बचुआ तू का ओधेगा .







Sunday, June 5, 2011

सरक यार - हम हैं सरकार

सरक यार - हम हैं
सरकार - बहूत हुआ
अब हम ऐन्ठेंगे -
तेरे और तेरे बाबा के -
सर पर अब हम बैठेंगे .

तू कूँवे नहीं खोदेगा -
तुझे गन्दा पानी -नल
में डाल -पैसे लेकर
पीने को हम देंगे .

मिटटी का दीपक छोड़
खटके से जलने वाली -
छूवो तो पकड़ने वाली -
मीटर से चलने वाली -
बत्ती हम देंगे .

रहने -खाने के लिए -
आखिर गाँव की परेशानी
क्यों सहता है -देख तो सही
ये शहर कितना सुंदर है -इसमें
आके क्यों नहीं रहता है -बस
रहने का टैक्स तुझसे हम लेंगे .

हाजत को जंगल में मत जा-
बस -थोडा सा टैक्स चूका .
घर में बैठ-बैठे फारिग हो जा.

तेरे स्वस्थ का कितना ख्याल है -
पास में ही खैराती हस्पताल है -
सुविधा शुल्क चूका - जा
जाके भारती हो जा - अब जीना
मरना तो डाक्टर -या खुदा
का कमाल है - वैसे भी तेरा
जीना मरना अपने आप में सवाल है .

हम चिंता करेंगे तेरी हर हाल में
एक बार आयेंगे जरुर -मिलने
हर पांचवें साल में - ज्यादा कुछ नहीं
जिन्दा रह गया तो -वोट दे देना.

वर्ना वैसे ही काम चला लेंगे - तू
नहीं तो तेरे बच्चों से वोट डलवा लेंगे .
फिर भी नहीं - काम चला तो
आपातकाल लगा लेंगे .




Saturday, June 4, 2011

ये साला शक्तिशाली अणु -

ये साला शक्तिशाली अणु -
परमाणु क्यों नहीं बनता .

चंद अणु मिलते हैं और -
बन जाते हैं सरदार
और असंख्य अणुओं पे -
करते हैं  प्रहार .

इसे कहते हैं - मेरे यार
आपकी चुनी हुई
अपनी सरकार.

और करती है अपना-
और अपनों का बेडा पार .
तेरी कहाँ है उसे चिंता -
छोड़ भी यार .

'हम' नहीं सुधरेंगे .

मैं कहता हूँ तुम सुधर जाओ
तुम चाहते हो मैं सुधर जाऊं
सब चाहते हैं वे सुधर जाएँ .
पर 'हम' नहीं सुधरेंगे .

याद कर गाँधी के पास
संपत्ति के नाम पे क्या था -
बस एक लंगोटी- एक हाथ में
रोटी - और दूसरे में सोटी.
बाबा के पास ग्यारह -
हजार करोड़ की है बपौती .

ये फ़िल्मी नाटक बंद करो -
खुदको नायक ही बनाना है तो -
कोई स्विस बैंक भारतमें ही खोल लो .

देश का पैसा कम से कम बाहर तो
नहीं जायेगा - ये फार्मूला तुझे
मंत्री संत्री बनाने की राह में -
बहूत काम आएगा .

Thursday, June 2, 2011

थोड़े थोड़े हम सभी बेईमान हैं

थोड़े थोड़े हम सभी बेईमान हैं -तभी तो
इनके हाथ में -आज भ्रष्टाचार की कमान हैं .
हमारे सर पे जब तक सुविधाओं का वितान है
तभी तक पैसों से काम करवाने का विधान है.

आओ रोटी को इनसे दूर कर दें -
बाबा भूखा क्यों रहे -इन्हें
भूखा मरने पर मजबूर कर दें .
काले नोटों को जलालें या खा लें  .
या इटली - ब्रिटेन से अपने -
माई-बाप को बुला लें .

पेट इनका भर नहीं सकता -कोई
किसान इनके लिए -अब
अनाज पैदा कर नहीं सकता .

अब क्या खाओगे मेरे लाल - हमारे
हाथ में तो बस गाँधी की ये लाठी है  -
इससे पेट भर जाए तो परोस दें .
या तुम्हारे मुहं में खोंस दे .

 

क्रांति और क्रांति की भ्रान्ति

 क्रांति और क्रांति की भ्रान्ति -में
फर्क समझ - क्रांति एक उफान है
धीरे धीरे - सुगबुगाहट -बुदबुदाहट
फिर आहट - फिर तूफ़ान आता है .
प्रायोजित कार्यक्रमों से - सिर्फ 
प्याले में पल भर को भाप उठती है - 
और सारा जोश ठंडा हो जाता है .

जिसे भूख से मरना है - चुपचाप
मर जाता है -चीख चीख कर
ढिंढोरा पीट पीट के -मुनादी
नहीं करता आओ- और भूखा
मरने से पहले मुझे बचा लो .
क्रांति -कोई दाल-भात नहीं है यार
जब दिल करे-बना लो खा लो .

फिर बाबा ही क्यों - ?
खुद पर्दों में छुप कर उसे क्यों-
उकसाते और जोश दिलाते हो -
सच्ची हमदर्दी है तो -खुद
सामने क्यों नहीं आते हो .

क्रांति किसी एक फकीर की
जिम्मेदारी नहीं - सबको
सामने लाना होगा - रोकने वाले
कम पड़ जायेंगे - बड़े से बड़े
पत्थर सरक जायेंगे - जिस दिन
हम -तुम -वो , सब सामने आयेंगे .

Wednesday, June 1, 2011

जब अस्तित्व और न्याय के सवाल

जब अस्तित्व और न्याय के सवाल
महत्वपूर्ण हो गए -तब 
हम जंगल से भाग आये थे .
और नए उपवन -कानन सजाये थे

पेड़ -पौधे , जंगली घास को
हमने अनुशासन में रहने के
तरीके-सलीके सिखाये थे .          
घर -गाँव शहर और देश बनाये थे .

आज जिस आम की ड़ाल पर -
नीड़ है मेरा - मेरे सपनो का
अपनों का वहीँ है बसेरा .
इसकी ठंडी छाँव में रहता हूँ -
इसके फल खाता हूँ - कोई पूछे तो
इसी को अपना देश बताता हूँ .

इसकी खुशहाली से खुश -और
इसकी बदहाली देख पागल हो जाता हूँ.
कोई इसके एक पत्ते को भी छुवे -
या फल तोड़े - तो लड़ने मरने को
उतारू हो जाता हूँ .

देश भक्ति किस चिड़िया का नाम है-
कैसी होती है - नहीं जानता .
बस -इतना पता है -अगर ये
पेड़ है तो मैं हूँ - और मेरा अस्तित्व .

मैं अपने नीड़ के लिए जिन्दा हूँ -
और भीष्म की तरह इस पेड़ से जुड़ा हूँ .
मेरा तो यही देश है -सारी दुनिया
पूरा जहान- क्यों की यही पे है
मेरा ये छोटा सा नीड़ - एक कच्चा सा मकान .

मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता-
तुम जो भी दो इसको नाम .
मैं कहा हूँ नहीं जानता - चाहे इसे
तुम हिंदुस्तान कहो या पाकिस्तान .


पूरी रोटी एक ही ग्रास में -

पूरी रोटी एक ही ग्रास में -
और पूरी कविता -
एक ही सांस में -
मत कह -जल्दी क्या है
टुकड़े करके -
धीरे धीरे खा .
रुक रुक -ठहर ठहर कर -
अपनी बात के मायने -
सबको तसल्ली से समझा .

(उन मित्रोको जो कविता
बिना तोड़ या बिना जोड़के
लिखते या कहते हैं )

लड़ना हमे नहीं आता है

लड़ना हमे नहीं आता है -
आमने सामने की जंग में ,
इंसान अक्सर धोखा खाता है.
और बेमौत मारा जाता है .

नए नियम बन गए हैं - अब
युद्ध इंटरनेट पर लड़ा जाता है
ना खून -खराबा ना तीर तलवार -
इस तरह लड़ना सच में
हमे कितना भाता है -तुम्हे
क्या बताएं कितना मजा आता है .

जिसकी बीवी भी नहीं सुनती-
यहाँ आ जाता है -और
सबको खरी खरी- सुना जाता है .
धन्य करतार -ये सब
देखने सुनने में ही -हमारा तो
पूरा दिन चला जाता है .

किसी को भी गाली दो -निकाल लो
मन की भड़ास -सम्पूर्ण वेग से .
किसी एक से नहीं -सारी
दुनिया जहान हर एक से -कोई
आप का कोई क्या कर लेगा ?
शर्म हुई तो चुल्लू भर पानी में मर लेगा .

हमारा भी धर्म है

हमारा भी धर्म है -चाहे बोटी-रोटी रुमाली मत दो
हाँ जी हम कुत्ते हैं - पर गद्दार को ये गाली मत दो .

वो देखो - एक बड़ा आदमी

वो देखो - एक बड़ा आदमी
हमारी पीड़ा से मर रहा है .
कितना ख़ास होते हुए भी -
आम आदमी होने का -कितना
सफल नाटक कर रहा है .

कभी सुना- देखा कहीं 
अपनी तिजोरी भरी हों -और
तेरी एक एक कोडी तुझे
वापिस दिलवाने के लिए -
देशी सरकार और -विदेशी
बेंकों से कितना आग्रह कर रहा है .

नींद भले किसी और की हो

नींद भले किसी और की हो 
पर आँखें अपनी होनी चाहिए .
जिन्दगी चाहे छोटी हो -बहूत
उधार के सही- पर सपने होने चाहिये .

 हाथ में ना हो भले आज -कल के 
खो जाने का मन में डर होना चाहिए  .
कल की चिंता - में मर ना जाये कही -
आज जीने का ऐसा हुनर होना चाहिए .

दहशतें घुट घुट के मर जाएँ ,
दुश्मन सभी आत्महत्या कर जाएँ ,
तुम भी वापिस लौट जाओ -अब 
ख़ुशी ख़ुशी हम भी अपने घर जाएँ .




 

हम कमजोर -नहीं हैं जो तुमसे

हम कमजोर -नहीं हैं जो तुमसे
बार बार प्यार-इकरार की बात करते हैं .
जली कटी - रार तकरार की नहीं
प्यार -मनुहार की बात करते हैं .

और तो बात बात में जंग की और
तीर तलवार की बात करते हैं.
पूरे जहाँ में एक हम ही हैं जो -तुमसे
हरदम बस प्यार की बात करते हैं .

(पाकिस्तानी हुक्मरानों को समर्पित)