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Wednesday, June 1, 2011

जब अस्तित्व और न्याय के सवाल

जब अस्तित्व और न्याय के सवाल
महत्वपूर्ण हो गए -तब 
हम जंगल से भाग आये थे .
और नए उपवन -कानन सजाये थे

पेड़ -पौधे , जंगली घास को
हमने अनुशासन में रहने के
तरीके-सलीके सिखाये थे .          
घर -गाँव शहर और देश बनाये थे .

आज जिस आम की ड़ाल पर -
नीड़ है मेरा - मेरे सपनो का
अपनों का वहीँ है बसेरा .
इसकी ठंडी छाँव में रहता हूँ -
इसके फल खाता हूँ - कोई पूछे तो
इसी को अपना देश बताता हूँ .

इसकी खुशहाली से खुश -और
इसकी बदहाली देख पागल हो जाता हूँ.
कोई इसके एक पत्ते को भी छुवे -
या फल तोड़े - तो लड़ने मरने को
उतारू हो जाता हूँ .

देश भक्ति किस चिड़िया का नाम है-
कैसी होती है - नहीं जानता .
बस -इतना पता है -अगर ये
पेड़ है तो मैं हूँ - और मेरा अस्तित्व .

मैं अपने नीड़ के लिए जिन्दा हूँ -
और भीष्म की तरह इस पेड़ से जुड़ा हूँ .
मेरा तो यही देश है -सारी दुनिया
पूरा जहान- क्यों की यही पे है
मेरा ये छोटा सा नीड़ - एक कच्चा सा मकान .

मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता-
तुम जो भी दो इसको नाम .
मैं कहा हूँ नहीं जानता - चाहे इसे
तुम हिंदुस्तान कहो या पाकिस्तान .


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