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Thursday, June 16, 2011

ये तुमने क्या किया

ये तुमने क्या किया .
जो करोड़ों लोगों के सूरज
बनके उभरते- तो तेरे सहारे -
हम लोग जीते  -तुम
ना रहते तो भी राजघाट पर
राष्ट्रीय नायक की मौत मरते .

पर ८ दिन की भूख तेरे-
सारे कसबल निकाल गयी .
देश को फिर वही -अपने
पुराने ढरे पर ड़ाल गयी .

यूँ तो सूरज की रौशनी हो - फिर भी 
आधा जगत - अँधेरा रह जाता है
टिमटिमाता ही सही - माटी
का दीपक हमसे बहूत -
कुछ कह जाता है .

होना तो यही था की - एक एक
दीपक हर घर से लाना चाहिए था.
असंख्य दीप मालाओं से -
इस देश को दीवाली की -तरह
हर रोज जगमगाना चाहिए था .

पर अब मैं क्या करूं - किस से
कहूं की कमान थाम ले - जो
इस देश को ही नहीं -पूरी
दुनिया जहाँ की हाथ में लगाम ले . 

ना जाने क्यों मेरी सारी उम्मीदें - हर बार
बीच चौरास्ते पर दम तोड़ देती हैं.
तूफानी धाराएँ - मेरी किस्ती की
दिशा को राम जाने -
किस तरफ मोड़  देती हैं .   

(बाबा रामदेव के अनशन की समाप्ति के सन्दर्भ में)

1 comment:

  1. ना जाने क्यों मेरी सारी उम्मीदें - हर बार
    बीच चौरास्ते पर दम तोड़ देती हैं.
    तूफानी धाराएँ - मेरी किस्ती की
    दिशाओं को राम जाने -
    किस तरफ मोड़ देती हैं .

    ....bahut marmsparshee prastuti..bahut sundar

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