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Monday, March 26, 2012

जब खो जाते हैं हम

कितने बेबस - लाचार से
हो जाते हैं हम - कोई ढूँढता नहीं
जब खो जाते हैं हम .

ये देश घर - हमवतन 
बेमानी हो जाते हैं - जब 
हमारे होने के मायने -
सचमुच खो जाते हैं .

पूछता नही जब कोई -
लाचार नारद से हो जाते हैं 
नारायण-लीला में उलझे 
जाने किस रूपसी की -
याद में खो जाते हैं .

ये भी कोई जिन्दगी है यार

ये भी कोई जिन्दगी है यार 
हाथ में रोटी - जिसके लिए 
आदमी की - हर आदमी से
हर वक्त तकरार है - या 
फिर झूठा प्यार है .

उम्रभर - पेट के लिए खटना
यहाँ से वहां - दर दर भागते फिरना
मरते मरते जीना - और यहाँ
जीते जी मरना .

अरे - छोड़ भी एक दिन 
काला कौवा - ये रोटी ले जाएगा
यमराज ये मांस का पिंड
एक एक बोटी ले जाएगा .    

तू कोई गरीब गुरबा - कंगाल नहीं है 
ऐसा नहीं - की तू मालामाल नहीं है.
'उसने' किसी को - मुफलिस नहीं भेजा
किसी के भी पास - यहाँ प्रेम का 
कोई लम्बा चौड़ा - अकाल नहीं है .

छीनकर - इक्कठा करने से 
प्यार बांटना - ज्यादा आसान है
इसी से दुनिया चलती है - यही
उस परमात्मा का फरमान है . 

Saturday, March 24, 2012

मेरे आज के गर्भ से

मेरे आज के गर्भ से -
झांकता हुआ कल - सोचता रहा 
जन्म लूँगा तो - मार दिया जाऊंगा .

सीधे आज से - कल हो जाऊंगा .
जितना आश्वस्त - आज यहाँ हूँ 
ऐसी जगह और कहाँ पाऊंगा .

परसों की बात छोडो यार -
कल ही कहाँ पूरा मिला .
हम वो हैं - जिन्हें ये ससुरा 
आज भी अधूरा मिला .

Saturday, March 17, 2012

मुक्तक

"यूँ ना रहते दर्द से -अपने हाथों को मलते 
'मूव' होती - लगाते और काम पर चलते " 


क्या बताएं - हम कैसे बड़े होते हैं
रेंगते हुए - पैरों पर कैसे खड़े होते हैं .
बस भीड़ में मिलती है जरा सी राहत
वर्ना दिलमे तनहाइयों के शूल गड़े होते हैं .


मैं आंसुओं की बूँद में - सागर ढूँढता रहा
ये बादल ये हवा - ना जाने कहाँ ले आई
खंगाल डाली सारी दुनिया - जर्रे जर्रे में
उम्र भर मैं खुद को - खुदा सा ढूँढता रहा .


हकीकत हूँ या के ख्वाब हूँ  मैं

तेरे हर बात का - जवाब हूँ मैं .

जर्रा हो के भी आफताब हूँ मैं .

मानले फिर भी लाज़वाब हूँ मैं .

बहूत खुश था - जो तुमको पाया था 
यही तो अपना इकलोता सरमाया था 
तू है तो मैं हूँ - वर्ना अपना भी दोस्त 
देश से कांग्रेस की तरह सफाया था .

मैं हकीकत हूँ - लिपट कर मिलो हमसे 
मैं कोई ख्वाब तो नहीं - की टूट जाऊँगा . 

ख़त आया नहीं - पूरे सात रोज़ हो गए . 
यार ये डाकिये - सन्डे को क्यों नहीं आते  .

बस इतना बता - फूल के आक्रोश को मैं कैसे सहूँगा . 
बीच से तोड़ भी दोगे तो - शीशा नहीं पत्थर ही रहूँगा . 

चाँद निकला नहीं - तुम खुद ही अफताब हुई

आज क्या बात है - साकी ही खुद शराब हुई .

रात के ख्वाब बनके अंधेरों में जीये तो क्या - जिए 
कभी हमसे दिन के उजालों में आके मिलो -तो सही. 

 दुनिया का क्या - दुनिया को कहने दो .
मैं बेनाम सही  - मुझे बेनाम ही रहने दो .

ख़त में तुमने कुछ लिखा ही नहीं - फिर भी 
समझ गया मैं तेरे बिन लिखे- कहे जज्बात . 

कमीनी हसरतें तो बस मेरी बदनाम होनी थी. 
हर नजर में नक्श उसकी ही तस्वीर थी यारो .

यहाँ वहां मत देख - जरा अन्दर तो अपने झाँक
प्यार दे रहा है तेरे दिल में भी धीमी धीमी आंच .
ये प्रेम का शास्त्र है - पढ़ सुन मत - गुण प्यारे 
ये दिल की आवाज़ है - ध्यान से जरा सुन प्यारे .

मौत को पहना दें - नकेल 
हम ऐसा जिगर रखते हैं . 
जिन्दगी झूकी रहे चौखट पर - 
हम ऐसा हुनर रखते हैं .


पत्थरों से ना पूछो - उनकी कहानी ऐ दोस्त
जो भी आता है - ठोकर लगाता आता है .


दिलकी कोशिशें - रंग लाने लगी
जिन्दगी दूर थी पास आने लगी
फिर से किसी के लिए -दोस्त
आज जीने की चाह सताने लगी . 






Sunday, March 11, 2012

जाओ यार - वापिस लौट जाओ

जाओ यार - वापिस लौट जाओ
रास्ते बटोहियों के लिए होते हैं -
जो मंजिल तक चलते -पहुँच जाते हैं
फिर लोग चलने से - आखिर क्यों कतराते हैं .

मेरी लिए मंजिल - और रास्ते
दोनों एक ही हैं - चलता हूँ जरुर
पर कहीं पहुँचने के लिए नहीं
चलता हूँ - बस चलना है
फ़िक्र नहीं की मंजिल -
मिले या ना मिले.

जब तक चलोगे नहीं - जानोगे नहीं
मंजिल किस चिड़िया का - नाम है
कभी जानो - मानोगे नहीं -
आम उगाया खाया -नहीं तो
उसका स्वाद कैसे पहचानोगे .

तू यार बस चल - बेफिक्र मस्त -
चलना अपना ध्येय बना
क्या खोएगा - क्या मिलेगा
इसकी चिंता बिलकुल भूल जा .

नन्हे टिमटिम करते तारे

सारी सारी रात बेचैन से -
नन्हे टिमटिम करते तारे
माँ और ममता की तलाश में -
आकाश में मंडराते घूमते हैं .

और सुबह होते होते - किसी 
ममता भरी माँ का सूना
आँचल देख - उसमे समां जाते हैं .
बच्चे बन उसके घर आ जाते हैं .
और नन्हे तारे से - बन जाते हैं
उसके लाडले चंदा - सूरज .

हर रात ये खेल - आज भी 
अबाध गति से - गुपचुप चलता है .
हर तारा - किसी माँ का
चंदा सूरज बनने -रात को
आकाश में निकलता है .


Monday, March 5, 2012

जिन्दगी हो - पर बेवजह बेकार ना हो

जिन्दगी हो - पर बेवजह बेकार ना हो
लक्ष्य हो -लिजलिजी बेसरोकार ना हो .

सेकड़ों यार हों - चाहे दुश्मन चार ना हो
उतार पातळ हो - पर चढाई पहाड़ ना हों .

लड़ना पड़े तो - जीत हो पर हार ना हो
प्यार हो ना भले - पर किसी से रार ना हो .

वतन हो हिंदोस्तां - मुल्क कोई फिरंगी बेकार ना हो
क्या रहें जाकर वहां - जहाँ कोई तीज त्यौहार ना हो.

Thursday, March 1, 2012

मुक्तक

चाँद बैरी था - मगर इस चांदनी को क्या कहें
टहलती है छत पर - उस महजबीं के साथ साथ .



फुर्सत से घड़ा है - खुदा ने तुझे ऐ दोस्त 
हमारा क्या है - हम तो ठेके पे बनाये गए .


मैं नहीं - तू सही - या कोई और कारसाज़ .
यहीं - या वहीँ या फिर और कहीं .
कहीं भी हो पर कोई तो हो जो - 
बदले दे - इस मगरूर वक्त के मिज़ाज.
अभी भी वक्त है थोडा सा - संभल जा
बेदर्द जहाँ है - चुपके से निकल जा .
हवाओं की दिशाएं - बातों से नहीं बदलती
ये दुनिया तेरे मेरे कहने से नहीं चलती .
निजाम बदलेगा तो हम भी बदल जायेंगे
मेरा चेहरा भी दुनिया में शामिल है यार .
हुकूमत बदलने से कहीं तस्वीर बदलती है .
अंगूठे की स्याही से कहाँ तकदीर बदलती है 

नहीं बदलते हालाते - जिन्दगी 

बस मौसम ही बदल जाते हैं .
एक ही भाषा - जो उसको सुहाय  
प्रेम से पुकार है  -प्रेम ही उपाय  .
यंत्र -तंत्र -मन्त्र उसे ना जरा भाए
बहेलिया नहीं तू - ना वो चिड़िया 
जाल में फंसे वो - हाथ में ना आये  .
मन से पुकार ले - तुरत चला आये .
  
क्या हुआ जो समर - अभी बाकी है 
हिजड़ों की फ़ौज को - कल की छोडिये 
आज भी फुल फुल माफ़ी है.
रात इतनी पी - की रात मुंह ढक के सो गयी
पता ही नहीं चला - जाने कब सुबह हो गयी
जिन्दगी भर ना जाने - हम किस ख्वाब में जीते रहे
होश की किसको फ़िक्र थी - जाम भरते रहे पीते रहे .
जागो - कब तलक सपनों - में रहिएगा
'जगतबाप' को आज कैसे कसाई कहियेगा .
'जगत बाप' की छोडो उनके वंशजों को तो झेल लो
मुल्क इनके लिए गेंद हैं - इससे जैसे चाहे खेल लो .