चौखट से आये उनकी मायूसी लिए हुए
सब लोग कह रहे थे - बड़े मेहरबान हैं .
वो लौट आये कोई ठिकाना नहीं मिला
जो ख्वाब मुद्दतों से मेरे लापता थे यार .
तस्वीर देख कर कोई शिकवा नहीं रहा
यूँ दोस्ती पक्की हुई इक नाज़नीन के साथ
उनकी जुबान में - उन्हें समझा नहीं सका
खुद समझ जाएँगें - मुझे ऐसा नहीं लगा .
लगते हैं फूल दरख़्त पर पैसा नहीं लगता
होता हो कभी - पर हमें ऐसा नहीं लगता .
इक दिन इसी से आएगी वो महक लाजवाब
इस प्यार के दरखत को मुरझाने ना दीजिये .
यूँ दोस्ती की बात करते लोग तो मिले
हसीं यार तुमसे कोई बेहतर नहीं मिला .
मजहब के नाम से सिजदे बहूत किये
भगवान सा लगे वो पत्थर नहीं मिला .
अब सो भी जाओ रात - सिरहाने पे आ खड़ी
लायी है दिलकश खवाब लुभाने के लिए यार .
जलते हैं ठंडी बर्फ पर - मेरे थके कदम
वो कह रहें हैं - पाँव नंगे चल लिया करो .
ना पूछो मुझसे तुम मेरी कहानी
किसी किरदार से मिलती नहीं है .
अकेला ही रहा मैं इस सफ़र में
ये एकालाप कह कितना सही है .
भूल जा उनको - भूलाएँ हैं तुझे जो
याद करने का नहीं -अच्छा ये मौसम .
आते हैं चुपके से - वो इस तरह यारो
वो कब चले गए हमे मालूम ही नहीं .
देखा न जिसने चाँद - उसको क्या पता यारो
देखा है हमने चाँद को - इक मुद्दतों के बाद .
देख ली हमने तेरी तस्वीर यारा
अब तो हटा दो हिजाब चेहरे से .
करो आज़ाद अब - माहेताब को
करदो रिहा बादलों के पहरे से .
आज फिर - जम्हाईयाँ आने लगी हैं
अब बदलने को खड़ा तैयार मौसम .
यूँ हरेक दर्द छिपा लेते हैं
छिपाने वाले -
खुद पे हंस लेते हैं -
दुनिया को हंसाने वाले .
चलो जब हो ही गयी - मान ली
फिर कैसी खता - कैसी रार .
यही तो बेपनाह महुब्बत है
इसी जज्बात को कहते हैं प्यार .
बिछुड़ना और फिर मिलना
यूँ मिलकर के बिछुड़ जाना
यही तो जिन्दगी है दोस्त -
तेरा आना - तेरा जाना .
किसी की तन्हाइयों को
आज भी इंतज़ार है मेरा
अजीब शय है महूब्ब्त यार
मिल गयी - तो दिल गया
ना मिले तो जान गई .
रूठे - तो रूठ जाने दो
अब वहां जाके उन्हें
मनाये कौन .
दर्द के अंतरे लिखे हैं
यहाँ हैं सब मौन -
अश्कों में भीगे
गीत यार गाये कौन .
मिली - मिली ना मिली - नजर ही तो है
हम इधर हैं यार तो कोई उधर भी तो है .
शब्द गर साथ ना दें बिनकहे समझ जाना
तुम मेरे दिल की हर बात जानते हो यार .
भटक जाते हैं कई - शब्द जुबाँ पे आते कैसे
दिलमें रह जाते हैं अन्छुवे भाव बताते कैसे .
कौन हूँ मैं - कोई
इन्हें बताओ तो .
कभी चुपके से
मेरे दिल में
उतर जाओ तो .
जुबाँ से ना कहो तो
कोई बात नहीं .
जो मैं पसंद हूँ तुम्हें
जरा सा मुस्कुराओ तो .
दुल्हनें कम हो रही मिलती नहीं
दिन ब दिन कम हो रही हैं लड़कियां
झुलस जाती - मौसमों की मार से
असमय कम हो रहीं हैं लड़कियां .
आज लहरों में बहा सा देखिये
जलोधर है फिर भी प्यासा देखिये
बढ़ रही इंसान की आशा यहाँ -
रोज़ आशा में निराशा देखिये .
अब मीनारों पर मीनारें देखिये
आज धरती पर सितारे देखिये .
हौसले इंसान की क्या बात है
बीच सागर में किनारे देखिये .
वो लौट आये कोई ठिकाना नहीं मिला
जो ख्वाब मुद्दतों से मेरे लापता थे यार .
बात तो बनी - मगर
कुछ बन ना पायी बात .
हरेक शेर - शेर सा हो
क्या जरुरी है .
ठोकर सम्भल के खाइये - हरेक मोडपर
कैसे पता चले की - कब ये मोड़ आएगा .
जो जानता तो मैं कभी आता नहीं यहाँ
किसको पता - वो अपना पता छोड़ जाएगा .
इक आरजू रही की कोई आरजू ना हो
बेआरजू होना - भी आरजू ही तो है जनाब .
ठोकर ही बना देती हैं हर इंसान को ठाकुर
खुद खाइये अजमाइये - बन जाइये ठाकुर .
टूटे जो ख्वाब - दिल हुआ उदास कुछ पल को
फिर जिन्दगी ने दे दिए कुछ ख्वाब नए और .
माया पुरानी बात - अब माया नहीं रही
पर कागज़ी गाँधी से कोई बच नहीं सका .
उस गोल गुम्बद में - कठिन पहरे बहूत हैं यार
जनपथ से होकर राजपथ जाते हैं फिर भी लोग .
नजरों को अपनी फासले पर रख लिया करो
ट्रैफिक है जाम - किसी से लड़ जाए ना कहीं .
अब आपसे - कैसी शिकायत
क्या गिला करना .
दिल ना लगे - अकेले तो
यार मिल लिया करना .
कोई आशा नहीं - उमंग नहीं
रहें तनहा - किसी का संग नहीं
जिन्दगी यूँही गुजरी अकेले -
इस दिल में कोई बसा ही नहीं
राजपथ सा खुला बड़ा - जिसमें
गली कोई भी यारो तंग नहीं .
गुमशुदा - बेपता से लोग भी मिले जिनका
जिस्म ज़िंदा था मगर रूह लापता थी यार .
बहूत उंचा है गगन - और डोर बहूत छोटी है
फिर भी उडती है हवाओं में -उमंगों की पतंग .
मैं लिख रहा हूँ - की लिखना है मुझे
जिन्दगी की किताब है - कोई गीत नहीं .
पढ़ेगा कौन - इसे क्या पता यारो
कोई हमदम - अपना कोई मीत नहीं .
जो चलता तेज़ - तो
मगरूर वक्त को पकड़ लेता .
मेरी रफ़्तार जरा कम थी - यार
वर्ना मैं कब का गिर गया होता .
मेरे शेरो में अक्सर जिक्र जिनका आता है
वो कौन हैं - कसम से जानता नहीं मैं यार .
खुदा खुद हैरान की दुनिया को बनाए कैसे
एक नारी को बनाया और दुनिया बन गयी .
कोई अच्छी बात करो
क्या सत्ता के तम्बू से
हरदम छेडछाड़ ...कभी तो
कुछ नया सोचो यार .
खुद को बिखेरना आसान था बहूत .
समेटने में सारी उम्र निकल गयी .
अब नहीं तो और कब
जागोगे प्यारे नींद से
हाकिमों की थपकियाँ
चांटे सी लगती हैं यहाँ .
लिख रहा था -
लिख रहा हूँ .
और लिखूंगा जरुर .
जुर्म की वो दास्ताने -
नक्श मेरे दिल में हैं .
पाँव चलते नहीं - ज्यादा ऐ दोस्त
बस दिल हर समय सफ़र पे रहा .