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Thursday, February 28, 2013

मेरा एक छोटा सा गाँव हैं

जहाँ धुप है ना छाँव हैं 
सुरमई घाटी में 
बेतरतीब सा पसरा - 
मेरा एक छोटा सा गाँव हैं .

सपने लेता हूँ - वहां 
उडके पहुँच जाने के .
मेरी मजबूरियां मुझे 
रोकती हैं . 

पर मेरा -
दिल मेरे पाँव -
सब रास्ता जानते हैं .
एक एक पत्थर -
पगडंडियाँ पहचानते हैं .

जलावतन सा -
वापिसी - रिहाई की
बात जोहता हूँ -
मुमकिन है - जहाँ
की मिटटी है - वहीं की
मिटटी में मिल जाए .

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