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Saturday, February 2, 2013

दिल नहीं लगता

जबसे गयी बहार - इस गुलशन को छोड़ कर 
सच मान  - अब यहाँ पर दिल नहीं लगता .

कांटे भी मेहरबान थे - फूलों में भी था प्यार 
तुम क्या गए की - सारी फुलवारी हुई बेकार .

अब और क्या कहें - तुम्हें आजाओ लौटकर 
तेरे बिना - संसार में अब दिल नहीं लगता .

पंछी भी उड़ गए सभी जिस पेड़ से जालिम 
हम वो दरख्त हैं - जहाँ कोई गुल नहीं लगता .

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