जबसे गयी बहार - इस गुलशन को छोड़ कर
सच मान - अब यहाँ पर दिल नहीं लगता .
कांटे भी मेहरबान थे - फूलों में भी था प्यार
तुम क्या गए की - सारी फुलवारी हुई बेकार .
अब और क्या कहें - तुम्हें आजाओ लौटकर
तेरे बिना - संसार में अब दिल नहीं लगता .
पंछी भी उड़ गए सभी जिस पेड़ से जालिम
हम वो दरख्त हैं - जहाँ कोई गुल नहीं लगता .
सच मान - अब यहाँ पर दिल नहीं लगता .
कांटे भी मेहरबान थे - फूलों में भी था प्यार
तुम क्या गए की - सारी फुलवारी हुई बेकार .
अब और क्या कहें - तुम्हें आजाओ लौटकर
तेरे बिना - संसार में अब दिल नहीं लगता .
पंछी भी उड़ गए सभी जिस पेड़ से जालिम
हम वो दरख्त हैं - जहाँ कोई गुल नहीं लगता .
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