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Thursday, February 28, 2013

क्षणिकाएं

चौखट से आये उनकी मायूसी लिए हुए 
सब लोग कह रहे थे - बड़े मेहरबान हैं .

वो लौट आये कोई ठिकाना नहीं मिला 
जो ख्वाब मुद्दतों से मेरे लापता थे यार . 

तस्वीर देख कर कोई शिकवा नहीं रहा 
यूँ दोस्ती पक्की हुई इक नाज़नीन के साथ 

उनकी जुबान में - उन्हें समझा नहीं सका 
खुद समझ जाएँगें - मुझे ऐसा नहीं लगा .

लगते हैं फूल दरख़्त पर पैसा नहीं लगता 
होता हो कभी - पर हमें ऐसा नहीं लगता .

इक दिन इसी से आएगी वो महक लाजवाब 
इस प्यार के दरखत को मुरझाने ना दीजिये .

यूँ दोस्ती की बात करते लोग तो मिले 
हसीं यार तुमसे कोई बेहतर नहीं मिला .
मजहब के नाम से सिजदे बहूत किये 
भगवान सा लगे वो पत्थर नहीं मिला .

अब सो भी जाओ रात - सिरहाने पे आ खड़ी 
लायी है दिलकश खवाब लुभाने के लिए यार .

जलते हैं ठंडी बर्फ पर - मेरे थके कदम 
वो कह रहें हैं - पाँव नंगे चल लिया करो .

ना पूछो मुझसे तुम मेरी कहानी 
किसी किरदार से मिलती नहीं है .
अकेला ही रहा मैं इस सफ़र में 
ये एकालाप कह कितना सही है .

भूल जा उनको - भूलाएँ हैं तुझे जो 
याद करने का नहीं -अच्छा ये मौसम .

आते हैं चुपके से - वो इस तरह यारो 
वो कब चले गए हमे मालूम ही नहीं .

देखा न जिसने चाँद - उसको क्या पता यारो 
देखा है हमने चाँद को - इक मुद्दतों के बाद .

देख ली हमने तेरी तस्वीर यारा 
अब तो हटा दो हिजाब चेहरे से .
करो आज़ाद अब - माहेताब को 
करदो रिहा बादलों के पहरे से .

आज फिर - जम्हाईयाँ आने लगी हैं 
अब बदलने को खड़ा तैयार मौसम .

यूँ हरेक दर्द छिपा लेते हैं 
छिपाने वाले - 
खुद पे हंस लेते हैं -
दुनिया को हंसाने वाले .

चलो जब हो ही गयी - मान ली 
फिर कैसी खता - कैसी रार .
यही तो बेपनाह महुब्बत है 
इसी जज्बात को कहते हैं प्यार .

बिछुड़ना और फिर मिलना 
यूँ मिलकर के बिछुड़ जाना 
यही तो जिन्दगी है दोस्त -
तेरा आना - तेरा जाना .

किसी की तन्हाइयों को 
आज भी इंतज़ार है मेरा

अजीब शय है महूब्ब्त यार 
मिल गयी - तो दिल गया 
ना मिले तो जान गई .


रूठे - तो रूठ जाने दो
अब वहां जाके उन्हें
मनाये कौन .
दर्द के अंतरे लिखे हैं
यहाँ हैं सब मौन -
अश्कों में भीगे
गीत यार गाये कौन .

मिली - मिली ना मिली - नजर ही तो है 
हम इधर हैं यार तो कोई उधर भी तो है .

शब्द गर साथ ना दें बिनकहे समझ जाना 
तुम मेरे दिल की हर बात जानते हो यार .

भटक जाते हैं कई - शब्द जुबाँ पे आते कैसे 
दिलमें रह जाते हैं अन्छुवे भाव बताते कैसे .

कौन हूँ मैं - कोई 
इन्हें बताओ तो .
कभी चुपके से 
मेरे दिल में 
उतर जाओ तो .
जुबाँ से ना कहो तो 
कोई बात नहीं .
जो मैं पसंद हूँ तुम्हें 
जरा सा मुस्कुराओ तो .

दुल्हनें कम हो रही मिलती नहीं
दिन ब दिन कम हो रही हैं लड़कियां 
झुलस जाती - मौसमों की मार से 
असमय कम हो रहीं हैं लड़कियां .

आज लहरों में बहा सा देखिये 
जलोधर है फिर भी प्यासा देखिये 
बढ़ रही इंसान की आशा यहाँ -
रोज़ आशा में निराशा देखिये .

अब मीनारों पर मीनारें देखिये 
आज धरती पर सितारे देखिये .
हौसले इंसान की क्या बात है 
बीच सागर में किनारे देखिये .

वो लौट आये कोई ठिकाना नहीं मिला 
जो ख्वाब मुद्दतों से मेरे लापता थे यार . 

बात तो बनी - मगर 
कुछ बन ना पायी बात .
हरेक शेर - शेर सा हो
क्या जरुरी है .

ठोकर सम्भल के खाइये - हरेक मोडपर 
कैसे पता चले की - कब ये मोड़ आएगा .
जो जानता तो मैं कभी आता नहीं यहाँ 
किसको पता - वो अपना पता छोड़ जाएगा .

इक आरजू रही की कोई आरजू ना हो 
बेआरजू होना - भी आरजू ही तो है जनाब .

ठोकर ही बना देती हैं हर इंसान को ठाकुर 
खुद खाइये अजमाइये - बन जाइये ठाकुर .

टूटे जो ख्वाब - दिल हुआ उदास कुछ पल को 
फिर जिन्दगी ने दे दिए कुछ ख्वाब नए और .

माया पुरानी बात - अब माया नहीं रही 
पर कागज़ी गाँधी से कोई बच नहीं सका .

उस गोल गुम्बद में - कठिन पहरे बहूत हैं यार 
जनपथ से होकर राजपथ जाते हैं फिर भी लोग .

नजरों को अपनी फासले पर रख लिया करो 
ट्रैफिक है जाम - किसी से लड़ जाए ना कहीं .


अब आपसे - कैसी शिकायत 
क्या गिला करना .
दिल ना लगे - अकेले तो 
यार मिल लिया करना .

कोई आशा नहीं - उमंग नहीं 
रहें तनहा - किसी का संग नहीं 
जिन्दगी यूँही गुजरी अकेले - 
इस दिल में कोई बसा ही नहीं 
राजपथ सा खुला बड़ा - जिसमें 
गली कोई भी यारो तंग नहीं .

गुमशुदा - बेपता से लोग भी मिले जिनका 
जिस्म ज़िंदा था मगर रूह लापता थी यार .

बहूत उंचा है गगन - और डोर बहूत छोटी है 
फिर भी उडती है हवाओं में -उमंगों की पतंग .

मैं लिख रहा हूँ - की लिखना है मुझे 
जिन्दगी की किताब है - कोई गीत नहीं .
पढ़ेगा कौन - इसे क्या पता यारो 
कोई हमदम - अपना कोई मीत नहीं .

जो चलता तेज़ - तो 
मगरूर वक्त को पकड़ लेता . 
मेरी रफ़्तार जरा कम थी - यार 
वर्ना मैं कब का गिर गया होता .

मेरे शेरो में अक्सर जिक्र जिनका आता है 
वो कौन हैं - कसम से जानता नहीं मैं यार .

खुदा खुद हैरान की दुनिया को बनाए कैसे 
एक नारी को बनाया और दुनिया बन गयी .

कोई अच्छी बात करो 
क्या सत्ता के तम्बू से 
हरदम छेडछाड़ ...कभी तो 
कुछ नया सोचो यार .

खुद को बिखेरना आसान था बहूत . 
समेटने में सारी उम्र निकल गयी .

अब नहीं तो और कब 
जागोगे प्यारे नींद से 
हाकिमों की थपकियाँ 
चांटे सी लगती हैं यहाँ .

लिख रहा था - 
लिख रहा हूँ .
और लिखूंगा जरुर .
जुर्म की वो दास्ताने - 
नक्श मेरे दिल में हैं .

पाँव चलते नहीं - ज्यादा ऐ दोस्त 
बस दिल हर समय सफ़र पे रहा . 








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