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Monday, January 17, 2011

अब मुमकिन नहीं .

तू कैसे रोक सकता है -
इन बहती हवाओं को .
इन्हें मुठी में कैद करना
अब मुमकिन नहीं .

ये विलायती कीकर -
अब तो पुरे देश में छा गए ,
जिन्हें एक षड्यंत्र के तहद -
अंग्रेज यहाँ लगा गए .

तू चाहे भी तो इन्हें निर्मूल नहीं कर सकता -
अपने नीम पीपल काट दे-जला दे
पर ये कैंसर की कोशिकाएं -अब
मरने वाली नहीं -
एक से अनंत हो जाएँगी -पर
ये मुल्क छोड़ कर कहीं नहीं  जायेंगी .

ये बचकानी सोच

छोड़ ये बचकानी सोच ,
कुछ नया रच - जो अलग
सा लगे - ज़माने को .
सुनाना बंद कर अब -
तेरे मेरे पुराने फसाने को .

ये फ़िल्मी तारिकाओं के किस्से ,
तेरे मेरे जीवन के कहाँ हैं हिस्से
रंगीन तितली से - बेहतर है
घर की दीवार की मकड़ी -
कम के कम घर के ख्वाब तो बुनती है .
खाने को तेरे दुश्मन -बन गए
कीट-पतंगों को चुनती है .

इन सरमायेदारों के अलावों की आग
घर तो जला देगी लेकिन -
तेरे चुलेह तो क्या -घर के दिए भी
नहीं जला सकती .
ये तेरे किसी काम नहीं आ सकती .

इन सरकारी भांडों से -बस संसद में
ढोल के साथ भांगड़ा करवालो -
अमरसिंह हो तो -घर बुलवा के
नचवा लो -ये क्या हरेंगे तेरी पीर
क्या बदलेंगे तेरी मेरी तकदीर .

खेल नहीं है जीवन-और
दर्शक नहीं हैं - हम
कोई भी जीत जाए -क्या फर्क पड़ता है -
खेलने वाले -घर भर रहें हैं -
तुझे मुझे क्या निहाल कर रहें हैं .

अरे जाग जा प्यारे -ये सुबह की पुरवाई
तुझे यूँ ही थपकियाँ देकर सुलायेगी ही ,
पर बहूत सो चुका -सपनों के पीछे मत भाग
सपनो से देश दुनिया घर नहीं चलते ,
टूट जाएँ तो उम्र निकल जाएगी
आँख मलते-मलते .

प्रतीक्षा पूरी होगी

प्रतीक्षा पूरी होगी जरूर ,
साधना व्यर्थ नहीं जाएगी .
खुशिओं की बारात -
इसी घर, दहलीज से निकलेगी.
मन को थाम के रख रख-
इसे यूं ही खुशियाँ मनाने दे .

अरे दुःख-परेशानियों के दौर
शाश्वत नहीं हैं - इन्हें एक दिन
ख़तम होना है ,
इन्हें ख़तम हो जाने दे .

धीरज रख -प्रेम सखा
एक दिन - जरूर आएगा .
होली दीवाली सभी -
संग संग लाएगा ,
मन को सतरंगी रंग बखेरने दे -
दीपमाला सजाने दे .

परेशानियों से मत घबरा -
इन्हें यूँ ही घबरा के
मर जाने दे .

कभी हर कहीं मैं था -

कभी हर कहीं मैं था -
तुम कहीं कहीं -
पर आज तुम हर कहीं हो
और मैं कहीं नहीं.

ये कैसा युग - ये कैसे लोग
झूठ पर तालियाँ - और
सच पर गालियाँ सुनाते हैं .

भीड़ से दूर रहता हूँ -
कहीं कम ही आता जाता हूँ
क्यों की मैं हर कहीं हूँ भी -
और नहीं भी .

तू चलें -तो सारा जग चले

तू चलें -तो सारा जग चले
रुकी जिन्दगी कहीं झील सी
हर चुप को -कहकहों में ढालते
ना रुको कहीं -बढे चलो .

हो एक परचम हाथ में
ले दुआएं सब की दिलों में तू
है तलाश जिनको हों साथ में
ना रुको कहीं -बढे चलो.

तेरे मेरे अपनों के -
सबकी आँखों के सपने को
धरती को स्वर्ग बनाने के
तेरे मेरे को आलोक में आने के
दिए अब हमे जलाने दो.

चलो राजा से जा कर कहें-
सिंघासन ख़ाली करो-
हमे अन्दर आने दो -
नए स्वराज के सपने सजाने दो .

जो बुरा-कलुषित कलंक है
उसे अब हमे मिटाने दो -
हर इंसान को उसके हिस्से का
भाग उसे मिल जाने दो .

चलने का हुनर

चलने का हुनर -सीख
सूर्य और चाँद-तारों से .
वेगवती नदियों के किनारों से .

बूढ़े हो गए - सड़क के दरख्तों से
वीथिकाओं से सटे झाड़ों से .
ऊँगली थामे हुवे -
पिताकी आँखके इशारों से .

याद रखना - जिन्दगी के
शोर्ट कट नहीं होते - सारे
उतार -चढाव स्वयं
तय करने पड़ते हैं
तभी मंजिले मिलती हैं -
थके हारों से .

तुम हो असीम नीला अम्बर

तुम हो नसीम नीला अम्बर ,
मैं उड़ता बादल आवारा
तुम घाट बनी गंगाजल की ,
मैं उसकी चंचल जलधारा.

तुम बनी रूप का कुञ्ज मधुर,
छू लेता तुमको बन बयार
तुम लाज लजीली बनी दुल्हन ,
ले जाता डोली बन कहार

भीड़ में गीत याद आते हैं

भीड़ में गीत याद आते हैं ,
जहाँ मैं गुनगुना नहीं सकता .

है बहुत दूर मंजिले -अपनी
क्यों पलट देखता उन्हें ये दिल
किसी का दर भी नहीं -
अपनी रहगुजर भी नहीं,
तमाम लक्ष्य रह गए पीछे

वो मेरे पास नहीं -दूर भी नहीं शायद
फासले कैसे बढ़ गए -इतने
दोष अब किसको दूं -समझ नहीं आता
एक संग साथ क्यों नहीं बने अपने.

कहाँ से शुरू हुआ ये सफ़र
कहाँ मैं आ गया हूँ यारो -
आज कुछ भी बता नहीं सकता .

भीड़ में गीत याद आते हैं -
जहाँ में गुनगुना नहीं सकता .
मैं तुमसे दूर रह नहीं सकता ,
तुम्हारे पास आ नहीं सकता.

वज्रनाओ में बंधकर क्यों रहतें हैं

हम -वज्रनाओ में बंधकर क्यों रहतें हैं
मन के बंधन -खोल क्यों नहीं देते .

बंध कर -बकरियों की तरह
एक सीमा में- खाना -जीना, रहना .
कितना कष्टदायी होता है .
तू क्या जाने - ये हम इंसानों से पूंछ
किस तरह से जीतें हैं .

हम किस किस विध-
पीढ़ी -दर-पीढ़ी ,बड़े जतन से -
इस दायरे में रहने के - सूत्र समझाते हैं .

ये तो जीवन नहीं !
फिर क्या करें -उन्मुक्त भाव से
दुनियां में -कैसे रहें .
आखिर सीमाविहीन -
कैसे रहा जा सकता है .

रात जा रही है

रात जा रही है -
पूर्व दिशा में
भौर की पहली किरण
उजालों में नहा रही है .

पंछियों के दल -
पंक्तियाँ बांधे
आकाश में मंडरा रहें हैं
उजाले चहुँ ओर -दसों दिशाओं को
प्रकाश में नहला रहे हैं .

आशाएं - अंगड़ाईयां ले ले
हम को जगा रही हैं ,
नदी के जल में असंख्य
सूर्य रश्मियाँ जगमगा रही हैं .

सुबह हो रही है , रात जा रही है-
मेरे अरमानों को जाने क्यों
नींद आ रही है .

श्रीकृष्ण कहाँ हैं !!!! "

आज असंख्य अर्जुन हैं
जो इस कलयुगी महाभारत
लड़ने को उद्धत हैं ,
पर एक ही दुविधा है -
श्रीकृष्ण कहाँ हैं !!!! "

कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा
बंसीवट,जमुना के तीरे
कदम के पेड़ तले- दबे पाँव
धीरे धीरे .

पर तुझे पाने के लिए -
खुद को अर्जुन सरीखा बनाना होगा ,
खेल नहीं है -सारथि का मित्र बनना ,
है कृष्ण तुम्हे भारत में -
एक बार फिर आना होगा .

अब नहीं जाने दूंगा - यार
वापिस तुम्हें , वास्ता है मेरी यारी
तेरी राधा प्यारी का .

मैं जानता हूँ - तू तो भाव से
बंधा है - हमारे पुकारने में ही
शायद कमी होगी -

पर याद रख -
तू भगवान् है तो क्या
मैं इंसान हूँ तो क्या -
तुने मुझे भले बनाया होगा -
पर याद रख मैंने भी तुझे -
पत्थर से भगवान बनाया है -
तभी तू भी अस्तित्व में आया है .

भगवान के बिना -
यदि भक्त कुछ नहीं तो -
भक्त के बिना  -
भगवान् भी अधुरा है .
मैं अधूरा रहा तो -
तू कौन सा पूरा है .

सपने बुने .

चलो झूठे ही सही -
तेरे मेरे प्यार के - सपने बुने .

मैंने लाखों -करोड़ों में से तुझे
पहचान लिया - अपना मान लिया .

तू भी मुझे जान ले - पहचान ले
जो हो सके -तो मुझे अपना मान ले .

जुबान के इकरार को छोड़ दे -
दिल की बात सुने - चलो झूठे ही सही
तेरे मेरे प्यार के -सपने बुने .

कहीं अहसास सा है - तेरे पास होने का
आकंठ स्वयं को -तेरे प्रेम की गागर में डुबोने का .

तू छुप नहीं सकता - लाख पर्दों में
तुझे ढून्ढ ही लेंगे हम -
आओ सीप में से प्रेम के सच्चे मोती चुने -
चलो झूठे ही सही -तेरे मेरे प्यार के सपने बुने .

मैं उलटी गंगा बहाना चाहता हूँ

हाँ -मैं उलटी गंगा बहाना चाहता हूँ -
समुन्द्र को हिमालय पर
लाना चाहता हूँ .

क्यों नहीं हो सकता,
मेरा सपना सच -
जब आदमी इन्सान से,
भगवान से मिल सकता है .
तो समंदर हिमालय से
क्यों नहीं मिल सकता है

जतला दूं दुनिया को -
जल खारा भी हो सकता है
जब हमारे ईमान की गंदगी
मिल जाती है नदियों से -समन्दर में .

हिमशिखर नहीं पिघलेंगे- अब
इंसान के मन में जमी बर्फ
पिघलानी होगी - थोड़ी सी स्वाभाव में
मृदुलता लानी होगी -
खारा नही रहेगा सिन्धु जल -
फिर वह हिमालय में रहे या कहीं और
क्या फर्क पड़ता है .

कहीं आस पास हो तुम .

कहीं तो कोई है हवाओं में
लिपट गया है कोई आके मेरे पांवों में
यूँही कई बार लगा है मुझको -की
कहीं आस पास हो तुम .

कोई साया भी -नहीं पास,
मिलन की जाती रही हर आस,
मैं मान भी लूं तो क्या -
दिल यही कहता है -
कहीं आस पास हो तुम .

छुप गए हो कहीं तो -
मिल भी जाओ ,
अपने होने का कोई संकेत तो दो .
जो कहीं आस पास हो तुम.

नजर क्यों खोई खोई सी- तलाशें
तुम्हें हर पल .
ए मेरे ख्वाब -अपनी आँखों को
छोड़ इस तरह तो न जाओ .
परदे हटा दो - मैं जानता हूँ
कहीं आस पास हो तुम.

तू अकेला नहीं

तू अकेला नहीं है रे
मैं तेरे साथ हूँ .
आगाज से अंजाम तक -
तेरे साथ चला आया हूँ .

ये धरती -ये गगन ,
जो तेरा साथ ना दे ये
बिछुड़े हुवे लोग ये उजड़ा चमन.

रुका मत रह रहगुजर के लिए -
मैं हूँ ना- तेरे साथ चलने को
हर घडी -पल तेरे संग निकलने को .

मैं कोई और नहीं हूँ -
जो तेरे साथ चला आया हूँ -
मेरी मजबूरी है दोस्त -
मैं कोई गैर नहीं-
तेरा ही अपना साया हूँ .

ये कविता -बेजुबान नहीं

ये कविता -बेजुबान नहीं
हर गलत -कलुषित को
हर समय -डांटती है ,
अवसर हो तो श्वान के मानिंद
भोंकती है - काटती है .

पर- फिर भी
सूर्य सी प्रचंड रश्मि नहीं
चाँद की शीतल चांदनी -कहाँ ,
ये तो माटी के दिए की मंद लौ सी -
तिमिर छांटती है
हर समय - अंधेरों को काटती है .

काफी नहीं है - एक दीप
पूरा शहर दिवाली सा -
जगमगाना चाहिए ,
पूरी दुनिया मे -रौशनी को लाना चाहिए .

अपने मन के हर
अँधेरे कौने को प्रकाश से
नहलाना चाहिए

छोडो जाने दो .

मन को उन्मुक्त छोड़ दो
इसे किसी भी दिशा में
जाने दो .
दसों दिशाओं में
यूं ही चक्कर लगाने दो .

जबरन -हठात कैद मत करो
जो जाता है -उसे चले जाने दो
मत रोको - जो आता है
उसे आने दो .

जीवन नैया को - उसकी
नियति पर - लहरों के
झकोले खाने दो .
मत -रोको उसे
किसी भी ओर जाने दो .

हठधर्मी हो- तटस्थता का भाव -
मन में लाने दो
फिर जो भी मिले -
जीत या हार
उसे अपनाने दो .

मैं तो यूं ही लिख गया यार
चलो छोडो जाने दो .

Monday, January 10, 2011

कोई मिल गया था

कोई मिल गया था -
सरे राह -यूँ ही आते  जाते
मन खिल गया था -बात करते
मिलते मिलाते.

मन कह रहा था -ये कोई अपना सा है
तर्क कहता था - कोई सपना सा है .
ख्वाब  सच से ज्यादा हसीं हों तो
दिल क्या करे .
बे वजह कल की चिंता में क्यों मरे .

एक हाथ में कल था -और दूसरे में
आने वाला कल  - एक मुट्ठी में बंद
रेत सा फिसल रहा था - दूसरे हाथ
में प्रभात का सूरज निकल रहा था .

बीते  कल और और आने वाले
कल  के बीच- मेरा आज बाहर
आने को को मचल रहा था .

Sunday, January 9, 2011

हम दोनों

हम दोनों -जीवन के
हर इम्तिहान में
किसी भी विधि -विधान
जमीन आसमान
दसों  दिशाओं में-
विधमान -
सिर्फ हम दोनों .

हर युग -हर पल में
कल आज और कल में
द्वापर ,त्रेता ,कलयुग में
हर जन्म - हर काल में
सिर्फ हम दोनों .

हर कथा -कहानी में
लोगो की हर जुबानी में
सिर्फ हम दोनों .

कविता -बेजुबान नहीं

ये कविता -बेजुबान नहीं
हर गलत -कलुषित को
हर समय -डांटती है ,
अवसर हो तो श्वान के मानिंद
भोंकती है - काटती है .

पर- फिर भी
सूर्य सी प्रचंड रश्मि नहीं
चाँद की शीतल चांदनी -कहाँ ,
ये तो माटी के दिए की मंद लौ सी -
तिमिर छांटती है
हर समय - अंधेरों को काटती है .

काफी नहीं है - एक दीप
पूरा शहर दिवाली सा -
जगमगाना चाहिए ,
पूरी दुनिया मे -रौशनी को लाना चाहिए .

अपने मन के हर
अँधेरे कौने को प्रकाश से
नहलाना चाहिए .

फूल बोता नहीं -

फूल बोता नहीं -
एक से अनेक कलमें
काटता हूँ- लगाता हूँ
मैं -फूलों के नए नए
चमन खिलाता हूँ .

इस भांति -मैं
हर रोज नए फूलों के -
शहर बसाता हूँ
अपनी कविता की
खुशबु से पूरी दुनिया
को महकाता हूँ .

हाथों में फूलों के -
गुलदस्ते लिए
यहाँ -वहां , कहीं भी -
निकल जाता  हूँ.

फूल प्रतीक हैं -
प्रेम के -आस्था के
सत्य के -विश्वाश के
स्वयम काँटों में रह कर भी
तुम्हें फूलों से सजाता हूँ .

Saturday, January 8, 2011

प्रकृति की सबसे सुंदर रचना ?

ईश्वर की सबसे सुंदर रचना ?
कुछ ऐसी ही है -पर
जी नहीं फूल नहीं - पक्षी भी नहीं,

वो जो रंगों में रंग भर दे ,
धधकती अग्नि को शीतल कर दे
शीतलजल में अंगारे भर दे .

नहीं सूर्य -चंद्रमा भी
प्रतीक भर - इससे भी अलग
इनसे भी जुदा -

फिर क्या -जो इस मृत्युलोक
को रहने के योग्य बनाये
माया ममता ही जिसका गहना हो
जो अपनी मिसाल खुद ही हो.

घर का ख्वाब ही नहीं देखती  -
घर बनाती  भी है -
जी नहीं तितली -बिलकुल नहीं
मकड़ी -भी सिर्फ जाल बुनती है

नजरो से नजीर बदल दे -
बादशाहों -दुनिया की भ्रकुटी
मात्र से तक़दीर बदल दे .

ईश्वर की सबसे बड़ी देन
जो आदमी को देवदानव -
कुछ भी बनादे- अपने इशारे पर
पूरे ब्रह्माण्ड को नचा दे .

जरा सोचिये कौन है वो  ?
इस पृथ्वी की - तरह ही है
बिलकुल भी नहीं -उससे जुदा
सहने की पाती है अनेकों बार सजा
अंकुर को धरती की मानिद सहेजती -
विशाल दरखत बनाती -अपने प्रेम
ममता से उसे सजाती -

प्रकृति की वो अद्भूत, सुंदर रचना
केवल नारी ही है -जो इस
वीरान भूतल को रहने के-
योग्य बनाती है . 
खुद मर मर कर जीती है,
तुम्हें जीने का पाठ सिखाती है .

केवल तुम !

केवल तुम-
जीवन के हर मोड़
इम्तिहान - चाहे
जमीन या आसमान
केवल तुम !

कौन जाने -तेरा विधान
तू सर्वशक्तिमान -
किसे पता - तेरा स्वरुप
तू अमूर्त - कभी मूर्तिवान.

नहीं चिंता , कोई व्यवधान
सकल कारज सधे ,
दुर्जन घटे .
बढे सनमान ! तू हर कहीं
विराजमान !.

भूले दुःख - लौटे प्राण
कष्टों का - हुआ अवसान
घटे शूल - बढे फूल
अरियों की उडी धुल .

इनमे कारण अनेक
पर केवल एक नाम -
केवल तुम !!.

मन को उन्मुक्त छोड़ दो

मन को उन्मुक्त छोड़ दो
इसे किसी भी दिशा में
जाने दो .
दसों दिशाओं में
यूं ही चक्कर लगाने दो .

जबरन -हठात कैद मत करो
जो जाता है -उसे चले जाने दो
मत रोको - जो आता है
उसे आने दो .

जीवन नैया को - उसकी
नियति पर - लहरों के
झकोले खाने दो .
मत -रोको उसे
किसी भी ओर जाने दो .

हठधर्मी हो-
तटस्थता का भाव -
मन में लाने दो
फिर जो भी मिले -
जीत या हार
उसे अपनाने दो .

Friday, January 7, 2011

कुछ ऐसा कर

कुछ ऐसा कर की -
सिपाही अपनी बन्दुक फैंक दे ,
और राजा अपना ताज
उतार कर जनता के
सर पर रखदे .

देश -दुनिया की सीमाएं
मिट जाएँ/सिमिट जाएँ
मनों के बीच -की दूरिया
घट जाएँ .

अंतर न रहे -इंसान से
इंसान के बीच कुछ -
रिश्ते-नाते इस तरह
लिपट जाएँ .

तू तू -मैं मैं 'हम" हो जाएँ
तेरे मेरे सांझे गम हो जाएँ.
तेरे दर्द के आंसूं
मेरी आँख से निकले -
मेरे दर्द से तेरी भी आँखें
नम हो जाएँ.

चलो चल कर करें
उस से ये प्रार्थना .
बहूत संभव है
विधाता का ही कुछ
ऐसा रहम हो जाए.

Wednesday, January 5, 2011

बुढा हो गया चाँद

बुढा हो गया चाँद ,
आजकल आसमान में
नहीं -मेरे सर पर उगता है

बूढी हो गयी चांदनी -
श्वेत वसन ओढ़े
विधवा सी .

श्वांस नहीं लेती -
थमती नहीं ये उम्र की
नदी -और अधिक वेग से बहती है .

सफ़र की तैयारी-
हो रही है - आज मरे
कल दूसरा दिन - और
तीसरे दिन इतिहास के पन्नो पर.

हमारे पापा हुआ करते थे
काफी पुरानी बात है- अब तो
ठीक से शक्ल भी याद नहीं .

सोचता हूँ कुछ पहचान -
छोड़ी जाए -इस ज़माने से
थोड़ी यारी जोड़ी जाये -
शायद याद रखे -हमे
जाने के बाद

चलो छोडो कविता करते है
कोई गलती से पढ़ ले -
दुसाहसी हो जाये -ज़माने से
लड़ जाये -मेरे
जाने के बाद .

तू लिखता तो खूब है

तू लिखता तो खूब है - यार
पर मन के संशयों से बाहर आ.
जब खुद समझ जाये तो ओरों
को समझा .

शब्दों से मत खेल
लेखन -लफ्फाजी नहीं है बस
दिशा कोई दूसरी -रास्ता नया
बतला .

इन्कलाब लंगड़ा हो चला -
हुजूम देख कर मत घबरा
धाराएँ बदल दे - ज़माने के विचारों की
हर बात के मायने -अपने समझा.

मैं वही हूँ

मैं वही हूँ -
जो लड़ गया था
पूरे ज़माने से
लिख डाले थे
नए इतिहास

वो काल पुरुष
कायर -भीरु नहीं हो सकता
इस समर क्षेत्र में
मुहं ढक के नहीं सो सकता

उठ -एक नए विश्वाश
नए उल्लास के साथ
तू हारने के लिए नहीं बना
लड़ और रचदे एक
नया इतिहास

बता दे -ज़माने को
तू अभी मरा नहीं है
किसी आपदा-विपत्ति से
डरा नहीं है

फिर सुबह होगी
एक नए विश्वाश
के साथ -एक नयी
जीत की नींव -फिर
से रखी जाएगी

यकीं रख -वो
सुबह अभी -और
आज ही आयेगी .

बैठे ठाले

बैठे ठाले मिले निवाले -
मैं भी खाऊँ तू भी खा ले .

धरती को बिस्तर कर अपने
आसमान को ओढ़ बिछा ले .

सिरहाने हों पर्वतमाला -
सागर में तू पग लटकाले.

फिर काहे की चिंता तुझको
सारी दुनिया राम हवाले .


मैं हूँ न !

 तुम्हारी हर कहानी
हर व्यथा -किस्से
कथा - सुनने को
तेरी पथराई हुई आँखों में
कल के सपने बुनने को -
मैं हूँ न !

गुलशन से पुष्प कमल चुनने को
विजय के हार सजाने को -
तेरे साथ हर जंग में कंधे से कंधे मिला
लड़ जाने को -
मैं हूँ ना !!!

धूप मैं साया बन जाने को -
बाग़ से कच्ची अमिया चुराने को
तुझे हर फ़िक्र से बचाने को -
मैं हूँ ना !!

वैसे ही जैसे पृथ्वीराज के संग -
चन्द्रबरदाई - अर्जुन के संग
कृषण कन्हाई- अरे हम तुम अलग अलग
कहाँ है भाई .

जी हाँ -मैं आग बेचता हूँ

जी हाँ -मैं आग बेचता हूँ -
एक चिंगारी नहीं -
सम्पूर्ण दावानल .
एक रात की दुल्हन नहीं -
सम्पूर्ण सुहाग बेचता हूँ
जी हाँ मैं आग बेचता हूँ !!

खरीदोगे -ले जाओ
इससे घर के चूल्ले जलाओ
कुंद पड़ती तलवार की धार के लिए ,
अपने लिए ,देश-दुनिया
पूरे संसार के लिए - नफरत के लिए
प्यार के लिए .

जी हाँ इसे जैसे चाहो जला लो
अपने दिल में -विचार की तरह
दुसरे के दिल में प्यार की तरह
प्यार -मनुहार की तरह ,
जंग और रार की तरह .

आग का तो धरम ही है जलाना
मुर्दा शरीरों को जला दो
या सर्द जिस्मों मे जीवन भर दो
ये तुम परे निर्भर है -
तुम जो चाहे करदो .

ज्यादा नहीं -तो बस एक
चिंगारी ही ले लो -पर ध्यान रखना
दूसरे को जलाने से पहले -
स्वयं को जलाना होगा -
चिराग बाँटने से पहले खुद को
रौशनी में आना होगा .

लगता है सुबह हो गयी .

धुप का टुकड़ा -आँगन में
पड़े अख़बार पर पड़ता है
तो लगता है सुबह हो गयी .

ऑफिस को भागते बाबु
स्कूल को जाते बच्चे -
लगता है सुबह हो गयी

लंच के बाद -इंडिया गेट
के लान में झपकी लेते
सरकारी बाबु -

भीड़ में रेंगता ट्राफिक -
चिल पों - भाजी वाले से
झगड़ता -बाबु .
अपने अपने नीड़ों की
तरफ जाते पखेरू
लगता है -शाम हो गयी है

बच्चों को होमवर्क कराती
माताएं -चोके में घूम घूमकर
बार-बार आती -
दाल में छोंक लगाती -
पुरे दिन का ब्यौरा बताती -
पत्नियाँ .

सन्नाटे को तोडती -कभी
कभार गुजरजाती मोटरगाड़ी -
धीरे से बगल से फुसफुसाती
एक आवाज -शी..शी...
बत्ती बंद करदो .
लगता है रात हो गयी है

रूका मत रह

रूका मत रह -झील के पानी सा
प्रवाह में रह -नदी सा बह
ठहर मत जा -घर से निकल
कुछ परेशानी बाहर की भी सह

यहाँ तुझे कोई ना सुने तो -
बाहर निकल जा -जीने के बहाने
और भी हैं -रहने को ठिकाने
और भी हैं .

घर की दीवारें -आसरा नहीं दें -
बंधन बन जाएँ तब
अपने बांधे नियमों से निकल
चल उठ बाहर चल
कहीं तो कोई तो -कभी तो
तुझे मिल ही जायेगा

डर मत -आसान रास्ते
आगे बढ़ने से रोकेंगे ही
कठिनायियो भरी राह चुन
अपने -केवल अपने लिए
सपने बुन -ये सच हो जायेंगे
नियति के बहाने और भी हैं .

सितारों से आगे आसमां और भी हैं

सितारों से आगे
आसमां और भी हैं

प्रेम के प्यार के
ये तराने कुछ भी नहीं
दिल से निकले -जो
सुर-फसाने और भी हैं

जीत के हार के
बहाने और भी हैं-
घर से निकल के देख
रहने के ठिकाने और भी हैं

बेतरतीब हो चली -
ज़माने के सितम में
जिन्दगी खो चली -खो जाने दे
फूल-गुलशन के चमन
चाहे उजड़े -उजड़ जाने दे
ये बाजी-हाथ से चाहे निकले -
निकल जाने दे

दरवाजे-खिड़कियाँ खुली रख
जरा बाहर की ताजा सी
हवा आने दे -जो जा रहा है
उसे जाने दे -जो आना चाहे
उसे आने दे

चुप रहने की -सहने की
कसम आज मुझे खाने दे
वरना यहाँ से कहीं
दूर चला जाने दे .

कोई एक नाम कोई

कोई एक नाम कोई एक हस्ती
नहीं मिलती जिसके हवाले इस देश
के भविष्य को कर सकूँ .
चैन से जी सकूँ -निश्चिन्त हो
मर सकूँ .

कहीं कोई हो आपकी निगाह में -
देशभक्ति हो जिसकी चाहत -
जो दे सके
आपकी छोटी छोटी परेशानियो से
राहत.
तो मैं भी इत्मीनान कर सकूँ .

लिख मेरे यार लिख

लिख मेरे यार लिख ,
कुछ ऐसा लिख की -
मेरा भारत एक चमन हो जाये -
कहीं भी कुछ गलत सा न लगे -
चारों ओर शांति ओर अमन हो जाये .

काली,खाकी,और सफ़ेद पोश
सब अपने से हों -अपने से लगें -
हम सभी को ऐसा वहम हो जाये .

न मरे भूख से कोई फूटपाथ पर -
खेत-खलियानों में इतना अन्न हो जाये
ये मेरे देश की गलियां -
ना गालिया सी दिखें -
विलायत का सा कुच्छ भरम हो जाये .

हम ही हम हों - हर विधि -हर क्षेत्र में
इतना हम में दम-ख़म हो जाये -
हिन्दुस्तानी होना गाली सा ना हो
इतना ऊँचा हमारा परचम हो जाये .

हिमालय हमारी आन -
हिन्दुत्व हमारी शान, हो हाथ में
आर्यव्रत का निशान -
कहीं ये सपना तो नहीं श्रीमान.

सपना भी है तो सच होगा - एक दिन
तुम और मैं जिस दिन हम हों जाएँगे ,
उस दिन - दुश्मनों के सर कलम हो जाएँगे .

ये मेरी लेखनी और तेरे तीर -
घाव करते हैं -अति गंभीर .
इनकी तुर्शी में हमेशा दम हो
इनकी नोकका पैनापन ना कभी कम हो जाए