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Wednesday, January 5, 2011

बुढा हो गया चाँद

बुढा हो गया चाँद ,
आजकल आसमान में
नहीं -मेरे सर पर उगता है

बूढी हो गयी चांदनी -
श्वेत वसन ओढ़े
विधवा सी .

श्वांस नहीं लेती -
थमती नहीं ये उम्र की
नदी -और अधिक वेग से बहती है .

सफ़र की तैयारी-
हो रही है - आज मरे
कल दूसरा दिन - और
तीसरे दिन इतिहास के पन्नो पर.

हमारे पापा हुआ करते थे
काफी पुरानी बात है- अब तो
ठीक से शक्ल भी याद नहीं .

सोचता हूँ कुछ पहचान -
छोड़ी जाए -इस ज़माने से
थोड़ी यारी जोड़ी जाये -
शायद याद रखे -हमे
जाने के बाद

चलो छोडो कविता करते है
कोई गलती से पढ़ ले -
दुसाहसी हो जाये -ज़माने से
लड़ जाये -मेरे
जाने के बाद .

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