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Saturday, September 28, 2013

मुक्तक

तुम्ही हो जिन्दगी मेरी 
तुम्ही से प्यार है माना .
निभाओ दोस्ती हमसे 
कभी मत छोड़कर जाना .

जरा सी बात है लेकिन 
लबों से कह नहीं सकते .
तुम्ही से प्यार करते हैं 
तेरे बिन रह नहीं सकते .

रात हर रोज़ आती है
मगर हम सो नहीं पाए .
किसी के बन नहीं पाए
किसी के हो नहीं पाए .

कभी आ जाओ चुपके से
कहीं मिल जाओ राहों में
हमें भी नींद आ जाए -
तेरी जुल्फों की छावों में .

प्यार की बात करते हैं
प्यार करना नहीं आया .
किसी की आँख में रह -
ढूबकर मरना नहीं आया .

क्यों घर को छोड़कर जाते
अगर वो ना खफा होती .
क्यों वापिस लौटकर आते
जो यारो में वफ़ा होती .

हमें जो मिल गये होते
तुम्हारे हो गए होते .
तेरी जुल्फों के साए में
कभी के सो गए होते .


आज हूँ मैं - ना रहूँ कल  
पर अमर हैं गीत मेरे .
याद जो आये कभी तो 
गुनगुनाना मीत मेरे .

Wednesday, September 4, 2013

छुड़ाकर हाथ भागा हूँ .


सुबह की बात करनी क्या
अभी सपनो से जागा हूँ  .
अँधेरी रात थी यारो -
छुड़ाकर हाथ भागा हूँ .

अँधेरा जब तलक छाये
ना तब तक रात होती है
उजालों में नहीं सपनो से -
कोई बात होती है .

ये सपने रात भर हमको
कभी सोने नहीं देते -
मेरे होते तो हैं पर -
और का होने नहीं देते .

यही है रात का सच -
यार तुमको मैं बताता हूँ .
जब आँखें बंद करता हूँ .
खड़ा सूरज को पाता हूँ .

रोज़ ये जागना - सोना
तेरा मिलना तेरा होना .
लगे दुनिया मुझे सपना
जो टूटे यार क्या रोना .

Sunday, September 1, 2013

गाँधी चला विदेश और मोदी आने को है

पार्थ सारथि नहीं कृष्ण - ये कैसा रथ है .

भार भूमि भारत ये- कैसा महाभारत है .

कटे केश - पग टूटे , कर काटे बैरी ने

असमर्थ - है हृदय कंटकापूर्ण पथ है .



नाल गड़ी है कहीं - कहीं की है महतारी


पुत्ररत्न अभिषेक करेगी क्या गांधारी .


ललकारें है भर्त्य विदेशी स्वदेशी को


शुरू हुआ है ग़दर - भगा दो परदेसी को




विगत गया बस - आगत आने को है


दग्ध हृदय में घन बूंदें बरसाने को है .


तप्त मरू में बस पावस गहराने को है


गाँधी चला विदेश और मोदी आने को है .

आस्था कटघरे में है

बड़े सुदृढ़ किले इनके

जो बापू हैं बबालों से

आस्था कटघरे में है

घिरे लाखों सवालों से .



बड़ी मजबूत दीवारें


ना टूटे तीर भालों से


भले तू कोशिशें कर ले


फावड़े या  कुदालों से .




असर कोई नहीं - होगा 
कुपित हो कोप कर देखो 
जड़ों में इनके पीपल का 
एक बिरवा रोप कर देखो .

फैंक दे गम पुराने हो गएँ हैं

ख़ुशी की बात कर - 
अब दिन सुहाने हो गएँ हैं 
लपेटे कब तलक फिरते रहोगे 
फैंक दे गम पुराने हो गएँ हैं .

मेरे तदबीर के - 
कुछ और माने हो गए हैं .
कब तलक बैठकर - 
मातम मनाता .
मेरी तकदीर के 
लिखे पुराने हो गए हैं .

बात कर जीत की -
मत हार की तू .
प्यार में धार है -
टकराव के फलसफे
अब पुराने हो गए हैं .

पत्थर पानी में खूब तरा

ना पाने से ना खोने से -
ना जाने किस के होने से
कुछ रार चली कुछ प्यार चला .
रूठा ना - जो दिल हार चला .

कुछ साथ रहे कुछ छुट गए
माला से मोती टूट गए
कुछ मने रहे कुछ रूठ गए .
किसके पीछे संसार चला .

ना अपना था ना गैर कोई
ना प्रीत हुई - ना बैर कोई .
कुछ तट पर बैठे - डूब गए
लहरों का कारोबार चला .

ना पंथ चला ना धर्म चला
मरहम से ज्यादा घाव भला
मन में मानवता का सपना
मंदिर से थोडा दूर पला .

आदम से है इंसान बड़ा
पतझर में पत्ता खूब झरा .
लकड़ी की नौका डूब गयी
पत्थर पानी में खूब तरा  .