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Sunday, January 29, 2012

मुक्तक

ये 'ना' की भी कोई कीमत तो होती होगी यार
चलोजी दिल की बात तुमने अब कही तो सही .


मेरे सिवा कोई और तेरा है तो - होता होगा 
फक्र है हम भी शामिल हैं तेरे तलबगारों में .


एक नाजुक सी कलि - खिली तो है गुलदस्ते में
दुआ खुदा से है कोई आंधी ना आये तेरे रस्ते में .



छुपाने की हरचंद कौशिश थी मेरी - लेकिन
वो बिना कहे ही सब दिल का हाल जान गए .


बात कहने की नहीं -दिल ने  कह दी
अब जो भी सजा हो - मुझे मंजूर है .


डूबते तो पत्थर हैं यार -हैरत है  
काठ की नाव मेरी डूब गयी .

मगरूर से यूँ चुपचाप मत रहिये -
कभी मेरी सुनो  - अपनी कहिये .
ये वक्त ना कटेगा - कभी यूँ तनहा .
छोडो यार - मेरे दिल में आके रहिये .



वो हसीं फूल नहीं -
तितली भी नहीं यार कोई .
कब से इस दिल पर
चौकड़ी लगाये बैठी है .
जो सच कहूं तो यकीं होगा नहीं -
एक मकड़ी है - जो घर पर
कब्ज़ा जमाये बैठी है .
जो उनसे पूंछते - तो
इनकार होना ही था .
यूँ पास पास रहे बरसों
तो प्यार होना ही था .
 
 
 
 





 

Friday, January 27, 2012

बहार ऐसे ही आती है .

जैसे दुखों के बाद सुख .
तपते मौसम के बाद बारिश .
सूखते जख्ममें होने वाली -
मंद मंद खारिश .
अहसास दिलाती है -
शायद पतझर के बाद -
बहार ऐसे ही आती है  .

बसंत का स्वागत कर


बसंत का आना - पतझर का जाना
छोडो यार दिल को क्या भरमाना .
जिसे जाना था - चले गए वो कबके 
घर खुला है - जिसका जब दिल करे  -
तब चुपके से मेरे पास चले आना. 

आओ इसको भी टटोललें - तुम चाहो तो
सबके साथ इसकी भी जय बोलें .
शायद निहाल कर जाए - एक बार आये
मुमकिन है फिर कहीं ना जाए .

संभव है दुर्भाग्य - सौभाग्य में बदल जाए
कहीं से सवा करोड़ की लाटरी लग जाए .
कुछ भी हो सकता है यार - फिर मत डर
इस मदमाते - मनभाते बसंत का स्वागत कर.

 


Monday, January 23, 2012

मुक्तक

बहूत सस्ता रहा सौदा प्यार  का यार 
ख़त के पैसे बचे- जवाब आया ही नहीं.


आज ये सोच के भी दिल डरता है .
कैसे गुजरे थे वो दिन - तुम्हारे बिन .


कौन किसका साथ देता है - ऐ दिल
तू भी अपना ना रहा - पराया हो गया .


पहचाने से नक्स ये चेहरा - जाने क्यों याद नहीं आता
आखिर हम कब - कहाँ मिले थे इससे पहले भी कहीं .


मैं यूँही लिखता रहा पर - पढने वाला ना मिला
जब तुम्ही ने ना पढ़ा -फिर किसी से क्या गिला .


चलते चलते - यहाँ तक तो आ गए .
जहाँ लिखा है - आगे ये रास्ता बंद है .


मेरी कोशिशें नाकाम नहीं - रंग लायेंगी जरुर .
वो देख - सूरज बादलों से बाहर निकला तो है .


मैं गलत था तो - जरा पहले बताया होता
ठीक रहता  - इस रस्ते पे ना आया होता .


ख़राब चीज है ये - इश्क महुब्बत यारो
वो मेरी ख़ाक होगी जो किसी की ना हुई . 


तेरे मेरे  सोचने से क्या होगा -
जिन्हें सोचना है वे सब मौन हैं
सवाली नज़र - पूंछती है उनकी
हाशिये पे खड़े हम तुम कौन हैं .



बहती रही उनकी - पाप की नदी यूँही
हम तो बस उसमे - जबरन उछाले गए .
गटर सब बंद थे - गलियों के यार
कलुष सब यमुना में बेतरह डाले गए .



हम तो वैसे भी बदल डाले गए
घर छूटा - मुंह के निवाले गए .
क्या बताएं - मजबूर थे हम
ना जाने कैसे कैसे - सांचों में
हुकूमत के - जब तब ढाले गए .
नहीं लगता है तू शैतान जैसा
जरा कम है - नहीं भगवान जैसा
तुझे जैसा बनाया उस खुदा ने  
लगता तो है कुछ  इंसान जैसा .  
यहाँ रहने को कौन आया -
रुके कुछ देर - चल देंगे .
वही मालिक है दुनिया का
यहाँ हम सब मुसाफिर हैं .
 

 

Wednesday, January 18, 2012

हिन्दू हिंदी हिंद की बात

हिन्दू हिंदी हिंद की बात
लगती -बड़ी बेमानी है .
हमसे तो कहीं अच्छे -
पडोसी पाकिस्तानी हैं.

इस देश की ये बड़ी विचित्र कहानी है .
हिन्दू होना और कहना -
गुनाह हो गया यहाँ -हिन्दू बनके रहना .

यहाँ इंग्लिस्तानी - पाकिस्तानी
इतालवी - या और कुछ  भी बनकर
ठाठ से रहिये - शर्त है अपने को
कुछ भी कहिये - पर हिन्दू मत कहिये .

वैसे तायदाद में हम अच्छे खासे ज्यादे  हैं -
पर अधिकार की लड़ाई में - तुच्छ
राजा वजीर नहीं - सिर्फ प्यादे हैं .
राम जाने इनके ये कैसे कायदे हैं .
बहुसंख्य होना - गुनाह है
माइनरटी के बहूत फायदे हैं .

मुझे ही सीढ़ी बना के -जो
सत्ता के शीर्ष पर चढ़ गया .
वो अच्छा खासा हिन्दू भी -
माइनरटी के सिक्के में
खोटे हीरे सा जड़ गया.

Monday, January 16, 2012

स्याही भी पैसों की आती है

स्याही भी पैसों की आती है
या फिर ये चेहरा अनमोल है -आखिर
अवाम की भावना का भी तो कोई मोल है.

या इम्पोर्टेड को देसी बनाने का
आयुर्वेदिक नुस्खा - या फिर बहाना है
इलज़ाम किसी ना किसी के
सर पर तो आना है .

चुनाव नजदीक हैं यार -
ये हिंदुस्तान है - यहाँ पता नहीं
कल- कुछ का कुछ हो जाना है .

 

Sunday, January 15, 2012

मुक्तक

टकरा ना जाएँ - ख्यालात कहीं
फासले दरमियाँ - बढ़ाते रहिये .
बसने की ख्वाहिशें कम रखना यार 
वैसे हम दोस्त हैं - आते जाते रहिये .

बेगार करता हूँ - पर बेकार नहीं हूँ 
हौसले - फ़तेह भी दिलाएंगे जरुर .

किसी कि मेहरबानी का तलबगार नहीं हूँ . 
भला चंगा हूँ - यार सच मैं बीमार नहीं हूँ .

पुरानी लीक पे चलने के ज़माने नहीं रहे
हम फकीर नए युग के - पुराने नहीं रहे .
बदल गया बहूत कुछ - तू भी बदल जा 
दिन सुहाने थे - अब वो सुहाने नहीं रहे .

आज फिर झूठ बोला - मैंने कसम से .
तुम सबसे सुंदर हो - कहा सनम से .

Friday, January 13, 2012

सर्द रातें हैं

सर्द रातें हैं बात तेरी-मेरी नहीं 
तपस्वी की तरह - भभूत रमाये
अकेले खड़े चिनारो की हैं .
चिंगारी की तलाश में - अलाव
खंगालते - भिखारियों की है .

कौन रखता है किसी का ख्याल -
किस को फुर्सत है दोस्त .
बात पतझर की है - ना की
बहारों की है .

गिरती किसी अमीर - के घर
तो बात कुछ और ही होती
ये बर्फ भी गिरती हैं - वहां
जहाँ रात -तंगहालों की है .




Saturday, January 7, 2012

जिन्दगी फूल और गीत सी

जिन्दगी फूल और गीत सी
खुबसूरत थी - गाते रहे
गुनगुनाते रहे हर पल .

वो सुनाते रहे - जिन्दगी के फ़साने
दाद देते रहे - कहकहे लगाते रहे .
दर्द के नगमे भी कभी - कभी
दुःख भरे साज पर गाते रहे

लोग आते रहे - जाते रहे .
जो मिला - प्यार से हंस के
फिर क्या अपना - बेगाना
सबको मिलके गले लगाते रहे .

Thursday, January 5, 2012

मुक्तक

पीने वाले तो यूँही बदनाम हैं यार -मैंने
सूफी लोगों को भी सरेआम बहकते देखा .
आज गुलशन में पतझर आ गया - आना ही था
उम्र भर कहाँ रूकती - बहार को तो जाना ही था .
टूट जाते हैं ख्वाब - नींद से जागें जो कोई
अब भला कौन - सोया रहे उम्र भर यार .
 
हमसे बिगाड़ कर सदा घाटे में रहोगे -
एक हम ही हैं जो हाल चाल पूंछ रहे हैं .
ये मैं नहीं कहता - ये सभी लोग कहते हैं
हमसे बिगाड़ कर सभी घाटे में रहते हैं .
छोटी है सोच आपकी - पर लम्बी जुबान है
शमशीर कहाँ है मिंया - बस खाली कमान है  
यहाँ तो आग सी लगी है - तुझे मसखरी पड़ी है
उजाले मात खा गए - मेरा दिल ऐसी फुलझड़ी है .
अँधेरा बहूत है - दिया जलाये कौन
अकेले बैठे हैं - मिलने आये कौन.
अंतर में कोलाहल बहूत है - एक हम हैं
चुप चुप से - बिलकुल मौन .
तेरी तलाश की मंजिल - हम भी काश होते
मजा आता - हम आम नहीं तेरे ख़ास होते.
ये पहला तीर है - शायद
निशाने पे ना लगे .
मगर मायूस ना हो .
अभी और भी तुक्के हैं -
जो आजमाने हैं .
कितने खुबसूरत हो - बिलकुल मेरे
अहसास से - हो बहूत दूर पर यकीं मानो
मुझे लगते हो तुम - सचमुच मेरे पास से .
तेरे अहसास की कलम से
गीत लिखता हूँ - गाता हूँ
गुनगुनाता हूँ - हरेक
अपने- बेगाने के साथ
दूर तक साथ चला जाता हूँ .
सूर्य को रोज अर्ध्य देता हूँ - चाँद से मनौती मनाता हूँ
गर ये इलज़ाम है तो सच है  - मैं बुझे हुए दीये जलाता हूँ .
सूरज कुहासों में गुम है - चाँद को बेवजह भ्रम है
चलो दीये से बात करलें - ये सितारे तो बेशर्म हैं .


 
 
 
 
 
 

Tuesday, January 3, 2012

बहाना हो ना हो -हंसने का

बहाना हो ना हो -हंसने का
फिर भी मुस्कुराना चाहिए .
भले पहचान ना हो - तो क्या
उन्हें घर तो बुलाना चाहिए .

घर की दीवार के उखड़ने लगे प्लास्टर -
बदरंग सी लगने लगी अब - चलो 
रंग कोई और दूजा आजमाना चाहिए 

दशक गुजरे - मशालें बुझ गयी हैं
ठीक है - १८५७ के बाद
१९४७ को अब तो आना चाहिए .