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Tuesday, January 3, 2012

बहाना हो ना हो -हंसने का

बहाना हो ना हो -हंसने का
फिर भी मुस्कुराना चाहिए .
भले पहचान ना हो - तो क्या
उन्हें घर तो बुलाना चाहिए .

घर की दीवार के उखड़ने लगे प्लास्टर -
बदरंग सी लगने लगी अब - चलो 
रंग कोई और दूजा आजमाना चाहिए 

दशक गुजरे - मशालें बुझ गयी हैं
ठीक है - १८५७ के बाद
१९४७ को अब तो आना चाहिए .

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