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Saturday, March 12, 2011

जिन्दगी बस गीत है क्या

जिन्दगी बस गीत है क्या -
ये मधुर संगीत है क्या .
जाम हाथो में सजा कर -
विरह मन की यूँ बढ़ा कर.
जिन्दगी कटती नहीं -
यूँ गीत गाकर गुनगुना कर .

क्या मिलेगा रास्ता -तुमको अकेले ,
जिन्दगी चौरास्ता पे आ खड़ी है-
चाहतो की गिर रही -रिमझिम झड़ी है .

जिस तरह चाहे सजा लो -इन सुरों को
ये कोई हमदम या -मन का मीत है क्या ?
अकेलापन साज है- या नया फिर गीत है क्या ?

खो ना जाओ -रास्तों में जिन्दगी के
चल सके जो साथ कोई - साथ ले ले ,
चाहतें अंगड़ाइया लेने लगी अब -
सोच लो हो तुम अकेले -हम अकेले.

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