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Monday, March 7, 2011

क्षणिकाएं

गाते तो बहुत हैं ,गुनगुनाता हैं कोई कोई
दिल से लिखे गीत-दिल से गाता है कोई कोई.

कहाँ है वो सुबह - उषा की लालिमा लिए हुए
कहाँ है वो शाम - सुरमई आंचल लपेटे हुए
वो रात भी होगी -यहीं कहीं ,चलो ढूंढ़ ले
सितारे गोद में -आँखों में सपने लिए हुए .

दुःख की कोई बात नहीं -दिन है यारो रात नहीं ,
तू बालक नादान अभी ,खतरे मत पहचान अभी .
एक मसीहा आएगा , तुमको खेल खिलायेगा,
जन्नत में ले जाएगा -खूब खिलौने लायेगा .

दुःख बाधाएं हर लेगा ,काम सभी वो कर लेगा ,
तूने फिर क्या करना है ,अमरीका सब कर लेगा .
फिर चिंता क्यों करता है ,वो चिंताएं कर लेगा ,
इतने कामो के बदले , कितनी झोली भर लेगा.

गीता में रख कृष्ण को -रामायण में राम,
बाकी जाएँ भाड़ में, क्या है उनसे काम.
क्रिकेट का रख ध्यान तू , उनको हीरो मान,
ट्राफी लेकर आयेंगे , उनको अपना जान .

नादान हैं लोग- दिल के जख्म को बेचते हैं
प्यार को बेचते हैं , सनम को बेचते हैं
जाने कैसे-कैसे गैरों को अपनों को बेचते हैं .
इस मुफलिसी में , और क्या बेचें हम जनाब ,
हम ग़ुरबत के मारे तो सिर्फ अपने को बेचते हैं .
आँखों में पाले हुए ,जवां सपनो को बेचते हैं.

जीवन मैं - गर कभी मिलो ,
तो अपनों की तरह मिलना .
वैसे ही जैसे - मिलती हैं
दो नदियाँ ,किसी संगम पर-
और खो जाती है -एक दूजे में .
ऐसे कभी मत मिलना जैसे-
पत्ते मिलते हैं आँधियों से.

वादे होते ही हैं -तोड़ने को ,
रिश्ते होते ही हैं - जोड़ने को .
पर आज का चलन अलग सा है
ना वो मिलतें हैं -हमें ना छोड़ते हैं .
ना वादा तोड़ते हैं -ना रिश्ता जोड़तें हैं .

अजीब ढोल हैं सियासत के -ना भजन, ना कोई तराना ,
बरसों पुराने घीसे गीत को-हर बार अलग ढंग से बजाना.

मैं कहीं डूब गया हूँ शायद , ढून्ढ जो मेरा पता पाले तू
मजा जब है इस प्रेम सागर से ,जीते जी मुझे निकाले तू.

फासले रख के फिर चला करिए ,किसी से यूँ ना तुम मिला करिए ,
जान जाने के सौ बहाने हैं , दिल पर हर बात ना यूँ लिया करिए.
.
तेरी मां- बहुत अच्छी है ,ये बात ठीक है लेकिन,
भले बीमार सी दिखती है , घर में मेरी मां भी है .

सजाएँ दी जाती हैं , सुनाई नहीं जाती ,
आपदाएं ,आवाज़ दे के बुलाई नहीं जाती .
सब ठीक चल रहा था -फिर क्या जरुरत थी,
अब गलतियाँ -तो हरबार , दोहराई नहीं जाती .

किसी के काम आ नहीं सकता ,किसी का प्यार पा नहीं सकता ,
की अपना घर उजाड़ कर यारो , किसी का घर बसा नहीं सकता .

रो रो के बात करने -का क्या फायदा हैं यार,
हलक फाड़ के चिल्ला -जरा असर तो हो .

गरीब की छत है -बरसात से डर लगता है ,
घर में रहना भी बस एक हुनर लगता है .

किसी ने चुपके से कहा -सरकार है ,
हमने चिल्ला के कहा- बेकार है .

अटल हो अपने बनाये नव विधान पर ,
ना दुःख मना, गुलामी के अवसान पर .
पूरी दुनिया भी , क्या बिगाड़ लेगी तेरा,
उठाके कदम - रख दे ऊँचे आसमान पर.

तू जलना सिखाये -तो जले सूरज ,
चलना सिखाये -तो चले दुनिया सारी ,
ऐसा बन जा , की एक पत्ता भी -ये
पूछे -'हवा तेज है ,मैं हिलूं या नहीं.

कितना फरेब बेचते हैं हुक्मरान यार ,
ना बेचना मना है -ना पीना हराम है .

खौफ से खौफ हम खाते भी नहीं ,
नादाँ से दिल को लगाते भी नहीं .
फूलों की सेज ना मिले -तो ना सही -
काँटों के खौफ हमको सताते भी नहीं.

आजादी किसे मिली ये समझने की बात है ,
सरे आम चीखने को आजादी नहीं कहते .
















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