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Monday, March 7, 2011

क्षणिकाएं

समंदर - जलधर नहीं है,
वे तो मेघ होते हैं -
धरती की प्यास को बुझाते हैं
पर जल भरने तो हर बार
समंदर के पास ही आते हैं .

इतनी विषमतायें , विपरीत
धाराओं के बीच आदमी .
आखिर करे तो क्या करे ?
किस किस से रार ठाने ,
किस को गैर कहे -
किस को अपना माने ?

बीज तभी अस्तित्व में आता है,
जब धरा के माता सम
गर्भ में आश्रय पाता है .
और एक से अनेक हो जाता है .

जीते जी और मरने के बाद
किस तरह होता है -इंसानी
जिस्मो-जान का कारोबार -
किस बात की चिंता -
इसके लिए राजनीति हैं ना यार .

प्रवाह के साथ बहने का क्या मजा -
वो तो सभी बहतें हैं -
पर वे सभी हाशिये पे रहते हैं .
वो लोग महान होते हैं जो दुर्गम -बीहड़ में
नए रास्ते बनाते है- इतिहास में उनके नाम
स्वर्णाक्षरों में लिखे जाते हैं -
और सदियों तक देवता की मानिंद -
पूजे जाते हैं.


इतनी बेबाकी से ना लिपटो, की शर्म खो जाए
दोनों के -कहीं एक होने का ना भरम हो जाए .









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