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Monday, March 7, 2011

क्षणिकाएं

कल तलक मैं एक था -
और आज बंट गया अनेकों में .
कई बार लगता है जैसे -
आइना हो गया हूँ मैं .

बहूत आसां है -हँसना खुद पर ,
मुस्कुराना -भी तो आना चाहिए.
तमाशा बनने बनाने से पहले ,
मदारी का हुनर भी तो -
सीखना सिखलाना चाहिए.

फिर किसी रोज -कभी फुर्सत में ,
बड़ी फुर्सत से हो -बड़ी फुर्सत में.

इश्क की हद देखें - या अपनी सरहद देखें
ना हम से ये पार होती है -ना वो पार होती है.

अंजामे इश्क देखें , की आगजे हुस्न -यारो ,
जीवन का झमेला है -इक पल का तमाशा ये.

जिन्दगी गर खेल है - तो
फिर इससे इतना प्यार क्या .
खेल तो खेल ही है दोस्त ,
फिर इसमें जीत क्या -हार क्या.

मैं कोई राझां नहीं -हीर नहीं ,
कोई ग़ालिब नहीं -फकीर नहीं .
दो लफ्ज कि दरकार -नहीं कुछ और ,
कमसे कम अब तो कह दीजिये 'वाह'.










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