आंधियां देश दुनिया घर नहीं देखती
कोई पगडण्डी -सड़क शहर नहीं देखती
जमीन से उठती हैं - और छा जाती हैं -
आसमान में या सारे जहान में .
किसी के घर आंगन - तक
आके लौट जाती हैं
आके लौट जाती हैं
किसी महलनुमा घर के -खिडकियों
दरवाजों तक की चूलें हिला जाती हैं.
कभी कभी गलती से - किसी सही
आदमी के इरादों में समां जाती हैं -
लौट कर - फिर कहीं नहीं जाती हैं .
और हर घडी यूँ ही तूफ़ान उठाती हैं .