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Thursday, August 25, 2011

आंधियां देश दुनिया घर नहीं देखती

आंधियां देश दुनिया घर नहीं देखती 
कोई पगडण्डी -सड़क शहर नहीं देखती 
जमीन से उठती हैं - और छा जाती हैं -
आसमान में या सारे जहान में .

किसी के घर आंगन - तक
आके लौट जाती हैं  
किसी महलनुमा घर के -खिडकियों 
दरवाजों तक की चूलें हिला जाती हैं. 

कभी कभी गलती से - किसी सही 
आदमी के इरादों में समां जाती हैं -
लौट कर - फिर कहीं नहीं जाती हैं .
और हर घडी यूँ ही तूफ़ान उठाती हैं .

कोई और बात करते हैं .

चलो इस अनशनी - अन्ना
को छोडो - यार
कोई और बात करते हैं .

जीने की बात बड़ी -फिजूल सी
लगती है -चलो
ना सही किसी और के लिए
अपने अपने लिए मरते हैं .

क़ुतुब मीनार - तो बंद है
कितना अच्छा ख्याल है - चलो
लाल किले की प्राचीर से -
कूद कूद कर आत्म हत्या करते हैं .

बड़ी प्यारी चीज होती है
जिन्दगी मेरे यार - चाहे
कितनी हो जाए किसी से रार.
मारने की तो सोचते हैं -
पर खुद कहाँ मरते हैं .

क्यों खटते हैं हम रात दिन -
इस पेट के कूए को भरने में -
जरा सोच फिर -क्या हर्ज है
अन्ना के संग अनशन करने में .

Wednesday, August 24, 2011

चलो बहूत हुई रामलीला

चलो बहूत हुई रामलीला  -
अब मैदान खाली करो.
मदारी की मौज -
और बंदरों की फ़ौज -
लंका की चढाई - अरे 
कोई कम तो नहीं है भाई. 

पर शुक्र है - अभी बादल है
पुरवा चल रही हैं .
जोश की बदलियाँ  - उमड़ घुमड़
समन्दर से - अभी भी
जल भर रही हैं .

वो देखों - अंधेरों से जो
पुरजोर लड़ाई लड़ रहें हैं .
लोग कहते हैं - ये जुगनू
सूरज के सामने -सरेआम
आत्मदाह कर रहें हैं . 

पर कुछ तो बात है - तीर
तुणीर सजे हैं -हर अर्जुन के
चाहे पांडवों के दो सौ - नहीं
बस दस हाथ हैं - विजयश्री
पक्की है - अरे हाँ श्रीकृष्ण
जैसा सारथि भी -तो उनके साथ है .



Tuesday, August 23, 2011

जन्म दिन की बहूत बहूत शुभकामनायें .....!!!!

"आस का विशवास का दीपक सदा जलता रहें.
हर्ष और आह्लाद से जीवन सफ़र चलता रहे.
हों सफल तेरे इरादे - खुशियाँ मिले संसार की
झोली इस फ़कीर ने  - सर्वस्य तुझ पर वार दी "

जन्म दिन की बहूत बहूत शुभकामनायें .....!!!!

ये भी अजीब पागल हैं

ये भी अजीब पागल हैं -
कौरव पांडवों से - सत्ता के
गलियारे में कुश्ती कर रहें हैं .
अच्छे खासे जिन्दा हैं -फिर भी
ना जाने -किस बात के लिए मर रहें हैं .

और ये अवाम - सुबह से शाम
रोती धोती - कब से सिसक रही है .
जिन्दा सी लगती तो है - पर
पल पल मर रही है - कैसी कैसी
उम्मीदें पाली थी - ना जाने क्या कर रही है .

कोई तरकीब ढून्ढ - अपनी औकात जता
नहीं चाहिए  चंद सिक्के - या क्षणिक नशा.
नकली राजा को - असली राजा की
एक बार तो ताकत दिखा .
प्रजा राजा की परिभाषा - एक बार
फिर से तो लिख जरा .

सवाल तो बहूत हैं - पर अभी शासक मौन है .

आस पास देखते भालते -
डन्डे में झंडा डालते -
बैठे बिठाये ना जाने
कैसे कैसे सपने पालते .
मदारी की मौज -
और पूरी फ़ौज .
नफीरी की धुन पर -
बंदर से नाचते.    
जय विजय के नारे लगाते-
सुबह शाम आते जाते -
आखिर ये सब कौन हैं .
सवाल तो बहूत हैं -
पर अभी शासक मौन है .  

Sunday, August 21, 2011

क्षणिकाएं

मेरी मिटटी - में जब खुशबुओं का वास है,
इस हवा से तो पूंछ - आखिर क्यों उद्दास है
अरे बुधू नहीं हूँ गैर कोई - ना पराया हूँ ,
जन्म से साथ तेरे - साथ आया हूँ .
नहीं समझा अभी तक कौन हूँ मैं  -
नहीं कोई और - मैं तेरा साया हूँ  
खुद की परछाइयों  से डर रहे हो -
बड़े नादान हो -क्या कर रहे हो .
ये सच है - या सच का भ्रम सा
सच में नासूर है - या मामूली वर्म सा .
प्रतिमा है -भक्त और भगवान भी
यार - लगता तो है कुछ कुछ धर्म सा .
ये सागर प्रेम रसरंग का - कूदो
और गोते खाओ - पछताओगे
तैर के किनारे पे मत जाओ .
मेरी बात जाने दो -
अपनी कहो ना .
जो मेरे हो तो - मेरे
पास ही रहो ना .
जो उतरा पार - क्या जाने
डूबने का मजा - क्या है .
आपने जाना तो सही - हमने
कहा क्या है .
 
 

 

Wednesday, August 17, 2011

सरे शाम - हमने दिया जलाया तो है

सरे शाम - हमने दिया जलाया तो है
मिजाज़ पुरसी को कोई चलके
दूर से आया तो है .

अब देखते हैं - वो क्या है- कैसा है
वो शक्श तेरे लिए कुछ लाया तो है .
बड़ी शिद्दत से मैंने उसे बुलाया तो है .

मैं खो गया था - सरे राह में
मेलों में झमेलों में - किसी ने
मुझे इससे मिलवाया तो है .

कल ख़त का जवाब भी - आएगा जरुर
किसी कातिब से- हुक्काम को
मैंने लिखवाया तो है.

ना सही हक़ - जरा सी लूट सही
दे दो इस गरीब को थोड़ी छुट सही.
मजमून काजीसे पढवाया तो है .

ये मोदी  - कुछ आदमी सा लगता है
खरा सिक्का है -  जैसे टकसाल से
अभी ताज़ा ताज़ा आया तो है .


Monday, August 15, 2011

लिखो - इतिहास में उसका भी नाम

लिखो - इतिहास में
उसका भी नाम - वो भी तो आया था
इस - देश दुनिया के काम .

उसे भी लिखों - जो आदमी
अभी अभी - रोटी के लिए
मर रहा  है - जी नहीं भूख से नहीं
मुझे बचाने के चक्कर में -जो
सरे आम फाका कर रहा है .

क्यों नहीं लिखते - उसका नाम
जो तुम्हारे सामने -आज जांबाज
दुश्मन की मानिंद खड़ा है -
और अपनी बात मनवाने पर -
बेतरह अड़ा है .

उनको क्यों इतिहास में - जबरन
डालते हो - जो बार बार
रण छोड़ कर भाग जाता है -
एक आम आदमी की दहाड़ सुन-
सोते से जाग जाता है .

कौन कहता है -
इतिहास गीदड़ों भभकियों
का - फरमान होता है -ये तो
सीधे सीधे - क्रांति का
बिगुल बजाने वालों का
आइना-ऐ -ऐलान होता है.

इतिहास से मजाक - कभी
बहूत महंगा पड़ जाता है.
कितने ही समय के केप्सूल
लाल किले में दबवा लो - सब
सरेआम उघड जाता  है . 


 

Sunday, August 14, 2011

करोड़ों बंद मुठ्ठियाँ

करोड़ों बंद मुठ्ठियों की ताकत
करती है इंतज़ार - बरसों से .
मसीहा कोई कहीं से -
आये तो सही -और हममे
छिपी ताकत का अहसास
कोई दिलवाए तो सही.
स्वयं को भूल चुके हम लोगों को
अपने आप से -कोई मिलवाये तो स
ही.

Saturday, August 13, 2011

ये कैसा बाबा है - जो मंदिर है ना काबा है .


ये कैसा बाबा है -
जो मंदिर है ना काबा है .
वो देखो चाकू सी -
पसलियों से कर रहा अपील -
एक इंच जगह मिले तो घूस जाऊं .
तेरी सारी अंतड़ियाँ - यहाँ-वहां
राजपथ पर ही फैलाऊँ . 

क्या मासूमियत है -
थोड़ी सी ही सही - जगह मिले
तो बैठ जाऊं तेरे अवसान के -
लम्बे लम्बे गीत पूरे हिंदुस्तान
को गा गा के सुनाऊँ .

गजब है - इस क्रांति के रंग
ऐसे तो नहीं देखे -उस
"महात्मा" के भी ढंग - जिसने
पूंछ पूंछ कर सरकार से - करी 
अवज्ञा या सत्याग्रह की जंग .

अरे कुछ करने की ही जिद है -
या बुढ़ापे की सनक है- रहने दे
हमे नहीं चाहिए ये सरकारी -
भीख में मिली प्रायोजित क्रांति -
हम ढून्ढ लेंगे कोई नया गाँधी .

कोई दूसरा उपाय निकाल लेंगे -
खुद को किसी और - अलग
नए साँचें में ढाल लेंगे .
पर अभी तो बस कर -
बहूत हुआ ये नाटक - कभी
मजबूरी ही पड़ गयी तो - भात
तेरे पतीले में भी उबाल लेंगे .

(मासूम अन्ना हजारे जी को सविनय समर्पित)


Wednesday, August 10, 2011

तीर किसी और का

तीर  किसी और का -
कमान किसी और की
खेत-खलिहान मेरे बाप का - तो
कैसे ये मैंढ किसी और की .
तेरी मेरी बात - ना सुनाऊं     
किसी और की .


छाडू ना कलाई  - चाहे माने 
ना मिताई   - मारूं  
या कूँ  मैं कन्हाई   - तेरी
गीता की कहाई - नहीं
बात किसी और की .

छन में बिगाडूँ- याको चक्करवीयू
फाडूं - नहीं छोडूं याकूं  मारूं .
फेरी काहे को बिचारूं - नहीं
मानू मैं तो 'हर' की  .

तेरो याही में - आराम
भाग - लेके या दूकान
खाली कर दे मकान -
और करो ना हैरान - वर्ना होगो
परेशान  - याही बात है फ़िक्र की .

(
ये चंद लाइने  उनके लिए जो
देश की व्यवस्था पर सांप की
तरह कुंडली मारे बैठे हैं )



Wednesday, August 3, 2011

प्रेम कहीं नहीं - बस घूँट दर घूँट गरल.

प्रेम कहीं नहीं - बस
घूँट दर घूँट गरल.
हर कहीं - बिखरे हुए से हम .
बीत जाती है उम्र -समेटने में  
जिन्दगी की कथा - नहीं
होती सीधी और सरल .

चलो पत्ते पे पड़ी  -
शबनम की बूँद - सावधानी से 
उठा ले - मिले जो फुर्सत तो
थोडा हंसले- गालें.

बुरा ना माने तो इन -छोटी छोटी -
दूर होती हुई खुशियों के -
बुझते दीये फिर से जला लें .  

अब आपसे क्या कहें - कल के
बच गए बासे ग़मों पर -खोखली
हंसी हंस लें -झूठे ही सही -
जी भर के कहकहे लगा लें .

कल का क्या है - कल तो काल
का नाम  है- एक रोज आएगा जरुर .
फिर भी - बेईमान होती
इस जिन्दगी को - उजड़ने से
कुछ तो बचा लें .