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Monday, March 7, 2011

क्षणिकाएं

वो शक्श कौन था जो- भर दुपहरी में
अँधेरा ओढ कर आया -और
चुपके से रौशनी बाँट कर
वापिस चला गया .

रूठ जाना तो कोई बड़ी बात नहीं -
रूठ के मन भी तो जाना चाहिए.
मन जो लगता नहीं कहीं भी यार 
किसी से दिल लगाना चाहिए .

कितना मुख़्तसर सा था सफ़र अपना ,
ना कोई घर था, ना कोई घर का सपना .

लौट जाते हैं थक कर लोग जब
दरवाजे की कुंडिया खडका कर -
गिर जाती है उम्मीद-की दिवार
भरभरा कर .

मैं भी हारा ना था - और जीता भी नहीं कोई
युहीं आपस में लड़ते रहे हम तमाम उम्र .

उम्र भर ढूँढता रहा जिसको - जो मेरा कभी था ही नहीं
कमबख्त, ये किसी दूसरे की आंख का सपना तो नहीं.

फिर कोई फूल मुस्कुरा के जब खिलखिलाया,
अपना गुज़रा बचपन - तब बहूत याद आया.


करते हैं इश्क - मादरे हिन्दोस्तान से ,
रब से कभी, खुद से कभी, पुरे जहान से .


सूरत नहीं सीरत नहीं - है कुछ नहीं खुदा   
मैं पशोपश में हूँ - तुझे अब पेश क्या करू .

बातें अजीब हैं मेरी - समझेंगे नहीं लोग 

खुदको समझ सका नहीं - वो आदमी हूँ मैं .

दिल नहीं चाहता 
खो जाऊं तो - 
ढूंढे कोई मुझे .
बड़ी मुश्किल से - 
खुदको भूलकर - 
उसका हुआ हूँ मैं .

गाफिल नहीं - सोया नहीं 
पाया नहीं खोया नहीं .
ढूंढो जरा यारो - मुझे 
मैं ना जाने कहाँ हूँ .

वो हम नहीं हमसा कोई और नहीं और होगा 
पाया कहाँ हूँ खुदको अभी तक ढून्ढ रहा हूँ . 

खुदा को ढूँढना आसाँ -
है खुदको ढूँढना मुश्किल .

खुद से बेगाना हो - उसको अपना बना लिया 
सच है की जो खो गया - उसने उसे पा लिया .

झूनझुनों से खेलता देश 
ये आयातित सोच -
नए जमाने के तरीके - 
तौर भी है - हाकिम से पूछो 
जो दे सके जवाब तो -
सवाल और भी हैं .















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