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Thursday, January 5, 2012

मुक्तक

पीने वाले तो यूँही बदनाम हैं यार -मैंने
सूफी लोगों को भी सरेआम बहकते देखा .
आज गुलशन में पतझर आ गया - आना ही था
उम्र भर कहाँ रूकती - बहार को तो जाना ही था .
टूट जाते हैं ख्वाब - नींद से जागें जो कोई
अब भला कौन - सोया रहे उम्र भर यार .
 
हमसे बिगाड़ कर सदा घाटे में रहोगे -
एक हम ही हैं जो हाल चाल पूंछ रहे हैं .
ये मैं नहीं कहता - ये सभी लोग कहते हैं
हमसे बिगाड़ कर सभी घाटे में रहते हैं .
छोटी है सोच आपकी - पर लम्बी जुबान है
शमशीर कहाँ है मिंया - बस खाली कमान है  
यहाँ तो आग सी लगी है - तुझे मसखरी पड़ी है
उजाले मात खा गए - मेरा दिल ऐसी फुलझड़ी है .
अँधेरा बहूत है - दिया जलाये कौन
अकेले बैठे हैं - मिलने आये कौन.
अंतर में कोलाहल बहूत है - एक हम हैं
चुप चुप से - बिलकुल मौन .
तेरी तलाश की मंजिल - हम भी काश होते
मजा आता - हम आम नहीं तेरे ख़ास होते.
ये पहला तीर है - शायद
निशाने पे ना लगे .
मगर मायूस ना हो .
अभी और भी तुक्के हैं -
जो आजमाने हैं .
कितने खुबसूरत हो - बिलकुल मेरे
अहसास से - हो बहूत दूर पर यकीं मानो
मुझे लगते हो तुम - सचमुच मेरे पास से .
तेरे अहसास की कलम से
गीत लिखता हूँ - गाता हूँ
गुनगुनाता हूँ - हरेक
अपने- बेगाने के साथ
दूर तक साथ चला जाता हूँ .
सूर्य को रोज अर्ध्य देता हूँ - चाँद से मनौती मनाता हूँ
गर ये इलज़ाम है तो सच है  - मैं बुझे हुए दीये जलाता हूँ .
सूरज कुहासों में गुम है - चाँद को बेवजह भ्रम है
चलो दीये से बात करलें - ये सितारे तो बेशर्म हैं .


 
 
 
 
 
 

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