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Friday, February 25, 2011

अक्सर मैं सोचता रहता हूँ

अक्सर मैं सोचता रहता हूँ -
तुम्हे ख़त लिखूं -
कुछ समय निकालू ,
भ्रमण के लिए अपने देश
कुछ दिन के लिए बुला लूं .

पर खामोश रह जाता हूँ
तुम्हे क्या दिखाऊँगा और
क्या क्या तुमसे छिपाऊँगा .

यहाँ दिखाने से ज्यादा -
छिपाने को बहूत कुछ है ,
घर में क्या -क्या ऐसा है
जिसे स्टोर में जाना पड़ेगा ,
कुछ नया समान और
घर में लाना पड़ेगा .

पर मौहल्ले का क्या करू -
और मौहल्ला ही क्यों - ये
शहर ही कौन सा साफ़ सुथरा है
इस बात का ही मुझ को सबसे
ज्यादा खतरा है .

एअरपोर्ट से आते आते-
कहीं टेक्सी वाला ही
काम ना कर जाए .
बेचारा जिन्दगी के
सपने ले कर आ रहा है
बेमौत ही कहीं ना मर जाए .

ट्रेनों के हाल और भी ख़राब हैं -
होटल वालों की बिल से ज्यादा
टिप पर नजर होगी .
और भिखारियों की गीध दृष्टि से
इसको कैसे बचाऊंगा -
समझ में नहीं आता -
इसे मैं भारत कैसे बुलाऊंगा .

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