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Friday, February 25, 2011

ऐ मेरे वतन

ऐ मेरे वतन -बता मैं तेरे लिए
क्या करूँ !
तेरे लिए जिन्दा रहूँ -या तेरी
खातिर मरूं .

मेरे सीने में गड़े ये दुश्मनों के तीर
टीस अनवरत उठ रही है -
घाव अति गंभीर ,

युद्ध का आवाहन करूँ -या
शर शैया पर भीष्म सा सो जाऊं -या
किसी कृष्ण के प्रतीक्षा में -
बूढ़ा हो जाऊं .
सूर्य की दिशा बदलने का -
इंतज़ार आखिर मैं क्यों करूँ .

मैं ही ब्रह्म हूँ - क्यों भूल जाऊं
मेरा कर्म ही धर्म है - फिर
जमाना मुझे भूल जाए -या
याद रखे जमानो तक -इस की
चिंता मैं क्यों करूँ -
मरने से पहले -आखिर क्यों मरूं .
अब सभी कुछ है स्वीकार ,
फिर भले जीत मिले या फिर हार .

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