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Friday, February 25, 2011

नहीं चाहिए अब

नहीं चाहिए अब -
सच्चे सुख से कम ,
कुछ भी नहीं .

वो सपना जो शहरों को
गावों से मिलाता है .
वो अपना जो -नाना नानी
दादा दादी से मिलने -
हर बरस छुट्टियों में गाँव को
जाता है .

वो घर - जो घर सा ही
नहीं लगता -सचमुच
घर कहलाता है .
बाप जहाँ बोझ नहीं-
घर का मुखिया बन जाता है.
जिस देश में बूढों के लिए -
अलग से घर नहीं -बनते
घर के नौनिहालों की जो -खुद
छत कहलाता है .

ऐसा देश -ऐसा घर ,
जहाँ मंदिर नहीं होते -*
हर घर ही वहां पूजा घर
बन जाता है .
सारे जहाँ में - वो बस एक ही है
जो हिंदुस्तान/कहलाता है .

*(क्षमायाचना सहित-भव्य पूजाघरों को
नाचीज मंदिर नहीं मानता)

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