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Monday, March 17, 2014

प्यार मैंने भी किया है .

विरह की संवेदना मैं 
भित्तियों के चित्र सी तुम . 
प्यार तुमने भी किया था 
प्यार मैंने भी किया है .

मरू जलती रेत और वे 
ओस की नाजुक सी बुँदे .
आँख में पलता स्वप्न 
साकार मैंने भी किया है .

रूठ जाती हो ना जाने 
सेंकडों करती बहाने .
जाग कर यूँ रात भर  - 
मनुहार मैंने भी किया है .

आज वनिका बन के क्यों
फैलाए बैठी हो बही तुम .
प्यार के अहसास को
व्यापार तुमने ही किया है .

कौन जाने कौन हो तुम
चाहतों का सिलसिला है .
जिन्दगी जीना मेरा -
दुश्वार तुमने ही किया है .

काश मैं ये जान पाता
कोई तो मुझको बताता .
भटकनों में भटक जाता
पर ना तेरी राह आता .







2 comments:

  1. बहुत खूबसूरती से बयाँ की गई अभिव्यक्ति

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  2. जज्बातों को शब्दों में पिरोना कोई आपसे सीखे …… बहुत खूब

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