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Sunday, August 4, 2013

वो गुडिया है - गुडिया सी है .

वो गुडिया है - 
गुडिया सी है .
है बड़ी - मगर 
जरा सी है .

आँखें अब भी
मटकाती है
पलपल में
रूठी जाती है .

रूठे मुंह -
फुग्गे सा फूला .
जब इतराए
झूले झूला .

रिबन बांधे है
बालों में
पड़ते हैं गड्ढे
गालो में .

हंसती खिलते
हैं फूल तभी .
रोती तब है
जब भूख लगी .

है 'पुष्पराज'
जो प्रिय तुम्हें
कुछ कम प्यारी
वो नहीं हमें .

(प्रिय सुनीता पुष्पराज पाण्डेय को भेट)

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