वो गुडिया है -
गुडिया सी है .
है बड़ी - मगर
जरा सी है .
आँखें अब भी
मटकाती है
पलपल में
रूठी जाती है .
रूठे मुंह -
फुग्गे सा फूला .
जब इतराए
झूले झूला .
रिबन बांधे है
बालों में
पड़ते हैं गड्ढे
गालो में .
हंसती खिलते
हैं फूल तभी .
रोती तब है
जब भूख लगी .
है 'पुष्पराज'
जो प्रिय तुम्हें
कुछ कम प्यारी
वो नहीं हमें .
(प्रिय सुनीता पुष्पराज पाण्डेय को भेट)
गुडिया सी है .
है बड़ी - मगर
जरा सी है .
आँखें अब भी
मटकाती है
पलपल में
रूठी जाती है .
रूठे मुंह -
फुग्गे सा फूला .
जब इतराए
झूले झूला .
रिबन बांधे है
बालों में
पड़ते हैं गड्ढे
गालो में .
हंसती खिलते
हैं फूल तभी .
रोती तब है
जब भूख लगी .
है 'पुष्पराज'
जो प्रिय तुम्हें
कुछ कम प्यारी
वो नहीं हमें .
(प्रिय सुनीता पुष्पराज पाण्डेय को भेट)
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