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Sunday, August 11, 2013

मुक्ति खुद उपहार भी है .

इक प्रणय की वेदना है 
इक तरफ संसार भी है 
जीत जाना भाग्य से है 
हार जाना 'हार' भी है .

मुक्त हो जाता कभी का 
छोड़ देता वासना मैं 
'काम' भी तो है जरुरी 
'काम' से संसार भी है .

ना सखा - कोई बटोही
दिन जगा और रात सोयी
जिन्दगी - पायी की खोयी
जान पाया कोई कोई .

बाँधकर - खुलता नहीं जो
भीड़ में रुलता नहीं जो .
त्रण बिखर जायेंगे शायद
मुक्ति खुद उपहार भी है .

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