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Sunday, August 4, 2013

पर जीवन एक - नगीना है

जो चलागया सो चला गया 
बाकी के संग में जीना है . 
ये जीवन जल है निर्झर का 
ये जीवन कितना झीना है . 

आये कब - ठहरे चले गए
फिर आयेंगे कहकर आये .
मृदु मिट्टीघट का क्या जीना 
पलभर में मिट्टी हो जाए .

माटी कहकर बहलाते हो  
फिर कुदरत ने क्यों छीना है .
मिट्टी होता तो क्या गम था   
पर जीवन एक - नगीना है .

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