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Monday, April 30, 2012

समंदर की रुष्ठतता से डर

समंदर की रुष्ठता से डर - 
उत्ताल लहरों से मत खेल .
किसी दरिया की रवानगी 
को तो पहले झेल .

रोज़ रोज़ के तुफानो से बच 
मेरी बात मान - बेजुबाँ नदी
खामोश ताल के किनारे - 
कहीं कोई अपना घर ले .

धारा के विरुद्ध - लड़ना
आसान कहाँ होता है .
सबसे पहले - इंसान
अपना वजूद खोता है -
हार जीत का फैसला तो
उसके बाद होता है .

मैं नहीं 'हम' कहो - तो
संभवत : विजय पा लो .
वर्ना विदेशी बैरी को -
निमंत्रण दे कर 

पहले ही बुलवा लो .

नहीं जानता सही - या गलत
जैसी धारणा - ये किताबी बातें .
दुश्मन की कुनीतिया -आत्मघाती
राजनीति - की घातें .

छोड़ ज्यादा सोच विचार -
मन में छिपे डर को मार .
देसी डोंगी जैसी ही सही -
नाव बना - और एक मुश्त
समंदर की लहरों में -
चुपचाप उतर जा .

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