Popular Posts

Tuesday, December 6, 2011

लो अब आस्मां में भी पहरे

रोक सकते हो तुम - मुझे
मेरे पांवो को .
कैद कर सकते हो -
क्या उडती हवाओं को .

ये असली आग उतना कहाँ जलाती-
जितनी विचारों की आग - जिस्म को
हरारत - दिल को तपिश दे जाती है .

इससे बच सकता है तो बच -
भाग सकता है तो भाग .
ये जंगल की आग - तेरे घर को  
जला ना जाए कहीं -
इसमें जलकर स्वाहा
ना हो जाए यहीं  . 

लो अब आस्मां में भी पहरे -
यक़ीनन -तुम निपट अज्ञानी -
निरे बुद्धू ठहरे - पहले
जमीन को तो संभाल ले .
दफ़न पुरखों को तो -
इससे निकाल ले .
 
लूट ना जाए कहीं - तेरा घर
तेरा कारवां - ये तख्तो ताज.
शाहजहाँ गए - मुमताज़ की चिंता कर .
क्यों उसकी कब्र खुदवा रहा है -
ताज नहीं बनते बातों से -
क्यों बेसर पैर की उड़ा रहा है .

 
 

1 comment:

  1. इससे बच सकता है तो बच -
    भाग सकता है तो भाग .
    ये जंगल की आग - तेरे घर को
    जला ना जाए कहीं -
    इसमें जलकर स्वाहा
    ना हो जाए यहीं .

    बेहतरीन्।

    ReplyDelete