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Saturday, March 17, 2012

मुक्तक

"यूँ ना रहते दर्द से -अपने हाथों को मलते 
'मूव' होती - लगाते और काम पर चलते " 


क्या बताएं - हम कैसे बड़े होते हैं
रेंगते हुए - पैरों पर कैसे खड़े होते हैं .
बस भीड़ में मिलती है जरा सी राहत
वर्ना दिलमे तनहाइयों के शूल गड़े होते हैं .


मैं आंसुओं की बूँद में - सागर ढूँढता रहा
ये बादल ये हवा - ना जाने कहाँ ले आई
खंगाल डाली सारी दुनिया - जर्रे जर्रे में
उम्र भर मैं खुद को - खुदा सा ढूँढता रहा .


हकीकत हूँ या के ख्वाब हूँ  मैं

तेरे हर बात का - जवाब हूँ मैं .

जर्रा हो के भी आफताब हूँ मैं .

मानले फिर भी लाज़वाब हूँ मैं .

बहूत खुश था - जो तुमको पाया था 
यही तो अपना इकलोता सरमाया था 
तू है तो मैं हूँ - वर्ना अपना भी दोस्त 
देश से कांग्रेस की तरह सफाया था .

मैं हकीकत हूँ - लिपट कर मिलो हमसे 
मैं कोई ख्वाब तो नहीं - की टूट जाऊँगा . 

ख़त आया नहीं - पूरे सात रोज़ हो गए . 
यार ये डाकिये - सन्डे को क्यों नहीं आते  .

बस इतना बता - फूल के आक्रोश को मैं कैसे सहूँगा . 
बीच से तोड़ भी दोगे तो - शीशा नहीं पत्थर ही रहूँगा . 

चाँद निकला नहीं - तुम खुद ही अफताब हुई

आज क्या बात है - साकी ही खुद शराब हुई .

रात के ख्वाब बनके अंधेरों में जीये तो क्या - जिए 
कभी हमसे दिन के उजालों में आके मिलो -तो सही. 

 दुनिया का क्या - दुनिया को कहने दो .
मैं बेनाम सही  - मुझे बेनाम ही रहने दो .

ख़त में तुमने कुछ लिखा ही नहीं - फिर भी 
समझ गया मैं तेरे बिन लिखे- कहे जज्बात . 

कमीनी हसरतें तो बस मेरी बदनाम होनी थी. 
हर नजर में नक्श उसकी ही तस्वीर थी यारो .

यहाँ वहां मत देख - जरा अन्दर तो अपने झाँक
प्यार दे रहा है तेरे दिल में भी धीमी धीमी आंच .
ये प्रेम का शास्त्र है - पढ़ सुन मत - गुण प्यारे 
ये दिल की आवाज़ है - ध्यान से जरा सुन प्यारे .

मौत को पहना दें - नकेल 
हम ऐसा जिगर रखते हैं . 
जिन्दगी झूकी रहे चौखट पर - 
हम ऐसा हुनर रखते हैं .


पत्थरों से ना पूछो - उनकी कहानी ऐ दोस्त
जो भी आता है - ठोकर लगाता आता है .


दिलकी कोशिशें - रंग लाने लगी
जिन्दगी दूर थी पास आने लगी
फिर से किसी के लिए -दोस्त
आज जीने की चाह सताने लगी . 






1 comment:

  1. क्या बात है भाई

    बधाई जबरदस्त प्रस्तुति पर ।।

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