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Thursday, March 1, 2012

मुक्तक

चाँद बैरी था - मगर इस चांदनी को क्या कहें
टहलती है छत पर - उस महजबीं के साथ साथ .



फुर्सत से घड़ा है - खुदा ने तुझे ऐ दोस्त 
हमारा क्या है - हम तो ठेके पे बनाये गए .


मैं नहीं - तू सही - या कोई और कारसाज़ .
यहीं - या वहीँ या फिर और कहीं .
कहीं भी हो पर कोई तो हो जो - 
बदले दे - इस मगरूर वक्त के मिज़ाज.
अभी भी वक्त है थोडा सा - संभल जा
बेदर्द जहाँ है - चुपके से निकल जा .
हवाओं की दिशाएं - बातों से नहीं बदलती
ये दुनिया तेरे मेरे कहने से नहीं चलती .
निजाम बदलेगा तो हम भी बदल जायेंगे
मेरा चेहरा भी दुनिया में शामिल है यार .
हुकूमत बदलने से कहीं तस्वीर बदलती है .
अंगूठे की स्याही से कहाँ तकदीर बदलती है 

नहीं बदलते हालाते - जिन्दगी 

बस मौसम ही बदल जाते हैं .
एक ही भाषा - जो उसको सुहाय  
प्रेम से पुकार है  -प्रेम ही उपाय  .
यंत्र -तंत्र -मन्त्र उसे ना जरा भाए
बहेलिया नहीं तू - ना वो चिड़िया 
जाल में फंसे वो - हाथ में ना आये  .
मन से पुकार ले - तुरत चला आये .
  
क्या हुआ जो समर - अभी बाकी है 
हिजड़ों की फ़ौज को - कल की छोडिये 
आज भी फुल फुल माफ़ी है.
रात इतनी पी - की रात मुंह ढक के सो गयी
पता ही नहीं चला - जाने कब सुबह हो गयी
जिन्दगी भर ना जाने - हम किस ख्वाब में जीते रहे
होश की किसको फ़िक्र थी - जाम भरते रहे पीते रहे .
जागो - कब तलक सपनों - में रहिएगा
'जगतबाप' को आज कैसे कसाई कहियेगा .
'जगत बाप' की छोडो उनके वंशजों को तो झेल लो
मुल्क इनके लिए गेंद हैं - इससे जैसे चाहे खेल लो .
 
 


 

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